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पाकिस्तान पर हवाई हमले के बाद भारतीय सेना ने ट्वीट की दिनकर की कविता की ये लाइनें, पढ़ें पूरी कविता

भारतीय सेना का साहित्य से भी गहरा नाता है. सेना अपनी सोशल मीडिया साइट्स पर अकसर भारतीय साहित्यकारों की रचनाओं को शेयर करती रहती है. इस ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना ने अपने ट्वीटर हैंडल पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता 'शक्ति और क्षमा' की यह संपादित पंक्तियां लगाईं.

प्रतीकात्मक इमेजः भारतीय सेना का ट्वीटर पेज प्रतीकात्मक इमेजः भारतीय सेना का ट्वीटर पेज
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 5:10 PM IST

नई दिल्लीः भारतीय सेना का साहित्य से भी गहरा नाता है. सेना अपनी सोशल मीडिया साइट्स पर अकसर भारतीय साहित्यकारों की रचनाओं को शेयर करती रहती है. पुलवामा में 14 फरवरी को केंद्रीय सुरक्षाबल के जवानों पर हमले के जवाब में आज सुबह जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर 21 मिनट का ऑपरेशन चलाया. इस हमले में 12 मिराज विमानों ने जैश ए मोहम्मद के ठिकानों पर लगभग 1000 किलो विस्फोटक गिराए, जिसमें बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए. इस ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना ने अपने ट्वीटर हैंडल ADG PI - INDIAN ARMY@adgpi पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'शक्ति और क्षमा' नामक कविता की यह संपादित कर लगाई.

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साहित्य आजतक के पाठकों के लिए दिनकर की 'शक्ति और क्षमा' शीर्षक वाली इस कविता का पूरा अंशः

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष

तुम हुए विनत जितना ही,

दुष्ट कौरवों ने तुमको

कायर समझा उतना ही.

अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है,

पौरुष का आतक मनुज

कोमल हो कर खोता है.

क्षमा शोभती उस भुजंग को,

जिसके पास गरल हो.

उसको क्या, जो दंतहीन,

विषरहित, विनीत, सरल हो?

तीन दिवस तक पथ माँगते

रघुपति सिन्धु-किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छंद

अनुनय के प्यारे-प्यारे.

उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से,

उठी अधीर धधक पौरुष की

आग राम के शर से.

सिन्धु देह धर "त्राहि-त्राहि"

करता आ गिरा शरण में,

चरण पूज, दासता ग्रहण की,

बँधा मूढ़ बंधन में.

सच पूछो तो शर में ही

बसती है दीप्ति विनय की

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सन्धि-वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की.

सहनशील क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है,

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है.

जहाँ नहीं सामर्थ्य शोढ की,

क्षमा वहाँ निष्फल है.

गरल-घूँट पी जाने का

मिस है, वाणी का छल है.

फलक क्षमा का ओढ़ छिपाते

जो अपनी कायरता,

वे क्या जानें प्रज्वलित-प्राण

नर की पौरुष-निर्भरता?

वे क्या जाने नर में वह क्या

असहनशील अनल है,

जो लगते ही स्पर्श हृदय से

सिर तक उठता बल है?

(समर निंद्य है)

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