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Sahitya Aaj Tak 2022: ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में देखते थे मोरारी बापू, आखिरी फिल्म पाकीजा देखी

Sahitya Aaj Tak 2022: साहित्य आजतक के कार्यक्रम में संत मोरारी बापू ने कहा कि मैं अब फिल्म देखने नहीं जा सकता हूं. आखिरी फिल्म मैंने पाकीजा देखी थी. काफी साल हो गए. अब क्या है कि फिल्म देखने जाएं तो वहां लोग पैर छूने आ जाते हैं. इसलिए गड़बड़ हो जाती है. उन्होंने फिल्मों को लेकर कहा कि युवाओं के लिए संदेश होना जरूरी है.

साहित्य आजतक 2022 में संत मोरारी बापू. साहित्य आजतक 2022 में संत मोरारी बापू.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:25 PM IST

Sahitya Aaj Tak 2022: ठीक दो साल बाद साहित्य आजतक का मंच एक बार फिर सज गया है. आज से 20 नवंबर तक यानी पूरे तीन दिन दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में साहित्य का मेला लग गया है. इस कार्यक्रम में कथावाचक मोरारी बापू भी शामिल हुए. उन्होंने आजतक के शो ब्लैक एंड व्हाइट का स्वागत किया और खुद के ब्लैक एंड व्हाइट कपड़ों को लेकर भी बताया. उन्होंने ये भी बताया कि सिनेमा में जाकर आखिरी फिल्म पाकीजा देखी थी. इसके साथ ही मोरारी बापू ने फिल्में देखने और उनके संदेश पर भी चर्चा की.

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मोरारी बापू से सवाल किया गया कि 'आजतक' पर हमारा शो है- ब्लैक एंड व्हाइट. आप भी 'ब्लैक एंड व्हाइट' पहनते हैं. आप कथा में भी बताते हैं कि ब्लैक क्या है और व्हाइट क्या है. मैं भी यही कोशिश करता हूं. आपको क्या लगता है कि 'ब्लैक एंड व्हाइट' को बता पाना आसान है? इस पर उन्होंने कहा कि अंधेरा और उजाला जुड़ा हुआ रहता है. अंधेरे को हम काला कहते हैं और उजाले को हम श्वेत कहते हैं. श्वेत का मतलब ये है कि जिसमें कोई दाग ना हो. अंधेरे का मतलब ये है कि उसमें कोई दाग लगा नहीं सकता है. 

पहले तो बचपन में ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में ही देखीं

मोरारी बापू ने कहा- मैं ब्लैक एंड व्हाइट में रहता हूं. आपका शो भी इसी नाम से रहता है. उसका स्वागत करता हूं. पहले तो बचपन में हमने ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म ही देखी है. मनुष्य शरीर का रचना देखिए- पहले ब्लैक था, अब व्हाइट हो गया. उसमें कोई दूसरा रंग चढ़ाना चाहे तो मैं क्या करूं. जब उनसे सवाल किया कि क्या आप सिनेमा देखते हैं? इस पर उन्होंने कहा- पहले बहुत देखा है. अब नहीं. अगला सवाल पूछा गया कि आपको ब्लैक एंड व्हाइट का दौर ही पसंद था या अब भी... इस पर उन्होंने कहा- सब, हमको तो देशकाल... जो भी मंगल हो. जहां क्लीसिकल म्यूजिक हो. जहां भारतीय नृत्य हो. जहां कोई संदेश वाला गीत हो. जहां युवाओं को उकसाने वाला नहीं, उनमें कुछ उगाने वाला तत्व या डायलॉग हो. ऐसी फिल्में तो अच्छी हैं. 

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इसलिए अब सिनेमा नहीं जाते हैं मोरारी बापू

मोरारी बापू का कहना था कि मैं अब फिल्म देखने नहीं जा सकता हूं. आखिरी फिल्म मैंने पाकीजा देखी थी. काफी साल हो गए. अब क्या है कि फिल्म देखने जाएं तो वहां लोग पैर छूने आ जाते हैं. इसलिए गड़बड़ हो जाती है. पसंदीदा कलाकर, नेता या खिलाड़ी के नाम पूछे जाने पर उन्होंने कहा- मुझे पूरा देश पसंद है. पूरी पृथ्वी पसंद है. पूरे विश्व से प्यार करता हूं. 

त्रेता युग में रावण से त्राहिमाम थी पूरी धरती

मोरारी बापू ने पूछा गया कि ऋग्वेद से लेकर रोबोट के युग तक हम राम को फॉलो करते आए हैं. पिछले दो साल से अंधकार देखा है. आज उस अंधकार से निकलकर सामने आए हैं. इन बदलावों से कैसे निपटेंगे. तनाव, क्रोध और असंतोष से कैसे से निपटने पर क्या कहना चाहेंगे? इस पर उन्होंने कहा- समय एक ऐसा भी था, जिसको हम त्रेता युग कहते हैं. राम भी त्रेता युग में आए. कोरोना पूरी दुनिया में बर्दाश्त किया. त्रेता में रावण के रूप में रोग छाया था. आसुरी वृत्ति का. पूरी धरती त्राहिमाम थी. देवता से लेकर पृथ्वी तक परेशान थी. सबसे अपने ढंग से प्रयत्न किए. फिर दुनिया निकल गई. तब तीन बातें कहीं गईं. 
सबसे पहले ऐसी परिस्थितियों से निकलने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए. वो प्रमाणिक करना चाहिए. हमने आज किया और इससे बाहर आए. पुरुषार्थ करनेवाले सीमित लोग हैं.
दूसरी- परमतत्व के प्रति आस्था हो. उससे एक पुकार हो. सर्वसम्मत पुकार हो. ऋग्वेद पुराना वेद कहता है कि पुकार भी एकसाथ होना चाहिए. पुकार प्रमाणिक होनी चाहिए.
हम उदास और निराश हो जाते हैं.
तीसरी स्थिति है- प्रतीक्षा करना. प्रतीक्षा भी प्रमाणिक होनी चाहिए. ये तीनों चीजें राम का जन्म करा सकती हैं. 
प्रमाणिक पुरुषार्थ, प्रमाणिक पुकार और प्रमाणिक प्रतीक्षा के बाद जो शुभ परिणाम आए, वो सब रामतत्व है. इसी तरह आगे बढ़ रहे हैं और आगे राम तत्व महसूस कर सकेंगे.

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