Advertisement

जाना मन्नू भंडारी का, अब कौन लिखेगा शकुन और बंटी का दुख

हिंदी की जानीमानी कथाकार मन्नू भंडारी हालांकि एक लंबी उम्र जी कर गईं, पर उन्होंने अपनी रचनाओं से मानवीय रिश्तों के जो किरदार रचे थे, वे हमेशा अमर रहेंगे

मन्नू भंडारीः नहीं रही स्त्री दुख की चितेरी मन्नू भंडारीः नहीं रही स्त्री दुख की चितेरी
जय प्रकाश पाण्डेय
  • नई दिल्ली,
  • 15 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:41 PM IST

मन्नू भंडारी नहीं रहीं. ह्वाट्स-ऐप पर साहित्यकारों, पत्रकारों के 'साहित्य' नामक गंभीर समूह में जैसे ही यह सूचना पढ़ी, मन दुखी हो गया और दिमाग में 'आपका बंटी' घूम गया, जिसमें नन्हा बंटी अपने भोलेपन के साथ यह पूछता है 'अच्छा बनना कितना कठिन है न?'. वाकई मन्नू भंडारी जीवन भर इस सवाल से जूझती रहीं. एक स्त्री के रूप में, शिक्षिका, पत्नी, मां, दोस्त, मार्गदर्शक के रूप में उनका यह संघर्ष लगातार उनके लेखन में भी झलकता रहा.

Advertisement

हिंदी की इस सुप्रसिद्ध कहानीकार लेखिका का जन्म 3 अप्रैल, 1939 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में हुआ था. आपके बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था. लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम अपनाया. एमए की पढ़ाई करने के बाद वर्षों तक वह दिल्ली के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज में अध्यापिका रहीं. एक विदुषी स्त्री और शिक्षक से कहीं इतर मन्नू भंडारी ने एक कथाकार के रूप में अपनी  बड़ी छाप छोड़ी. बिना किसी गुटबंदी और खेमेबाजी का शिकार हुए वह लिखतीं रहीं और साहित्य जगत को 'मैं हार गई', 'तीन निगाहों की एक तस्वीर', 'एक प्लेट सैलाब', 'यही सच है', 'आंखों देखा झूठ', 'अकेली' और 'त्रिशंकु' जैसे कथा संकलनों से समृद्ध किया.

इन संग्रहों की कहानियां उनकी सतत जागरूकता, सक्रिय विकासशीलता को रेखांकित करती हैं. राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास 'एक इंच मुस्कान' पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है. उनकी सीधी-साफ भाषा, शैली का सरल और आत्मीय अंदाज, सधा शिल्प और कहानी के माध्यम से जीवन के किसी स्पन्दित क्षण को पकड़ना उन विशेषताओं में है, जिसने उन्हें लोकप्रिय बनाया. उनका लिखा नाटक 'बिना दीवारों का घर' भी काफी चर्चित रहा.

Advertisement

नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास 'महाभोज' पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ था. इनकी 'यही सच है' कृति पर आधारित 'रजनीगंधा फ़िल्म' ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी. इस फिल्म को 1974 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था. इसके अतिरिक्त उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत हैं.

इन सबके बीच यह जानना जरूरी है कि मन्नू भंडारी ने चर्चित हिंदी लेखक व संपादक राजेंद्र यादव से शादी की और दशकों के साथ के बाद उनसे अलग भी हो गईं. खास बात यह कि भंडारी ने विवाह टूटने की त्रासदी पर एक घुट रहे एक बच्चे को केंद्रीय विषय बनाकर एक उपन्यास लिखा 'आपका बंटी' जिसने उन्हें शोहरत के शिखर पर पहुंचा दिया. 'आपका बंटी' को उन बेजोड़ उपन्यासों में शुमार किया जाता है, जिनके बिना बीसवीं शताब्दी के हिंदी उपन्यास की चर्चा भी नहीं की सकती है, न ही स्त्री और बाल-विमर्श को सही धरातल पर समझा जा सकता है.

