
दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आज शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आगाज हुआ. तीन दिन चलने वाले इस कार्यक्रम में पहले दिन साहित्य से लेकर सिनेमा तक कई दिग्गजों ने हिस्सा लिया. इस दौरान 'आओ जीना सीखें' विषय पर चर्चा हई, जिस पर मशहूर लेखक और अद्वैत शिक्षक आचार्य प्रशांत ने अपने विचार व्यक्त किए.
आचार्य प्रशांत ने युवाओं के बारे कहा,'युवा चाहते हैं कि जिंदगी का ऊंचे से ऊंचा इस्तेमाल करें, लेकिन उन्हें कहीं भी आदर्श नहीं दिख रहे होते हैं. उनके पास पहले से तयशुदा पटकथा होती है. जैसे किस तरह की पढ़ाई करनी है, शादी-बच्चे या किस तरह के समाज में रहना है. उनके पास पहले से तमाम दबाव मौजूद होते हैं. उन्हें उस चीज की प्रेरणा या दिशा नहीं मिलती कि जो दिल चाहता है, वह करें. ऐसे में जब भी युवाओं को पता चलता है कि एक अलग तरह से भी जिया जा सकता है तो वे बहुत खुश हो जाते हैं.
सुरक्षित जिंदगी जीने की कीमत बहुत भारी
अचार्य प्रशांत ने आगे कहा,'यह कभी नहीं मानना चाहिए कि कोई भी चीज तय कर दी गई है इसलिए सही है. मैं यह नहीं कह रहा कि मान्यताएं गलत हैं, उन्हें खारिज कर दो. लेकिन जो दुनिया कर रही है, आपको करने के लिए कह रही है उसे परखो. परखने का अपना अधिकार कभी नहीं छोड़ना चाहिए.' उन्होंने आगे कहा कि लोगों को सही तरह से अपने अधिकारों के साथ जीना चाहिए. एक सहमी हुई सुरक्षित जिंदगी जीने की बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ती है. हम पैदा हुए हैं तो हमें चुनौतियां भी स्वीकार करनी होंगी. दर्द भी हमें ही सहन करने होंगे.
महिलाओं के हिमायती क्यों हैं आचार्य प्रशांत?
आचार्य प्रशांत से जब पूछा गया कि वह महिलाओं की प्रगति के बहुत बड़े हिमायती हैं तो उन्होंने कहा,'लोग मुझे कहते हैं कि आप स्त्रियों का समर्थन करते हैं. उन्हें सशक्त करने के लिए इतनी बातें कहते हैं. कई लोग तो यह भी कहते हैं कि आप उन्हें भड़का रहे हैं. अगर चार महिलाएं यहां मेरे समर्थन में मौजूद हैं तो इसके पीछे 40 पुरुष ऐसे भी होंगे, जो मेरे बारे में कुछ अलग कह रहे होंगे. आप जिसे गुलाम बनाओगे वो तुम्हें भी पलटकर गुलाम बनाएगा. आप किसी को फलने-फूलने नहीं दोगे तो वह भी बदला लेगा.'
आचार्य प्रशांत ने बताया- क्यों तरक्की करते हैं देश
स्त्रियों के अधिकारों की हिमायत करते हुए आचार्य प्रशांत ने कहा,'हम अपनी भलाई चाहते हैं तो दुनिया की आधी आबादी को पूरी संभावना तक आगे आने का अधिकार देना होगा. दुनिया में स्त्री अगर चैतन्य या एक जीव की तरह अपने अधिकार नहीं पाएगी, तो उस समाज की स्थिति कभी अच्छी नहीं होगी. हमें लगता है कि हम अलग हैं वो अलग हैं, लेकिन वह डूबेगा तो आपको भी ले डूबेगा. अगर मां सशक्त और शिक्षित नहीं है तो वह अपने बच्चों के लिए क्या कर पाएगी? आप दुनिया के उन देशों की तरफ देखी जो ज्ञान की वजह से सबसे ज्यादा तरक्की कर रहे हैं, उन देशों में आप पाएंगे की महिलाएं देश का नेतृत्व में शामिल हैं. दूसरी तरफ उन देशों को देखिए, जहां राष्ट्र गर्त में जा रहे हैं तो आप देखेंगे, वहां महिलाओं को कैद करके, बेड़ियों में रखा जा रहा है.'
जितनी ज्यादा जरूरतें, उतनी ज्यादा मुसीबत
उन्होंने आगे कहा,'चिंता और चिंता में ही अंतर होता है. एक चिंता हमें खा जाती है और एक चिंता हमें बना जाती है. दिक्कत यह है कि हमनें बहुत छोटी-छोटी चिंताएं पकड़ रखी हैं. जहां हमें कुछ मिल भी जाए तो कुछ सार्थक नहीं होगा. क्या मैं इस बात की चिंता करूं कि मेरे पास कपड़ा नहीं है, जूते नहीं है या इस बात की चिंता करूं कि हर 15 मिनट में इस दुनिया में कई प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी. अगर हम अड़चनों को छोटा करना चाहते हैं तो हमें अपनी जरूरतों को छोटा करना होगा. जितनी ज्यादा जरूरतें होंगी, रोजमर्रा की जरूरतों में ही हमें खप जाना होगा.'
जितना जरूरी, उतना ही कमाएं
आचार्य प्रशांत ने आगे कहा,'पेट चलाने के लिए घर चलाने के लिए जितना जरूरी है, उतना जरूर कमाना चाहिए. उसके बाद ही आप पाएंगे कि आपके पास बहुत सारी ऊर्जा बची हुई है. उसे सार्थक कामों में लगाइए.' उन्होंने ग्लोबल वॉर्मिंग पर बातें करते हुए कहा कि अक्टूबर के महीने में कुछ दिन ऐसे आए, जब दुनिया का तपमान औसत डिग्री से दो डिग्री ज्यादा चला गया. दुनिया के देश यह प्लान बना रहे हैं कि दुनिया का तापमान किसी भी हालत में औसत से 1.5 डिग्री से ज्यादा नहीं जाने देना है, लेकिन अभी दो डिग्री से ऊपर चला जा रहा है. हमें इसकी फिक्र करनी होगी.'