
Sahitya AajTak 2024: शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का कोलकाता में आज आगाज हो गया. यह 17 फरवरी से 18 फरवरी तक चलेगा. पहले दिन तीन बजे के सेशन, 'क्योंकि कविता ज़रूरी है' में चार कवियों ने शिरकत की. कवयित्री, मुन्नी गुप्ता, कवि अनिल पुष्कर, कवि आनंद गुप्ता और कवयित्री पूनम सोनछात्रा ने दर्शकों को कविता के बारे में बताया. सभी ने अपनी कविता के चंद पंक्तियां भी सुनाईं.
'कविता के लिए सिर्फ सवेंदना जरूरी है'
पूनम सोनछात्रा ने कहा कि कविता के लिए सिर्फ सवेंदना जरूरी है. समझ जरूरी है. कविता के जरिये अपनी भावनाओं को व्यक्त किया जाता है. उन्होंने कहा कि सुख से भी कविता रची जाती है. अगर हम कहते हैं कि कविता किसी ऊंचाई तक पहुंची है, तो हम अपने सोच और समझ से इसका निर्धारण करते हैं. उन्होंने हरिवंश राय बच्चन का भी जिक्र किया. पूनम ने कहा कि कोई भी इंसान हमेशा एक सी स्थिति में नहीं हो सकता. सुख-दुख तो लगते रहते हैं. उन्होंने एक कविता की पंक्तियां पढ़ीं, हमारी भाषा में चांद को चांद कहते हैं...वह अपनी हर जरूरत को चांद कहता है...
ऊब नामक शीर्षक से उन्होंने एक और कविता सुनाई...
उबने की कोई उम्र नहीं होती, न ही कोई निश्चित वातावरण...
मुन्नी गुप्ता ने प्रेम से जुड़ी एक कविता की पंक्तियां पढ़ीं...चिड़िया प्रेम में हीर होना चाहती है, दीवानगी में लैला. लेकिन समंदर प्रेम में सिकंदर होना चाहता है. उन्होंने समंदर दूंढ रहा है पानी...समंदर ढूंढ रहा है जमीन.
साहित्य आज तक में शिरकत कर रहे अनिल पुष्कर ने एक कविता सुनाई, जिसका शीर्षक है, राम और आग का खेल...
इसके बाद उन्होंने मरी हुई मछलियां, नदी और प्यार शीर्षक से कविता सुनाई. नदी अभी अभी उड़ेल गई मछलियों का भारी भरकम रेला...
तुम पाखी हो, और मैं पंख...
ये दुनिया में एक नदी है...
इस प्यार की नदी में उतर कर देखो, कई भंवर आएंगे, पार कर जाना...ये इश्क दुनिया है, और ये दुनिया नदी है इश्क की, यूं ही चलते जाना...
मैं प्राण हूं, तुम्हारे पास ये जिस्म का खोल उतार कर जा रहा हूं...
एक बार बारिश हुई मन के सारे दाग धुल गए...
कार्यक्रम में शिरकत रहे आनंद गुप्ता ने एक कविता की पंक्तियां पढ़ी, जिसका शीर्षक था...हुगली के तट पर...
पिछली रात की याद लेकर चांद अभी भी टंगा है आकाश में...
अनलिखी कविताएं सबसे ज्यादा परेशान करती हैं...
मुझमें उतर कर हर रोज इन्हें थोड़ा थोड़ा पढ़ा करो
जैसे पके हुए आम में सूरज सीधे उतर आता है...