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योगेश मिश्र की पुस्तक ‘समय के आलेख’ वास्तव में समय के दस्तावेज ही है. लगभग एक ऐतिहासिक युग की काल गाथा. इसमें से भी उन मुद्दों और चिंताओं को मील के पत्थर की भांति शब्दाकार चित्रित कर सकने की क्षमता निश्चय ही लेखक योगेश मिश्र की संवेदना और रचनाधर्मिता को विशेष दर्जा प्रदान करती है.
समय के आलेख का प्रथम लेख विदाई की संवेदना से शुरू हुई चिंतातुर प्रश्न यात्रा पुस्तक के आखिरी सोपान गीतकार की उपेक्षा तक जिस अविरलता से चल रही है वह अपने आप में अद्भुत है. किसी भी लेखक की यह सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है कि उस समय को वह कितना और की तरह से चित्रित कर पाता है.
यहां मुझे यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि योगेश जी ने अपने इन निबंधों में समय को ही गढ़ा है. उनको समय के आगे चले जाने का उतना दर्द नहीं है जितना की समय की जटिलताएं और विकृतियां उनको परेशान करती है. उदाहरण के लिए अंबेडकर को हथियार मत बनाइए, आंगन का सिमटता लोकतंत्र, जन गण मन, भारतीय भाषा, बाजार में खड़ी सुंदरता, विश्व में वीरता की कहानी रह जाएगी, हिन्दू होने का निहितार्थ, हमारे गणतंत्र के धब्बे, कबीर का मगहर शीर्षक के उनके निबंधों की चोट और पीड़ा हर सामान्य भारतीय की पीड़ा बन लार उभरती है. हालांक ये निबंध किसी खास समय पर लिखे गए है लेकिन इनकी अतिशय सम्प्रेषणीयता और प्रासंगिकता लेखक के फलक से रूबरू कराने में बेहद संजीदा जान पड़ते है.
योगेश की लेखन शैली की एक बड़ी विशेषता यह है कि वह हर शब्द के साथ संवाद करते चलते हैं. इससे इनके निबंध और भी प्रासंगिक बन जाते हैं. पुस्तक की भूमिका में अच्युतानंद मिश्र की यह टिप्पणी बिलकुल सटीक है कि योगेश ने इस पुस्तक के माध्यम से सकारात्मक हस्तक्षेप की साहसिक पहल की है.
ललित निबंधों की शैली और बुनावट, गहरी पीड़ा, आवेग के साथ विसंगतियों पर चोट और काव्यात्मक गद्य का आकर्षण इन लेखों की पठनीयता को और भी रुचिकर बना देता है. योगेश का वैचारिक फलक बहुत व्यापक है. सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित योगेश मिश्र की यह पुस्तक वास्तव में समय का ही आलेख है.