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Sahitya AajTak Lucknow 2024: 'अपनी विरासत के साथ आधार बनाए रखना जरूरी...' साहित्य आजतक में बोले लेखक अर्पण कुमार

Sahitya AajTak Lucknow 2024: यूपी की राजधानी लखनऊ में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक लखनऊ 2024' का आज दूसरा दिन है. इस महामंच पर किताबों की बातें हो रही हैं. शायरी की महफिल सजी. सवाल-जवाब हो रहे हैं और तरानों के तार भी छेड़े गए. इस दौरान लेखकों ने आज के लेखन पर अपने विचार रखे.

साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद अतिथि. साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद अतिथि.
aajtak.in
  • लखनऊ,
  • 21 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 4:18 PM IST

Sahitya AajTak Lucknow 2024: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आज 'साहित्य आजतक-लखनऊ' के दूसरे संस्करण का दूसरा दिन है. यह आयोजन शनिवार को शुरू हुआ था. ये आयोजन अंबेडकर मेमोरियल पार्क गोमती नगर में हो रहा है. इस दो दिवसीय कार्यक्रम में जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं.

साहित्य के महामंच पर दूसरे दिन 'लिखें अपने कल के वास्ते' सेशन में जाने माने कवि और लेखक शामिल हुए. इस दौरान कवि-लेखक अर्पण कुमार, कवयित्री व लेखिका सबाहत आफरीन और कवयित्री व लेखिका निधि अग्रवाल ने अपने विचार रखे.

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लेखक अर्पण कुमार ने कहा कि कल के लिए लिखना इसलिए जरूरी है कि हमारा जो आज है, उसका डॉक्यूमेंटेशन कैसे होगा. जब हम युवाओं की बात कर रहे हैं तो हम पाते हैं कि एक नारा किस तरह से विचार बन जाता है. हमारे अपने जीवन के उतार चढ़ाव के साथ कैसा संबंध है, इसे हम समझ सकते हैं. आज कई लोग अच्छा लिख रहे हैं. हम आज से कैसे जुड़ें, ये बेहद आवश्यक है, इसलिए लिखना जरूरी है.

उन्होंने कहा कि रामायण, महाभारत ऐसे ग्रंथ जिन्हें आधार बनाकर आज लेखक लिख रहे हैं. ये मदर सोर्स हैं. हमारे युवा साथी उन पात्रों को लेकर लिख रहे हैं. अपनी विरासत के साथ आधार बनाकर चलना जरूरी है. महाकाव्य सभ्यता और भाषा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. फिनलैंड के लोक में एक महाकाव्य पनपा, जिसका अनुवाद किया गया है. उन्होंने कहा कि कई बार लिखते समय मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जो किरदार हैं, उनके एंगल से भी देखना चाहिए.

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अर्पण कुमार ने कहा कि अक्सर हम रोजमर्रा कि जिंदगी में छोटी-छोटी बातों से प्रभावित होते हैं. उन सभी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए. शहरीकरण बढ़ रहा है, इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं. अच्छा और बुरा दोनों ही लिखना जरूरी है. लेखक को बैलेंस बनाकर चलना चाहिए. बतौर लेखक हम निर्णायक की भूमिका में न आ जाएं. तभी हम अपने सभी पात्रों के साथ न्याय कर पाएंगे. अर्पण कुमार ने भी जीवन के सौंदर्य पर एक कविता सुनाई.

लेखिका निधि अग्रवाल ने कहा कि आज हम जो भी लिखते हैं, वो इसीलिए लिखते हैं, ताकि कल जो पढ़ें वो जान सकें कि हमारा कल कैसा था. बहुत सारे विमर्श हमारे सामने चल रहे होते हैं. कई बार ऐसी स्थितियां बनती हैं कि हम जिसके साथ खड़े होते हैं, तो हमें लगता है कि हम भी उसी के जैसे बन गए. लेखक को ऐसा होना चाहिए कि वो हर एक परत देखकर उसे समझ और समझा सके.

उन्होंने कहा कि लेखन करते समय हमें ध्यान रखना होता है कि हम विध्वंसकारी न हो जाएं. लेखक को दूरदर्शी होना चाहिए. लेखक का काम नायक और खलनायक गढ़ना नहीं है. साहित्यकार को कुछ ऐसा होना चाहिए कि वो जिसके लिए लिख रहा है, उसी के खिलाफ न खड़ा होना पड़े. इसी के साथ निधि ने बेटी और पिता के पावन रिश्ते पर आधारित एक कविता भी सुनाई, जिसे खूब पसंद किया गया.

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लेखिका व कवयित्री सबाहत आफरीन ने कहा कि जब मुझे लगा कि मैं कविताओं से अपनी पूरी बात कह नहीं पाती हूं, इसलिए कहानियां लिखना शुरू किया. क से कलम होता है, क से क्रांति होती है. समाज बहुत सारी ऐसी बातें हैं, जिनसे हम असहमति जताते हैं, इसको लेकर हमारे लिए लिखना जरूरी होता है. पहले हुस्न और इश्क पर लिखा जाता था. पहले पढ़ाई लिखाई लग्जरी तबके तक ही सीमित था.

उन्होंने कहा कि उस वक्त प्रेमचंद ने गरीबी की कई कहानियां लिखीं, जिन्हें पढ़कर लोगों को लगा कि ऐसे भी लिखा जा सकता है. पहले स्त्रियों को शिक्षा नहीं मिल पाती थी, ऐसे में उनका दुख उनकी परेशानियां समाज तक नहीं पहुंच पाती थीं. स्त्रियों के साथ भेदभाव होता था. गरीबी अमीरी की बहुत लंबी खाई के बारे में लिखा गया. धीरे-धीरे बदलाव हुए. विध्वंसकारी लेखन भी होता है, सार्थक लेखन भी होता है. उन्होंने कहा कि पितृसत्ता हमेशा से रही है. जो दबाव में रहेगा, वो छटपटाएगा. आज समय बदला है, लेकिन बहुत ज्यादा अब भी नहीं बदला है. हम ऐसा क्या लिखें 

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