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26 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर महावीर प्रसाद 'मधुप' की एक कविता

मधुप ने देशभक्ति को लेकर कई रचनाएं लिखीं. वीर रस से ओतप्रोत उनकी कविताएं देशभक्ति का जज्बा जगाती हैं.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

देश में गणतंत्र दिवस का उल्लास उफान पर है. लोग देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत हैं. ऐसे में साहित्य आजतक चर्चित साहित्यकार महावीर प्रसाद 'मधुप' द्वारा रचित '26 जनवरी' नामक कविता अपने पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत कर रहा है. 'मधुप' ने देशभक्ति को लेकर ढेर सारी रचनाएं लिखीं. वीर रस से ओतप्रोत उनके संग्रह 'माटी अपने देश की', 'गीत विजय के' और 'कारवां उम्मीद का' काफी चर्चित रहे.

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कविताः 26 जनवरी

प्राची से झांक रही ऊषा,

कुंकुम-केशर का थाल लिए।

हैं सजी खड़ी विटपावलियां,

सुरभित सुमनों की माल लिए॥

गंगा-यमुना की लहरों में,

है स्वागत का संगीत नया।

गूंजा विहगों के कंठों में,

है स्वतन्त्रता का गीत नया॥

प्रहरी नगराज विहंसता है,

गौरव से उन्नत भाल किए।

फहराता दिव्य तिरंगा है,

आदर्श विजय-सन्देश लिए॥

गणतंत्र-आगमन में सबने,

मिल कर स्वागत की ठानी है।

जड़-चेतन की क्या कहें स्वयं,

कर रही प्रकृति अगवानी है॥

कितने कष्टों के बाद हमें,

यह आज़ादी का हर्ष मिला।

सदियों से पिछड़े भारत को,

अपना खोया उत्कर्ष मिला॥

धरती अपनी नभ है अपना,

अब औरों का अधिकार नहीं।

परतंत्र बता कर अपमानित,

कर सकता अब संसार नहीं॥

क्या दिए असंख्यों ही हमने,

इसके हित हैं बलिदान नहीं।

फिर अपनी प्यारी सत्ता पर,

क्यों हो हमको अभिमान नहीं॥

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पर आज़ादी पाने से ही,

बन गया हमारा काम नहीं।

निज कर्त्तव्यों को भूल अभी,

हम ले सकते विश्राम नहीं॥

प्राणों के बदले मिली जो कि,

करना है उसका त्राण हमें।

जर्जरित राष्ट्र का मिल कर फिर,

करना है नव-निर्माण हमें॥

इसलिए देश के नवयुवको!

आओ कुछ कर दिखलायें हम।

जो पंथ अभी अवशिष्ट उसी,

पर आगे पैर बढ़ायें हम॥

भुजबल के विपुल परिश्रम से,

निज देश-दीनता दूर करें।

उपजा अवनी से रत्न-राशि,

फिर रिक्त-कोष भरपूर करें॥

दें तोड़ विषमता के बन्धन,

मुखरित समता का राग रहे।

मानव-मानव में भेद नहीं,

सबका सबसे अनुराग रहे॥

कोई न बड़ा-छोटा जग में,

सबको अधिकार समान मिले।

सबको मानवता के नाते,

जगतीतल में सम्मान मिले॥

विज्ञान-कला कौशल का हम,

सब मिलकर पूर्ण विकास करें।

हो दूर अविद्या-अंधकार,

विद्या का प्रबल प्रकाश करें॥

हर घड़ी ध्यान बस रहे यही,

अधरों पर भी यह गान रहे।

जय रहे सदा भारत मां की,

दुनिया में ऊंची शान रहे॥  

- महावीर प्रसाद 'मधुप' (कविता कोष से साभार)

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