Advertisement

Book Review: दो मुल्कों के बीच नफ़रत की गलियों में पनपे प्यार की कहानी है ‘लव इन बालाकोट’

तारीख़, विरासत, हुकूमत, आतंक, फ़ौज़, गोलीबारी, दहशत और वहशत के बीच मोहब्बत की कहानियां शायद कहीं खो जाती हैं. लेकिन स्मिता चंद की क़लम से निकलकर किताब की शक्ल में आई ‘लव इन बालाकोट’ कहानी इस बात की तस्दीक़ करती है कि प्यार अगर सच्चा हो तो सरहदों को पीछे छोड़ता हुआ कहीं भी परवान चढ़ सकता है.

लव इन बालाकोट - रिव्यू लव इन बालाकोट - रिव्यू
मोहम्मद साकिब मज़ीद
  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:36 PM IST

“मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती,
हमारे दरमियां ये फ़ासले, कैसे निकल आए.”

उर्दू शायर ख़ालिद मोईन अपने इस शेर के ज़रिए बताने की कोशिश करते हैं, “प्यार सरहदों से परे होता है. कोई भी हद और सरहद बना दी जाए, इसके रास्ते में अड़चन नहीं आ सकती.” इन्हीं ख़यालों से लबरेज़ एक सच्चे वाक़ये पर आधारित है ‘लव इन बालाकोट’. किताब में इसके साथ और भी कई कहानियां हैं. पाकिस्तान के बालाकोट का वाक़या इसका सबसे ज़रूरी हिस्सा है, जो दो मुल्कों की नफ़रतों के बीच तंग और ख़तरनाक गलियों में पनपे प्यार की कहानी है.

Advertisement

‘बालाकोट’ मोहब्बत की कहानी का एक पहलू है, इसका दूसरा पहलू जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है. पाकिस्तान और घाटी के दरम्यान दो देशों की सरहद है. ‘जम्मू-कश्मीर’ सुनते ही ज़ेहन में सबसे पहले दो लफ़्ज़ गूंजने लगते हैं- जन्नत और विवाद. जन्नत: आकाश और पाताल के बीच, विवाद: हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच. 

तारीख़, विरासत, हुकूमत, आतंक, फ़ौज़, गोलीबारी, दहशत और वहशत के बीच मोहब्बत की कहानियां शायद कहीं खो जाती हैं या फिर उन तक लोगों की नज़र नहीं पहुंचती. या यूं कहें कि शायद लोग उस तरफ़ देखने से बचते हों. लेकिन स्मिता चंद की क़लम से निकलकर किताब की शक्ल में आई ‘लव इन बालाकोट’ कहानी इस बात की तस्दीक़ करती है कि प्यार अगर सच्चा हो तो हदों-सरहदों को पीछे छोड़ता हुआ कहीं भी परवान चढ़ सकता है और अपना अलग रास्ता बना सकता है. 

Advertisement

क्या है ‘लव इन बालाकोट’?

वक़्त का फ़ैसला ऐसा भी होता है… आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के एक 15 साल के लड़के मुख़्तार को अगवा किया, उसे बालाकोट ले गए, उसके ज़ेहन में नफ़रत भरी और हाथों में बंदूक़ थमा दी. ज़ेहन में अंधेरा लिए मुख़्तार, बालाकोट की पहाड़ियों के बीच अपने अनचाहे साथियों से एक मीटिंग करने पहुंचा था, लेकिन एक ख़ूबसूरत से चेहरे पर ठहरी रोशनी और गुलाबी होठों की हंसी ने उसे आतंक का रास्ता छोड़ने की हिम्मत दी, जिस पर पर चलना कभी उसको ख़्वाब नहीं था. 

मुख़्तार किस तरह पाकिस्तान के बालाकोट पहुंचा, उसे साबिया से कैसे मोहब्बत हुई, इसका जवाब किताब पढ़ने पर ही मिलेगा. इस कहानी में एक पेच और है कि एक दफ़ा मुख़्तार को साबिया का इनकार भी झेलना पड़ा था, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि साबिया ख़ुद उसका हाल जानने के लिए अपने क़दमों से चलकर आई? इसका जवाब भी कहानी में मौजूद है.

हालात और मज़बूरी, अम्मी-अब्बू और वतन छूटने का दर्द, साबिया की मोहब्बत, शर्तें और ज़िंदगी के उसूल… मुख़्तार की ज़िंदगी इन्हीं अल्फ़ाज़ की दुनिया बनकर रह गई थी. लेकिन साबिया ने हर हद पार करते हुए अपने शौहर की मदद की और एक वक़्त ऐसा भी आया कि इस जोड़े को हिंदुस्तान की हवाओं ने अपनी आग़ोश में ले लिया. नफ़रत के खेत से निकली मोहब्बत के पौधे का एक दरख़्त में तब्दील होने का यह सफ़र संजीदा पाठक को रुलाने की ताक़त रखता है.

Advertisement

कहानी में ग़ौर करने वाली बात ये है कि एक तरफ़, मुख़्तार के ज़ेहन का अंधेरा छंटा और उसने साबिया को हासिल किया. दूसरी तरफ़, जब मुख़्तार, बीवी-बच्चों के साथ अपने वतन के लिए रवाना हुआ, तो ख़ामोश रात के अंधेरे ने उन दो बेचैन दिलों का साथ दिया. 

किताब का निचोड़ 

‘लव इन बालाकोट’ किताब कुल आठ कहानियों का कलेक्शन है. क़रीब हर कहानी में प्यार का ज़िक्र है. ख़ास बात ये है कि इनमें से तीन कहानियां सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं. क़िस्से-कहानियों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए ये ‘काम की किताब’ हो सकती है. 

किताब की लेखिका स्मिता चंद के मुताबिक़, “यह किताब बताती है कि बम और बारूद के बीच दो लोगों के प्यार के आगे कैसे दो देशों की नफ़रत छोटी पड़ जाती है.” 

पाठक की नज़र से… 

किताब की कहानियां काफ़ी इंट्रेस्टिंग हैं, जो नए पाठकों के लिए भी कोई मुश्किल नहीं पैदा करेंगी क्योंकि पढ़ते वक़्त ज़ेहन को बांधकर रखती हैं. किताब में हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी ज़बानों के लफ़्ज़ प्रयोग में लाए गए हैं, जो ऐसे हैं कि डिक्शनरी के पन्ने पलटने की ज़रूरत न के बराबर ही होगी. 

अगर किताब को भाषा के नज़रिए से देखा जाए तो, यह पाठक को निराश करती है क्योंकि कई जगह वर्तनी की अशुद्धियां हैं. इसके साथ ही कई शब्द भी ग़लत (बेपन्नाह, कबूल, सलूक, सूर्ख…) लिखे गए हैं. किताब में उर्दू अल्फ़ाज़ का तो खूब इस्तेमाल हुआ है लेकिन तलफ़्फ़ुज़ पर सिर्फ़ गिनी-चुनी जगहों पर ही ग़ौर किया गया है, जो कई बार पाठकों के लिए कन्फ़्यूज़न का मसला बन सकता है.

Advertisement

किताब: लव इन बालकोट और अन्य कहानियां 
लेखिका: स्मिता चंद 
प्रकाशक: समय प्रकाशन, नई दिल्ली 
क़ीमत: 180 रुपए 
पन्ने: 96

यहां ऑर्डर करें

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement