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गांधी, नेहरू और सावरकर... साहित्य आजतक में आजादी के कालखंड पर क्या बोले विद्वान लेखक

दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आखिरी दिन है. यह कार्यक्रम 24 नवंबर से शुरू हुआ था. यहां किताबों की बातें हो रही हैं. फिल्मों की बातें हो रही हैं. सियासी सवाल-जवाब किए जा रहे हैं और तरानों के तार भी छेड़े जा रहे हैं.

साहित्य आजतक के मंच पर उपस्थित लेखक. साहित्य आजतक के मंच पर उपस्थित लेखक.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:43 AM IST

Sahitya Aaj Tak 2023: दिल्ली में 24 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आज अंतिम दिन है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के मंच पर 'गांधी, नेहरू और सावरकर' नाम के सेशन में महत्वपूर्ण चर्चा
की गई.

इस सेशन में 'गांधी कथा' के लेखक और पत्रकार अरविंद मोहन, 'सावरकर- काला पानी और उसके बाद' के लेखक अशोक पांडेय, आरएसएस और गांधी के लेखक, राजनीतिक विश्लेषक व स्तंभकार प्रो. संगीत कुमार रागी, 'नेहरू: द डिबेट्स दैट डिफाइंड इंडिया के लेखक' त्रिपुरदमन सिंह शामिल हुए.

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लेखक अशोक पांडेय ने कहा कि दो सावरकर हैं, एक जेल जाने से पहले और एक माफी मांगकर जेल से बाहर आने के बाद. जेल जाने से पहले के सावरकर हम सबके लिए सम्मानित हैं, जेल से आने के बाद वाले नहीं. हिंदू मुस्लिम एकता को लेकर गांधी हमेशा से कदम उठाते रहे. उन्होंने यह भी कहा कि नेहरू ने कभी कोई भी माफीनामा नहीं लिखा. उन्होंने कहा कि पार्टी फैसला लेती है कि कौन अध्यक्ष और कौन प्रधानमंत्री बनेगा. इस पर जो सवाल उठाते हैं, उनकी पार्टी में कौन फैसले लेता है.

वहीं प्रो. संगीत कुमार रागी ने कहा कि सावरकर को लेकर वैचारिक हिंसा और वैचारिक दरिद्रता भी दिखती है. उन्होंने कहा कि जो कोई भी सावरकर को ठीक से पढ़ा है, वो जानता है कि सावरकर क्या थे. गांधी मानते थे कि जब तक हिंदू और मुसलमान साथ नहीं आते हैं, तब तक आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती. वहीं सावरकर मानते थे कि यदि हिंदू संगठित होगा तो आजादी हासिल की जा सकती है. सावरकर और नेहरू के जेल में रहने में जमीन आसमान का अंतर है. नेहरू ने एक भी आंदोलन का कभी नेतृत्व नहीं किया. इस देश के विभाजन पर सावरकर के हस्ताक्षर नहीं थे. 

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पत्रकार और लेखक अरविंद मोहन ने कहा कि गांधी हिंद स्वराज की राजनीति नहीं कर रहे थे. गांधी जी ने जितनी तैयारी से देश की आजादी की लड़ाई लड़ी है, वो आसानी से समझ में नहीं आने वाली. उन्होंने देश से कई सामाजिक बुराइयों को दूर करने का काम किया है. दुनिया में किसी भी आजादी की लड़ाई में औरतें जेल नहीं गईं, जबकि गांधी ने कस्तूरबा के साथ एक ऐसा मूवमेंट शुरू किया, जिसे सिर्फ औरतों ने लीड किया. गांधी ने दलितों के लिए क्या नहीं किया. गांधी के साथ मुल्क के लोगों ने आजादी की लड़ाई लड़ी. गांधी की इमेज आर्ट विरोधी बनी है. गांधी को लोगों ने पढ़ा ही नहीं है, उन्हें लोगों ने समझा ही नहीं है. 

उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई के लिए सावरकर बड़ा नहीं है. ये आज की पॉलिटिक्स के लिए सबकुछ हो रहा है. पिछले लोगों की सारी कुर्बानियां सिर्फ इसलिए भुला दीजिए कि वो आपकी आज की राजनीति को शूट नहीं करता है तो ये गलत है. दुनिया के लगभग सारे देशों में गांधी की मूर्ति लगी है, और जहां गांधी की मूर्ति लगी है, वहां सूरज आज भी नहीं डूबता है. उन्होंने कहा कि नेहरू किसी षड्यंत्र से प्रधानमंत्री नहीं बने थे. बड़ी चर्चा के बाद गांधी ने नेहरू को चुना था.

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वहीं त्रिपुरदमन सिंह ने कहा कि गांधी के शिष्य ही गांधी के विचारों से दूर हो गए. गांधी की मूर्ति तो सब जगह पर लगी है, लेकिन गांधी के विचारों को भुला दिया गया है. गांधीवादी सोच को 1946 से ही दरकिनार कर दिया गया. वीर सावरकर के माफी मांगने के मुद्दे पर त्रिपुरदमन सिंह ने कहा कि अगर माफी मांग भी तो इससे उनका पुराना योगदान तो खत्म नहीं हो जाता और दस साल और जेल में रहते तो क्या हो जाता. यह सवाल मैं आज जरूरी नहीं समझता. ये सिर्फ आज की राजनीति के लिए सवाल किया जाता है.

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