
Sahitya Aaj Tak Lucknow 2025: अदब और तहजीब के शहर लखनऊ में साहित्य, कला और मनोरंजन का मेला 'साहित्य आजतक लखनऊ' का आज दूसरा दिन है. साहित्य के सितारों का ये महाकुंभ गोमती नगर के अंबेडकर मेमोरियल पार्क में आयोजित हो रहा है. आज साहित्य के इस महाकुंभ में 'दस्तक दरबार स्टेज-2' में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया.
इस कवि सम्मेलन में कवि स्वयं श्रीवास्तव, अभिसार शुक्ला, मनु वैशाली और मणिका दुबे ने काव्यपाठ किया. सबसे पहले कवि अभिसार शुक्ला को काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया गया. उन्होंने अपने काव्यपाठ के दौरान पढ़ा कि धीरे-धीरे बीत रहा हूं... गीत सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. इसके बाद उन्होंने भगवान राम पर छंद सुनाया, जिसे कार्यक्रम में उपस्थित श्रोताओं ने काफी पसंद किया और जमकर तालियां बजाईं.
इनके बाद कवयित्री मनु वैशाली को आमंत्रित किया गया. मनु वैशाली ने पढ़ा-
खावें न पीवें न सोवें नहाए कि बैठे बताए न बातहुं न कोरी
छूटि गए जाके ऊधम सारे छोड़ दई जाने चोरी चकोरी
भूल गयो सारे हल्ला मोहल्ला कबसे बजाई न बंशी
रामजी जाने न का रोग ले आयो जा खेल के आयो है होरी.
तुमने मुझको घिरते देखा बीच महोत्सव मेला माया
हमने खुद को उन लम्हों में सबसे अकेला पाया.
इसके बाद मनु वैशाली ने एक गीत सुनाया, जिसमें जिंदगी की सच्चाइयों को बयां किया गया.
अनचाही सी एक विकलता जीवनभर है जी हमने
इतने घायल हुए अभी तक मुश्किल अब कुछ सह पाएं
रह लेते हों ये सब चोटिल हम शायद ना रह पाएं
स्वयं कठिन हो हर कठिनाई जैसे हल कर ली हमने..
मनु वैशाली के बाद कवयित्री मणिका दुबे को बुलाया गया. उन्होंने अपने काव्यपाठ में खूबसूरत कविताएं पढ़ीं. उन्होंने पढ़ा-
मुझको झीलें नदियां अच्छी लगती हैं
उसको मेरी अंखियां अच्छी लगती हैं
इस खातिर भी हरदम मैं खुश रहती हूं
उसको मेरी खुशियां अच्छी लगती हैं....
इसके बाद मणिका ने होली से जुड़ा एक गीत पढ़ा-
पिया मोहे धीरे रंग लगाओ
इन नाजुक गालों पर सजना
थोड़ा तरस तो खाओ
पिया मोहे धीरे रंग लगाओ
कान्हा भी कान्हा संग खेले बरसाने में होली
बोले राधा करियो मत मुझसे आंख मिचौली.
नीले अंबर से धरती बोली पानी बरसाओ
शहर के शोर में वीरानियां हैं
यहां तुम हो मगर तन्हाइयां हैं
वहीं पे बैठके अरसा गुजारूं
जहां तेरी मेरी परछाइयां हैं
उसी से रूठकर उसको मनाना
दिलों की तो यही नादानियां हैं.
इसी सिलसिले में कवि स्वयं श्रीवास्तव को काव्यपाठ के लिए आवाज दी गई. उन्होंने पढ़ा-
चले कृष्ण जब वृंदावन ने कहा ये
कि जाओ मगर कुछ वचन याद रखना
यहां मन के राजा हो राजा दिलों के
वहां राह में राजधानी पड़ेगी
यहां गीत गाते हो मन के हृदय के
वहां पर रोज गीता सुनानी पड़ेगी
भले रुक्मिणी संग गृहस्थी बसाना
मगर राधिका के नयन याद रखना.
जो काल गणित में नहीं वो पल नसीब था
आंखें नसीब थीं हमें काजल नसीब था
ऐसा भी वक्त है हमें बूंदें नहीं नसीब
ऐसा भी वक्त था हमें बादल नसीब था.
दुनिया समझ रही है कि चमक गया हूं मैं
पर दिल ही जानता है कितना थक गया हूं मैं
आसान लग रहा है सफर देखने में पर
दीवानगी की आखिरी हद तक गया हूं मैं.
मुश्किल थी संभलना ही पड़ा घर के वास्ते
फिर घर से निकलना ही पड़ा घर के वास्ते
मजबूरियों का नाम हमने शौक रख दिया
फिर शौक बदलना ही पड़ा घर के वास्ते...
इसी के साथ स्वयं ने एक गीत सुनाया, जिस पर जमकर तालियां बजीं. इस दौरान आहुति शुक्ला नाम की बच्ची ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'हां-हां दुर्योधन बांध मुझे' कविता सुनाई और सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया.