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जावेद अख्तर. जावेद जांनिसार अख्तर. हिन्दुस्तान की सरजमीं का एक ऐसा नाम जिसे हिन्दुस्तान की सारी कौमें समान रूप से पसंद करती हैं. जो उर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी पर समान रूप से पकड़ रखते हैं. जिनके गीतों और शायरियों को गुनगुनाते हुए हमारी सारी पीढ़ी बड़ी हुई है. तुमको देखा तो ये खयाल आया, जिन्दगी धूप तुम घना साया तो भूले नहीं होंगे आप.
शायरी जिनकी जुबान पर स्वत: ही आती है और फिर धीरे-धीरे सारी यंग जनरेशन के मार्फत फिजां में घुल जाती है. वे भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री के मशहूर गीतकार, कवि और पटकथा लेखक होने के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. वे भाषा पर जितनी अच्छी पकड़ रखते हैं. ठीक वैसी ही पकड़ राजनीतिक मसलों पर भी रखते हैं. विश्वास न हो तो संसद में उनकी अलग-अलग मसलों पर स्पीच सुनें. खेल की भाषा में कहें तो वे हरफनमौला हैं.
विरासत में लगाया काबिलियत का तड़का...
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे, हमने क्या खोया, हमने क्या पाया जैसे गीतों का गिफ्ट देने वाले जावेद अख्तर साब को बहुत कुछ विरासत में मिला है. उनके पिता जांनिसार अख्तर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि थे और मां सफिया अख्तर मशहूर उर्दू लेखिका और शिक्षिका थीं. वे मजाज के भांजे हैं और अपने जमाने के मशहूर शायर मुज्तर खैराबादी उनके दादा थे.
वे जिंदगी से कुछ इस तरह सवाल करते हैं जैसे जिंदगी उनकी महबूबा हो. बेवफ़ा तुम नहीं-बेवफ़ा हम नहीं, फिर वो जज़्बात क्यों सो गये. प्यार तुम को भी है, प्यार हम को भी है. फ़ासले फिर ये क्या हो गये, ये बता दे मुझे ज़िन्दगी.
अगर आप भी उनके ठीक उसी तरह फैन हैं जिस तरह हम हैं तो आपके पास उनसे रू-ब-रू होने का सुनहरा मौका है. वे आगामी 12 नवंबर (शनिवार) को दिल्ली में होंगे. वे आज तक साहित्य महाकुंभ में शिरकत करने दिल्ली आ रहे हैं. उन्हें आप इंडिया गेट के नजदीक इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स में सुन सकते हैं. वे वहां 'दिल चाहता है' कार्यक्रम में शिरकत करेंगे. आप उनसे वहां स्टेज 1 (मेन लॉन) में 11 बजे से 12 के बीच रू-ब-रू हो सकते हैं.
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12-13 को दिल्ली में लगेगा साहित्य के सितारों का महाकुंभ, देखें पूरा शेड्यूल