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हिंसा किसी भी इंसान को अंदर से झकझोर सकती है लेकिन हिंसा का असर बच्चों पर सबसे अधिक पड़ता है. हिंसा की वजह से बच्चे को मानसिक आघात पहुंचता है.
डिजिटल की दुनिया ने हिंसक सामाग्री तक बच्चों की पहुंच को सुलभ बना दिया है. जैसे ही दुनिया के किसी कोने में कोई हिंसक घटना होती है बच्चों तक तुरंत खबर पहुंच जाती है. यही नहीं बच्चे न्यूज चैनल और अन्य माध्यमों से भी हिंसा के बारे में देख, सुन और जान रहे हैं. इसके अलावा घरेलू हिंसा भी बच्चों को बहुत चोट पहुंचाती है.
एक स्टडी में पाया गया है कि जो बच्चे ज्यादा हिंसा देखते हैं, करते हैं या शिकार होते हैं उनमें अवसाद, गुस्सा और तनाव अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक होता है. इसके अलावा ऐसे बच्चों में दूसरे बच्चों के प्रति भाईचारे की भावना भी कम हो जाती है.
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ऐसे में पैरेंट्स को कोशिश करनी चाहिए कि हिंसा को समझने और उसका सामना करने में बच्चों की मानसिक तौर पर मदद करें. अपने बच्चों से बात करें और उनकी बात को सुनने और समझने की कोशिश करें.
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अक्सर ऐसा देखा गया है कि पैरेंट्स अपने बच्चों की बात बचपन में तो सुनते हैं लेकिन किशोरावस्था में नहीं. जबकि किशोरों को भी बच्चों की तरह ही मानसिक तौर पर सहयोग की जरूरत होती है.