इन आंखों की मस्ती से लेकर शहरयार की 5 बेमिसाल ग़ज़लें

शहरयार ने उर्दू और हिंदी शायरी में अपना एक खास मुकाम हासिल किया है. अपने खास लहजे, अलहदा अंदाज और सहज भाषा के चलते वह दूसरों से अलग पहचाने गए. उनकी पुण्यतिथि पर उनकी 5 बेमिसाल ग़ज़लें-

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शहरयार (  साभार- Library@Kendriya Vidyalaya) शहरयार ( साभार- Library@Kendriya Vidyalaya)

aajtak.in

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  • 13 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 1:37 PM IST

शहरयार ने उर्दू और हिंदी शायरी में अपना एक खास मुकाम हासिल किया है. अपने खास लहजे, अलहदा अंदाज और सहज भाषा के चलते वह दूसरों से अलग पहचाने गए. उनकी पुण्यतिथि पर उनकी 5 बेमिसाल ग़ज़लें-

1.

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं

इन आँखों से वाबस्ता अफ़्साने हज़ारों हैं

इक तुम ही नहीं तन्हा उल्फ़त में मिरी रुस्वा

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इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं

इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं

कहने को तो दुनिया में मय-ख़ाने हज़ारों हैं

इस शम-ए-फ़रोज़ाँ को आँधी से डराते हो

इस शम-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं

2.

आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है

ये राय अकेली मेरी नहीं है सब की है

सुनसान सड़क सन्नाटे और लम्बे साए

ये सारी फ़ज़ा ऐ दिल तेरे मतलब की है

तिरी दीद से आँखें जी भर के सैराब हुईं

किस रोज़ हुआ था ऐसा बात ये कब की है

तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को

जो बात बहुत पहले करनी थी अब की है

मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर

बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है

3.

कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल

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लेकिन वो फ़साना जो मिरे दिल पे रक़म है

महरूमी का एहसास मुझे किस लिए होता

हासिल है जो मुझ को कहाँ दुनिया को बहम है

या तुझ से बिछड़ने का नहीं हौसला मुझ में

या तेरे तग़ाफ़ुल में भी अंदाज़-ए-करम है

थोड़ी सी जगह मुझ को भी मिल जाए कहीं पर

वहशत तिरे कूचे में मिरे शहर से कम है

ऐ हम-सफ़रो टूटे न साँसों का तसलसुल

ये क़ाफ़िला-ए-शौक़ बहुत तेज़-क़दम है

4.

किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया

ग़ैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया

निकला था मैं सदा-ए-जरस की तलाश में

धोके से इस सुकूत के सहरा में आ गया

क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका

क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया

मैं जिस्म के हिसार में महसूर हूँ अभी

वो रूह की हदों से भी आगे चला गया

इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई

सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया

5.

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

सब का अहवाल वही है जो हमारा है आज

ये अलग बात कि शिकवा किया तन्हा हम ने

ख़ुद पशीमान हुए ने उसे शर्मिंदा किया

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इश्क़ की वज़्अ को क्या ख़ूब निभाया हम ने

कौन सा क़हर ये आँखों पे हुआ है नाज़िल

एक मुद्दत से कोई ख़्वाब न देखा हम ने

उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा

अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने

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