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2 रुपये की राखी बेचकर करोड़ों कमाती हैं ये महिलाएं, जानिये कैसे...

ये उन महिलाओं की यूनिट है जो भाई की रक्षा के लिए राखी बनाती हैं. इनकी राख‍ियां दुनियाभर में बिकती हैं. इस एक त्यौहार के जरिये ही उनकी करोड़ों की आमदनी हो जाती है...

women made rakhi women made rakhi
वंदना भारती
  • नई दिल्ली,
  • 03 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 8:23 AM IST

राजस्थान के अलवर में जहां महिलाएं भाईयों की रक्षा के लिए राखियां बना रही हैं. वहीं राजस्थान के झुंझुनू में महिला और बच्चियों की सुरक्षा के लिए महिलाओं की यूनिट सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाकर गांव में बेच रही हैं. आज हम राजस्थान के दो अलग -अलग जिलों की महिला यूनिट के बारें में बात करेंगे जो कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद अपने परिवार का खर्चा चलाने के साथ समाज की  मदद कर रही है. वहीं दूसरी ओर अपने हुनर के बलबूते देश-विदेश में छा रही हैं.

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राखी बनाकर कमा लेती है सलाना 100 करोड़

राखी का त्यौहार देश भर में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. वहीं रक्षाबंधन का ये त्योहार राजस्थान(अलवर), ग्रामीण क्षेत्रों की 10 हजार महिलाओं को सालभर का रोजगार देता है. ये महिलाएं ज्यादा पढ़ी- लिखी नहीं हैं, जिस वजह से इन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल पाती. ऐसे में राखी बनाने से ये अपने परिवार का साल भर का खर्चा उठा लेती हैं. इन सभी महिलाओं की बनाई हुई राखियां शहर से विश्व के 24 देशों में सप्लाई की जाती है. सालाना इनकी बनाई राखियों पर 100 करोड़ की कमाई होती है. बता दें कि राखी बनाने वाले 13 प्रतिष्ठान महिलाओं से राखी बनवाते हैं. 

इनकी बनाई हुई राखियों की डिमांड मार्केट में काफी होती है. 2 रुपये से लेकर 200 रुपये की राखियां तैयार की जाती है. एक से एक सुंदर और डिजाइन वाली राखियां ये महिलाएं तैयार कर देती हैं. हालांकि महिलाएं कम पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन राखी का डिजाइन कैसा होना चाहिए ये बखूबी जानती है.

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इन डिजाइन को बनाने के लिए विशेषेज्ञों के साथ ये महिलाएं गजब की भूमिका निभाती हैं. रक्षाबंधन के लिए इस बार खास चूड़ा राखी डिजाइन की जा रही है.

सेनैटरी नैपकीन बनाकर महिलाओं की मदद

जहां एक दिन के त्योहार के लिए महिलाएं सालभर तैयारी कर रही है वही राजस्थान के झुंझूनू की महिलाए सालभर काम आने वाले सेनैटरी नैपकीन बनाकर ना जाने कितनी ही महिलाओं और बच्चियों की मदद कर रही है.

आपको बतादें कि महिलाओं ने सेनेटरी नैपकिन बनाने की यूनिट तैयार की है जिसमें सिर्फ महिलाएं ही काम करती है. 'आनंदी सेनेटरी नैपकीन' बाजार में मिलने वाले नैपकीन से 6 रुपये कम है. जिसकी मार्केटिंग खुद महिलाएं करती है. इस पर GST भी नहीं लगता. इन नैपकीन को तैयार करने के लिए स्वंय सहायता समूह की महिलाएं बनाती हैं. इस यूनिट को सिर्फ 8 महिलाओं ने इसी साल फरवरी में शुरू किया है.

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वहीं गांव में सैनेटरी नैपकीन की डिमांड काफी ज्यादा है जिस वजह से वह डिमांड पूरी नहीं कर पा रही है. लेकिन कोशिश जारी है. बतादें कि अमृता फेडरेशन सोसाइटी नाम के इस समूह का संचालन महिला अधिकारिता विभाग अपनी देखरेख में करवा रहा है.

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एक पैकेट पर मिलता है 3रु. का कमीशन

15 हजार महिलाएं इस यूनिट से जुड़ चुकीं है. आनंदी सेनेटरी नैपकीन की कीमत 28 रु. है. एक पैकेट में 8 पीस मिलते है. जिसमें महिलाओं को हर पैकेट में 3 रु. कमीशन मिलता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सेनेटरी नैपकीन हर जरूरतमंद महिला के पास पहुंच पाएं इसके लिए जिले में 1593 आंगनहबाड़ी केंद्र पर अमृता कॉर्नर खोले जा रहे है. आपको बतादें कि सेनेटरी नैपकिन बनाने के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी गई है. वहीं स्कूल कॉलेज में ऐसे कॉर्नर खोले जा रहै है.

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मार्केट में सेनेटरी नैपकीन महंगे मिलने के कारण गरीब महिलाएं इनका इस्तेमाल नहीं कर पाती जिस वजह से खतरनाक बीमारी होने के खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में ये सस्ते नैपकीन महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं.

 

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