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सत्ता पर अदम गोंडवी का तंज, 'काजू भुने पलेट में व्हिस्की गिलास में'

आज कवि अदम गोंडवी की पुण्यतिथि है. उनका नाम राम नाथ सिंह था, जिन्हें लोग 'अदम गोंडवी' के नाम से जानते हैं. पढ़ें- उनकी प्रमुख लोकप्रिय रचनाएं...

अदम गोंडवी अदम गोंडवी
मोहित पारीक/aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:06 PM IST

सामाजिक राजनीतिक आलोचना के प्रखर कवि शायर अदम गोंडवी की आज पुण्यतिथि है. गोंडवी अपने विद्रोही तेवरों के लिए जाने जाते हैं. उनकी रचनाओं में राजनीति और व्यवस्था पर किए गए कटाक्ष काफी तीखे हैं. उनकी शायरी में जनता की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य नजर आताहै. लेखनी में सत्ता पर शब्दों के बाण चलाना आदम की रचनाओं की खासियत है.

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उनका नाम रामनाथ सिंह था, जिन्हें लोग 'अदम गोंडवी' के नाम से भी जानते हैं. उनका जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा में हुआ था. साल 1998 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने दुष्यंत पुरस्कार से सम्मानित किया था. उनकी कई रचनाएं काफी लोकप्रिय हुईं और उनकीप्रमुख कृतियों में धरती की सतह पर, समय से मुठभेड़ आदि कविता संग्रह शामिल है.

आइए पुण्यतिथि के मौके पर आदम की 5 प्रमुख रचनाएं पढ़ते हैं जिसे हर कोई गुनगुनाता है...

अदम गोंडवी की कविता, 'मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको'

काजू भुने पलेट में व्हिस्की गिलास में

काजू भुने पलेट में व्हिस्की गिलास में

उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत

इतना असर है खादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह

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जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें

संसद बदल गई है यहां की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत

यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में

तुम्‍हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

तुम्‍हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो

इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है

लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ' गरीबी में

ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है

तुम्‍हारी मेज चांदी की तुम्‍हारे ज़ाम सोने के

यहाँ जुम्‍मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है

दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

ग़लतियां बाबर की थी; जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले

ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

हैं कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ां

मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़

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दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है

बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है

भटकती है हमारे गांव में गूंगी भिखारन-सी

सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है

बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में

मैं जब भी देखता हूं आंख बच्चों की पनीली है

सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास हो कैसे

मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है

ग़ज़ल को ले चलो अब गांव के दिलकश नज़ारों में

मुसल्‍सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई

खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लंबी क़तारों में

अदीबो! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ

मुलम्‍मे के सिवा क्‍या है फ़लक़ के चांद-तारों में

र‍हे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से

बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद

जो है संगीन के साए की चर्चा इश्‍तहारों में

(साभार- hindisamay.com)

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