'आपका बंटी' एक कालजयी उपन्यास है. इसे हिंदी साहित्य की एक मूल्यवान उपलब्धि के रूप में देखा जाता है. बच्चों के मनोविज्ञान पर लिखे मन्नू भंडारी के इस उपन्यास को हिंदी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है. टूटते परिवारों के बीच बच्चों को किस मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है, यह उपन्यास उसका लगभग दस्तावेजी अंकन करता है. इस उपन्यास की विशेषता यह है कि यह एक बच्चे की निगाहों से घायल होती संवेदना का बेहद मार्मिक चित्रण करता है, जिसमें मध्यमवर्गीय परिवार में संबंध विच्छेद की स्थिति एक बच्चे की दुनिया का भयावह दुःस्वप्न बन जाती है. सभी एक-दूसरे में ऐसे उलझे हैं कि पारिवारिक त्रासदी से उपजी स्थितियां सभी के लिए यातना बन जाती हैं. कहना मुश्किल है कि यह कहानी बालक बंटी की है या मां शकुन की.

Advertisement

शकुन के जीवन का सत्य है कि स्त्री की जायज महत्त्वाकांक्षा और आत्मनिर्भरता पुरुष के लिए चुनौती है- नतीजे में दाम्पत्य तनाव से उसे अलगाव तक ला छोड़ता है. यह शकुन का नहीं, समाज में निरन्तर अपनी जगह बनाती, फैलाती और अपना कद बढ़ाती 'नई स्त्री' का सत्य है. पति-पत्नी के इस द्वन्द में यहां भी वही सबसे अधिक पीसा जाता है, जो नितान्त निर्दोष, निरीह और असुरक्षित है- और वह है बंटी. बच्चे की चेतना में बड़ों के इस संसार को कथाकार मन्नू भंडारी ने पहली बार पहचाना था. बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ-बूझ के लिए चर्चित, प्रशंसित इस उपन्यास का हर पृष्ठ ही मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक है.

'आपका बंटी' साल 1970 में लिखा गया, पर आज पांच दशक बाद भी दर्जनों संस्करणों व कई भाषाओं में अनुवाद के साथ इसकी लोकप्रियता वैसे ही कायम है, जैसा धर्मयुग में पहली बार धारावाहिक के रूप में प्रकाशित होने के दौरान थी. बंटी को लेकर भंडारी के लगाव को ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब 1986 में 'आपका बंटी' के आधार पर 'समय-की-धारा' नामक फिल्म बनी, और उपन्यास मूल स्वरूप से खिलवाड़ हुआ तो मन्नू भंडारी ने अदालत में मामला दायर कर दिया. भंडारी का कहना था कि शबाना आज़मी, शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद मेहरा अभिनीत 'समय की धारा में उनके उपन्यास 'आपका बंटी' को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है. इस फिल्म के आखिर में बंटी की मृत्यु दिखाई गई थी, जबकि उपन्यास में ऐसा नहीं था. यह एक तथ्य है कि मुकदमा काफी लंबे समय तक चला और अंततः उच्च न्यायालय से कॉपी राइट एक्ट के तहत जो फैसला आया वह लेखकों के लिए एक नजीर साबित हुआ.

Advertisement

एक अच्छी कथाकार के इस तरह जाने के अलावा मेरे लिए यह दोहरे दुख की वजह है. इनदिनों साहित्य तक के अपने साप्ताहिक कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' में मैं वरिष्ठ साहित्यकारों का जीवनपरक साक्षात्कार कर रहा हूं, और इस सूची में मन्नू भंडारी भी शामिल थीं कि यह सूचना मिली. तकनीकी दिक्कतों और उनके स्वास्थ्य के चलते सही समय से यह साक्षात्कार संभव नहीं हो सका. 2019 में साहित्य आजतक में भी पद्मा सचदेव और मन्नू भंडारी, दोनों ही स्वास्थ्य कारणों से उपस्थित न हो सकी थीं. क्षणभंगुर जीवन की आपाधापी में कल आता भी कहां है. यह भी एक बात है कि हाल के वर्षों में दोनों ही लेखिकाओं की आखिरी बड़ी सार्वजनिक उपस्थिति साहित्य अकादेमी कार्यक्रमों में थीं. नमन.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement