
मुगल बादशाह औरंगजेब की छवि विवादित रही है. मुगलों को लेकर वैसे भी एक वर्ग नकारात्मक ही रहा है. लेकिन उन तमाम विवादों के पीछे, धारणाओं के पीछे एक और कहानी छिपी है, सच्चाई छिपी है. उसी सच्चाई या कह लीजिए अनकही कहानी को बताने का दावा कर रहे हैं पत्रकार अफसर अहमद जिनकी किताब औरंगजेब बनाम राजपूत- नायक या खलनायक रिलीज हो गई है. असल में ये उनकी इसी विषय पर लिखी किताबों का तीसरा खंड है. इससे पहले औरंगजेब - बचपन से सत्ता संघर्ष तक और औरंगजेब सत्ता संघर्ष भी प्रकाशित हो चुकी हैं. लेखक इस सीरीज की कुल 6 खंड निकालने जा रहे हैं. तीन प्रकाशित हो गए हैं, जल्द ही बाकी भी सामने आ जाएंगे.
अफसर अहमद की औरंगजेब नायक या खलनायक (पार्ट 3) पूरी तरह मुगल बादशाह के राजपूत राजाओं के साथ संबंधों पर आधारित है. औरंगजेब को लेकर भारतीय जनमानस में क्रूर बादशाह, हिंदुओं का सबसे बड़ा दुश्मन और एक कट्टर मुसलमान की छवि है. अफसर अहमद ने अपनी किताब में इन बिंदुओं पर ही फोकस किया है, उन्होंने औरंगजेब के व्यक्तित्व से जुड़े कई अनछुए पहलुओं पर रोशनी डाली है. उनकी किताब बताती है कि मुगलों ने भारत में हमेशा से ही सत्ता की जंग लड़ी है. राजपूत उस सत्ता में या तो भागीदार रहे या फिर उन्होंने उसका विरोध किया. लेकिन ये जंग कभी भी धार्मिक होती नहीं दिखी है, वहां हिंदू-मुस्लिम वाली लड़ाई नहीं है.
लेखक ने अपनी किताब में औरंगजेब के व्यक्तित्व को लेकर भी कई ऐसी बातें बताई हैं जो सोचने पर मजबूर करती हैं. किताब के शुरुआती चैप्टर में अफसर अहमद ने जिक्र किया है कि शाहजहां का बेटा दारा शिकोह कभी भी औरंगजेब को ज्यादा पसंद नहीं करता था. वहीं क्योंकि औरंगजेब की दरबार में छवि मजबूत होती जा रही थी, वो उसे भी अपने लिए एक खतरे के रूप में देखता था. ऐसे में उसने औरंगजेब को अपने करीबियों के बीच हमेशा 'पाजी' और 'मुल्ला' कहकर संबोधित करना शुरू कर दिया. इससे एक तरफ औरंगजेब की छवि कट्टर मुस्लिम की बनती गई, तो दूसरी तरफ दारा राजपूतों को लगातार साधने का काम करता रहा. उसे इस बात का अहसास था कि सत्ता हासिल करने के लिए राजपूतों का समर्थन जरूरी है.
किताब का एक और पहलू जो हैरत में डालता है, वो है औरंगजेब का माफ करने वाला व्यक्तित्व. अफसर अहमद ने कई किताबों और पुराने पत्रों के आधार पर ये दावा किया है कि कई मौकों पर औरंगजेब ने राजपूतों को माफ किया है. बादशाह बनने से पहले भी कई बार उन्होंने शाहजहां को पत्र लिख कई राजपूत राजाओं को माफ करने की बात की है. किताब में ये भी बताया गया है कि बादशाह बनने के बाद उसे कई मौकों पर राजा जसवंत ने धोखा दिया था, लेकिन औरंगजेब उन्हें माफ करते रहे. कारण सिर्फ ये था कि वे राजपूतों के बीच अपनी छवि को सही रखना चाहते थे, उन्हें हर कीमत पर उनका समर्थन चाहिए था.
मंदिर-मस्जिद विवाद पर भी अफसर अहमद ने कुछ पहलुओं पर रोशनी डाली है. एक चैप्टर में उन्होंने बताया है कि गुजरात में राणा जय सिंह के छोटे भाई भीम सिंह ने 300 मस्जिदों को गिराया था. लेकिन राजनीति को ध्यान में रखते हुए औरंगजेब ने भीम सिंह को सजा देने के बजाए उन्हें शाही टीम में शामिल कर लिया था. ऐसे में लेखक ने कई मौकों पर ये साफ करने की कोशिश की है कि औरंगजेब ने अपने शासनकाल में कई फैसले धर्म के आधार पर ना लेकर राजनीति साधने के प्रयास से लिए थे.
इस किताब की खास बात ये है कि लेखक ने बड़े ही सरल और रोचक अंदाज में लोगों तक ओरंगजेब की कहानी पहुंचा दी है. उनके जीवन के हर घटनाक्रम को जिस अंदाज में परोसा गया है, आप एक कहानी की तरह सब पढ़ जाएंगे और इतिहास के एक विवादित व्यक्तित्व के बारे काफी कुछ नया जान पाएंगे.
पुस्तकः औरंगजेब बनाम राजपूत- नायक या खलनायक
लेखक: अफसर अहमद
भाषाः हिंदी
प्रकाशक: इवोको पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्याः 143
मूल्यः 350 रुपये