
अरुणाचल प्रदेश के एक बड़े हिस्से में लोग उन्हें 'टी लेडी' के नाम से जानते हैं. उनसे प्रेरणा पाकर उनके गांव के बहुत से लोगों ने नशे की खेती को हमेशा के लिए छोड़ दिया है.
बासाम्लु क्रिसिक्रो नाम की ये महिला अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले के वाक्रो गांव में रहती हैं. नौ साल पहले उन्होंने एक बेहद निजी कारण के चलते अपने गांव में चाय की खेती शुरू की थी. दरअसल, साल 2009 में उन्हें पता चला कि उनकी मां को फेफड़े का कैंसर है. मुंबई में उनकी मां का सफल ऑपरेशन हुआ लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें साफ कह दिया कि वह अपनी मां को सिर्फ और सिर्फ ऑर्गेनिक ग्रीन टी ही दे सकती हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट क्रिसिक्रो को अपनी मां के लिए आॅर्गेनिक ग्रीन टी लाने के लिए पड़ोसी राज्य असम जाना पड़ता था. ये काफी मेहनत वाला काम था. जिसके बाद उन्होंने फैसला किया कि अब वो अपने गांव में ही ऑर्गेनिक ग्रीन टी पैदा करेंगी.
लोहित जिले में क्रिसिक्रो के नक्शेकदम पर चलते हुए आज कई परिवार चाय की खेती कर रहे हैं. जबकि यही वो परिवार थे जो कुछ समय पहले तक अफीम की खेती किया करते थे.
अरुणाचल प्रदेश के लोहित, अंजाव, तिरप और चांगलांग जिलों में अफीम की खेती बेहद सामान्य बात है. ये वो जिले हैं जिनकी सीमा चीन से लगती है.
क्रिसिको बताती हैं कि अरुणाचल के पूर्वी इलाके खासकर वाक्रो में कुछ वक्त पहले तक संतरे की खेती की जाती थी लेकिन इन गुजरे सालों में लोगों ने संतरे की खेती छोड़कर अफीम की खेती अपना ली.
वो कहती हैं कि अफीम की खेती से आय के विकल्प तो मिले लेकिन लोगों ने साथ-साथ नशे को भी अपना लिया. क्रिसिक्रो ने नाइल नाम के स्वास्थ्य कर्मी के साथ मिलकर लोगों को ये समझाने की कोशिश की कि जिंदगी को बेहतर तरीके से गुजारने के लिए आवश्यक आय चाय की खेती से भी हासिल की जा सकती है.
क्रिसिक्रो के पास 2009 में चाय का एक हेक्टेयर का खेत था. आज यह बढ़कर पांच हेक्टेयर हो गया है. वो बताती हैं कि उन्होंने अफीम की खेती करने वालों से कहा कि वे अपनी जमीन के एक छोटे हिस्से पर चाय की खेती करें. लोगों ने उनकी बात मानी और कुछ ही समय में 12 परिवारों ने चाय की खेती शुरू कर दी.