
शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का शुभारंभ शुक्रवार को दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में हुआ. आज (शनिवार) कार्यक्रम का दूसरा दिन है. इसमें साहित्य आकादमी और सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार, कवि रामदरश मिश्र ने विचार व्यक्त किए.
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए रामदरश मिश्र ने कई गुजरे पल याद किए. बतौर रामदरश मिश्र उनका बचपन गांव में बीता. रामदरश मिश्र ने बताया कि मैं गांव से चला और शहर में आया. मेरे गांव में बाढ़ आ जाती थी. बचपन का समय गांव में कई बार मुश्किल में बीता. मेरी पढाई गांव में शुरू हुई. उन्होंने बताया कि मेरी मेधा चमत्कारी नहीं है. मैं धीरे धीरे सीखता हूं. मेरी मां का मुझपर बहुत भरोसा रहा. मां ठंड के दिनों में एक दिन आग के पास बैठी थी, मैं साथ था. मां ने बुझे आग के राख से मुझे क, ख, ग लिखना सीखाया.
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कवि ने बताया कि मैं एक अच्छा विद्यार्थी रहा. उन्होंने अपने कवि बनने के सफर पर बताया कि मैं जब किताबों में कविता पढ़ता था तो सोचता था कि काश मैं भी लिखूं. और फिर इस तरह मेरी कविता की शुरुआत हुई. मुझे लोकगीत काफी पसंद है. पाठ्यपुस्तक की कविता से मुझे प्रेरणा मिली और फिर मैंने लिखना शुरू कर दिया.
साहित्य आज तक के मंच पर उन्होंने अपनी लिखी कई कविताओं की दो-दो पंक्तियां सुनाईं. एक कविता कौन हो तुम... उन्होंने सुनाया. इसके अलावा कविता 'चिड़िया' सुनाया. इसके अलावा उन्होंने अपनी लिखी कई और कविता की फेहरिश्त में से दो-दो लाइन की कविता सुनाई.
रामदरश मिश्र ने अपनी लिखी गजल, बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे सुनाया. उन्होंने एक दूसरी गजल सुनाया. कहां कहां गया मैं किन्तु राह से डरा नहीं.