फेक इतिहास का पर्दाफाश करने की कोशिश है ये किताब

तमाम मुद्दों पर ये किताब गहराई तक जाती है और रेफरेंस के साथ उस घटना की हकीकत सामने लाने का प्रयास करती है. कहा जाना चाहिए कि फेक न्यूज के इस दौर में ये किताब फेक इतिहास का पर्दाफाश करने की कोशिश है.

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इतिहास के 50 वायरल सच इतिहास के 50 वायरल सच

विजय रावत

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  • 25 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:03 PM IST

व्हाट्सअप को लेकर इन दिनों कुछ विज्ञापन टीवी पर खूब चल रहे हैं, जिनमें लगातार बताया जा रहा है कि इस प्लेटफॉर्म पर खुशियां फैलाइये, अफवाह नहीं. सवाल ये है कि आखिर कैसे पता लगाया जाए कि जो कंटेंट एक आम भारतीय अपने करीबियों को जानकारी देने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फॉरवर्ड कर रहा है वो सच है या प्रोपेगैंडा. आज के दौर में जब बड़े-बड़े राजनेता और पत्रकार भी फेक न्यूज को सच मानकर उसे शेयर कर बैठते हैं, तब आम आदमी के लिए सच और अफवाह में अंतर कर पाना वाकई चुनौतीपूर्ण है. लेखक और पत्रकार विष्णु शर्मा की किताब 'इतिहास के 50 वायरल सच' इसी चुनौती से जूझने की एक कोशिश है.

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'इतिहास के 50 वायरल सच' जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है ये किताब उन ऐतिहासिक घटनाओं, व्यक्तियों के बारे में है जो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. जिनका उल्लेख अक्सर राजनीतिक दलों के प्रवक्ता टीवी की बहस में एक-दूसरे पर हमला बोलने के लिए करते हैं. किताब में नेताओं के दावे, आरोप-प्रत्यारोप, सोशल मीडिया पर होने वाली बहसों से अलग उन घटनाओं को इतिहास के साक्ष्यों की कसौटी पर कसा गया है. जैसे क्या वाकई सरदार पटेल को पहले पीएम के लिए नेहरूजी से ज्यादा वोट मिले थे? क्या अकबर की अस्थियों का अंतिम संस्कार एक जाट ने जबरन कर दिया था? क्या गांधीजी जिन्ना को पहला पीएम बनने चाहते थे? क्यों एक खान हीरो की सास का नाम मुसलमानों की नसबंदी से जोड़ा जाता है? इन जैसे तमाम मुद्दों पर ये किताब गहराई तक जाती है और रेफरेंस के साथ उस घटना की हकीकत सामने लाने का प्रयास करती है. कहा जाना चाहिए कि फेक न्यूज के इस दौर में ये किताब फेक इतिहास का पर्दाफाश करने की कोशिश है.

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अक्सर 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के मौके पर वॉट्सएप और फेसबुक पर तमाम लोग इस बात पर दुख और गुस्सा जाहिर करते हैं कि इसी दिन भगत सिंह को फांसी हुई थी लेकिन देश शहीदे-ए-आजम की शहादत की बजाय वैलेंटाइन डे मनाने में व्यस्त है. इमरजेंसी पर जब भी कांग्रेस समर्थक घिरते हैं तो वे विनोबा भावे के इमरजेंसी को अनुशासन पर्व कहने का उदाहरण देते हुए आपातकाल की खूबियां गिनाने लगते हैं. इसी तरह कांग्रेस के विरोधी अक्सर पार्टी पर निशाना साधने के लिए महात्मा गांधी की आखिरी इच्छा कांग्रेस को खत्म करना बताते हैं. लेकिन क्या वाकई ये सच है या सियासी फायदे के लिए अधूरे अथवा तोड़-मरोड़ कर तथ्य पेश किए जा रहे हैं? इस सवाल का जवाब ये किताब देती है. खास बात ये है कि किताब में पेश किए गए तथ्यों अथवा घटनाओं के समर्थन में भरपूर रेफरेंस दिए गए हैं. कुछ मुद्दों पर लेखक ने खुद माना है कि उन्हें लेकर और ज्यादा अध्ययन की जरूरत इतिहासकारों को है.

लेखक विष्णु शर्मा पेशे से पत्रकार हैं. इतिहास में उनकी दिलचस्पी है. इतिहास पर आधारित अपने ब्लॉग के लिए 2016 में सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सम्मान पा चुके हैं. फेसबुक पर Correct History नाम से उनके पेज के 75 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं. उनकी पहली किताब 'गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं' थी जिसमें नाम के मुताबिक देश के उन असली हीरोज की कहानी थी जिन्हें इतिहासकारों ने या तो याद नहीं किया या फिर जिनका जिक्र भर करके आगे बढ़ गए.

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