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जब साहित्य आज तक में गूंजेगी मंच पर आग लगा देने वाली डॉ हरिओम पंवार की कविताएं

इस साल भी साहित्य का महाकुंभ दिल्ली के इंडिया गेट स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 16, 17 और 18 नवंबर को आयोजित हो रहा है. जिसमें 200 से भी अधिक विद्वान, कवि, लेखक, संगीतकार, अभिनेता, प्रकाशक, कलाकार, व्यंग्यकार और समीक्षक हिस्सा ले रहे हैं.

डॉ हरिओम पंवार डॉ हरिओम पंवार
राहुल झारिया
  • नई दि‍ल्‍ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:10 AM IST

नई दिल्ली में साहित्य आज तक के मंच पर कवि सम्मेलन तो होगा ही, साथ ही एक सत्र डॉ. हरिओम पंवार के नाम भी है. डॉ पंवार भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान के कवि हैं. उनकी कविताओं में देश की आन, बान, शान ही नहीं उसे लेकर उनका जुनून भी साफ झलकता है. वीर रस और देशभक्ति उनकी पहचान है.

डॉ. हरिओम की कविताएं आग उगलती हैं. 'मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं' जैसी कविता से उन्होंने देश के हर हिंदीभाषी घर और देशभक्त युवाओं के दिल में जगह बनाई है. उन्हें पद्मभूषण से नवाजा जा चुका है. साहित्य आज तक के पाठकों के लिए उनकी चर्चित कविताः

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'मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं'

मेरे वादे समता के हैं, दीन दुखी के ममता के हैं

कोई भूखा नहीं रहेगा, कोई आंसू नहीं बहेगा ,

मेरा मन क्रंदन करता है, जब कोई भूखा मरता है

मैं जब से आजाद हुआ हूँ , और अधिक बर्बाद हुआ हूँ ,

मैं ऊपर से हरा भरा हूँ, संसद में सौ बार मरा हूँ

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

मैंने तो उपहार दिए हैं, मौलिक भी अधिकार दिए हैं

जीने का अधिकार दिया है, धर्म कर्म  संसार दिया है ,

सबको भाषण की आज़ादी,  कोई भी बन जाओ गाँधी

लेकिन तुमने अधिकारों का, मुझमे लिखे उपचारों का,

ये कैसा उपयोग किया है, सब नाजायज घोप दिया है

मेरा यूं  अनुकरण किया है, मानो सीता हरण किया है ,

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आरक्षण को बढ़ा बढ़ा कर राज्य में समता बाँट रहे हैं

निर्मम द्रोण एकलव्यों के रोज अंगूठे काट रहे हैं,

मैंने तो समता सौपी थी, तुमने फर्क व्यवस्था कर दी

मैंने न्याय व्यवस्था की थी, तुमने नर्क व्यवस्था कर दी,

हर मंजिल थैली कर डाली, गंगा भी मैली कर डाली

शांति व्यवस्था हास्य हो गई, विस्फोटों का भाष्य हो गई ,

आज अहिंसा वनवासी है, कायरता के घर दासी है

न्याय व्यवस्था भी रोती है, गुंडों के घर में सोती है,

गाँधी को गाली मिलती है, डाकू को ताली मिलती है

क्या अपराधिक चलन किया है, मेरा भी अब हरण किया है,

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

मैं चोटिल हूँ, क्षत विक्षत हूँ, मैंने यूँ आघात सहा है

जैसे घायल पड़ा जटायु, हारा थका कराह रहा है,

जिंदा हूँ  या मरा पड़ा हूँ, अपनी नब्ज टटोल रहा हूँ

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

मेरे बदकिस्मत लेखे है, मैंने काले दिन देखे हैं

हिंसा गली-गली देखी है. मैंने रेल जली देखी है,

संसद पर हमला देखा है, अक्षरधाम जले देखा है

मैं दंगो में जला पड़ा हूँ, आरक्षण से छला पड़ा हूँ  ,

मुझे निठारी नाम मिला है, खूनी नंदीग्राम मिला है

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माथे पर मजबूर लिखा है, सीने पर सिंगूर लिखा है,

पूरा भारत आग हुआ है, जलियांवाला बाग़ हुआ है

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ ॥

मेरा गलत अर्थ करते हो, सब  व्यर्थ करते हो,

खूनी फाग मनाते तुम हो, मुझ पर दाग लगाते तुम हो,

मुझमें खोट समझने वालो, मुझको वोट समझने वालो

मेरे प्यारो आँखे खोलो, दिल पे हाथ रखो फिर बोलो ,

जैसा हिंदुस्तान दिखा है, ऐसा मुझमे कहां लिखा है

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

मेरे तन में अपमानों के भाले ऐसे गड़े हुए हैं

जैसे शर-शैया के ऊपर, भीष्म पितामह पड़े हुए हैं,

मुझको धृतराष्ट्र के मन का, गोरखधंधा बना दिया

पट्टी बांधे माँ गांधारी, जैसा अँधा बना दिया है,

मेरे पहरेदारों ने ही, मुझमें बोये ऐसे कांटे

जैसे कोई बेटा बूढी माँ को मार रहा हो चांटे,

मजहब के अंधे जुनून का मुझे तमाशा बना दिया है,

मामा शकुनी के चौसर का मुझ को पासा बना दिया है,

छोटे कद के अवतारों ने, मुझको बौना समझ लिया है

अपनी अपनी खुदगर्जी के लिए खिलौना समझ लिया है,

इतिहासों में पढ़ कर रोना, क्यों खंडित भूगोल रहा हूँ

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

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मेरी धारा को मत मोड़ो, मेरे संयम को मत तोड़ो

चाहे मौसम शर्मिंदा है, लोकतंत्र मुझसे जिंदा है ,

मैं  टूटा तो सब टूटेगा, जो कुछ है वो भी छूटेगा

मैं हूँ तो आजाद वतन है, डेमोक्रेसी देश चलन है,

मैं टूटा तो विप्लव होगा, होना अनहोना सब होगा

मेरी मौत तबाही देगी, तुमको तानाशाही देगी,

आज़ादी भी जा सकती है, पुनः गुलामी आ सकती है

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

लेकिन अभी समय बाकी है, ढाई अरब हाथों का बल दो

जिनसे  मेरी रक्षा न हो, ऐसे पहरेदार बदल दो,

जिनको मुझसे प्यार नहीं है, वो मुझ पर भाषण मत देना

जिनके दिल में देश नहीं है, उनको सिंहासन मत देना,

नेताओं के पाप-पुण्य से मेरा वर्तमान मत आंको

मैं अखंडता का मंदिर हूँ, मेरे अंतर्मन में झांको,

मैं वैधानिक शिलालेख हूँ, दल बदलू औजार नहीं हूँ

और दलालों की मंडी का मैं शेयर बाज़ार नहीं हूँ,

लाल किले से जब मर्दानी भाषा में बोला जायेगा

मुझमे कितना बल होता है, ये उस दिन तौला जायेगा,

झंझावातों से घबराकर झुकने वाला दौर नहीं हूँ

ये डंके की चोट बता दो, भारत हूँ, कोई और नहीं हूँ,

आतंकों से लड़ने वाला मुझको शक्तिमान बना लो

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मुझको अपना राम समझ कर, जनता को हनुमान बना लो,

मेरे बेटे मुझमें लिखे कर्तव्यों पर पैदा होंगे

मेरी कोख बचा कर रखना, फिर से गाँधी पैदा होंगे ,

शायद नया खून जागेगा, इसीलिए मैं खौल रहा हूँ

मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ॥

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