
Sahitya Aaj Tak Lucknow 2025: अदब और तहजीब के शहर लखनऊ में एक बार फिर साहित्य, कला और मनोरंजन का मेला 'साहित्य आजतक लखनऊ' का आगाज हो चुका है. साहित्य के सितारों का ये महाकुंभ गोमती नगर के अंबेडकर मेमोरियल पार्क में आयोजित हो रहा है. अलग-अलग विधा के कलाकारों और सितारों की यह महफिल 15 और 16 फरवरी को सजेगी. यहां किताबों की बातें हो रही हैं. फिल्मों की बातें हो रही हैं. सियासी सवाल-जवाब किए जा रहे हैं और तरानों के तार भी छेड़े जा रहे हैं.
पहले दिन साहित्य के इस महाकुंभ में 'दस्तक स्टेज-1' पर युवा शायरों की महफिल जमी, जहां शायरी के फूल खिले और जज्बात महक उठे. इसमें शायरा हिमांशी बावरा, नदीम शाद, संजू शब्दिता, आदर्श दुबे, बालमोहन पांडे ने अपने-अपने कलाम पेश किए. इस मुशायरे की निजामत मशहूर एंकर सईद अंसारी ने की, जिन्होंने एक-एक शायर को उनके कलाम पेश करने की दावत दी.
महफिल का आगाज शायरा हिमांशी बावरा के खूबसूरत कलाम से हुआ, जिनकी आवाज और अंदाज ने श्रोताओं के दिलों में छाप छोड़ दी. उन्होंने पढ़ा-
वो मोहब्बतों के मौसम तुझे याद भी हैं हमदम
मेरा एक बार सुनना तेरा बार-बार कहना
जरा एहतियाद रखे मेरे सामने न आए
मेरा देखना न कर दे उसे शर्मसार कहना.
क्या बताएं कि मुहब्बत से संभाले न गए
और दुनिया में कभी खौफ के मारे न गए
हमने तो तुमसे मुहब्बते की उम्मीदें की थीं
तुमने भी दिन वही दिखलाए जो देखे न गए.
हिज्र महसूस हुआ हमको रिहाई की तरह
वो हाथ मेरे हाथ के बेहद करीब था
फिर भी मैं छू नहीं सकी मेरा नसीब था
अब तुझसे बन गई तो जमाने से बन गई
जब तू रकीब था तो जमाना रकीब था.
हिमांशी के बाद युवा शायर आदर्श दुबे ने अपनी रचनाएं पढ़ीं. आदर्श ने जब अपने शेर पढ़े तो फिजा में नई ताजगी आ गई. उनके हर शेर ने दिलों को छुआ, जिसमें मोहब्बत, तन्हाई और जज्बात की कहानी थी. उन्होंने पढ़ा-
इससे पहले कि तुम बुझाओ मुझे
कुछ अंधेरों से भी डराओ मुझे
कैसे मालूम कि इसमें मैं ही हूं
अपना दिल खोलकर दिखाओ मुझे
चाहे फिर जहर ही भले दे दो
अपनी नजरों से मत गिराओ मुझे.
ऐसा लम्हा उधार दे कोई
जिसमें सदियां गुजार दे कोई
क्या खबर हादसों की दुनिया में
कब कहां मुझको मार दे कोई.
एक वादा कि जिसके साए में
उम्र सारी गुजार दे कोई
कितना तन्हा हूं इस बुलंदी पर
मुझको नीचे उतार दे कोई.
जरा सी देर चरागों का दिल बहल जाए
ये आफताब कहीं और जा के जल जाए
मैं रोज रोज तो चेहरे नहीं बदल सकता
किसी को भेज मेरे आइने बदल जाए
मैं चाहता हूं तेरे दिल में देर से पहुंचूं
मैं चाहता हूं कि पहले मेरी गजल जाए.
गांव का हुस्न देखिये साहब
चांद कच्चे मकां में रहता है.
इनके बाद बालमोहन पांडेय ने अपनी रचनाएं पढ़ीं. उनकी गजलों को काफी पसंद किया गया. उन्होंने कहा-
हमें तो जश्न भी मातम दिखाई देता है
तुम्हें बहार का मौसम दिखाई देता है
अब इतनी दूर से चेहरा तुम्हारा कैसे पढ़ूं
करीब आओ मुझे कम दिखाई देता है
जब उसको ध्यान में लाता हूं तब नहीं आता
कुछ और सोचो तो एकदम दिखाई देता है.
इतनी नदामत से कल उसने हाथ लगाया
जख्म से पहले मोहन मेरा दिल भर आया
वो तो जूड़ा बांध के मिलने आई मुझसे
मैं ही शर्म के मारे फूल नहीं दे पाया.
जहां ऊबे हुए सब हैं वहीं तरसा हुआ मैं हूं
सदा औरों को आती है पलटकर देखता मैं हूं
वो कहता था उसे जितनी उम्मीदें हैं खुदा से हैं
मगर मेरी तरफ यूं देखता जैसे खुदा मैं हूं.
इनके बाद संजू शब्दिता को अपना कलाम पेश करने के लिए आमंत्रित किया गया. उन्होंने अपने गीत, गजल के साथ खूबसूरत नज्म पढ़ी, जिस पर मौजूद श्रोताओं ने खूब दाद दी.
हमारा नाम लिखकर वो हथेली में छिपा लेना
हमेशा छत पे आ जाना तुम्हारा शाम से पहले
तुम्हारे दम से ही हमने भरा था फॉर्म मैट्रिक का
तुम्हें भी रूठना था बोर्ड की एग्जाम से पहले
रानियां तक तो जहां कैद में रहती हैं हुजूर
एक ऐसे ही घराने में कटी उम्र मेरी.
यूं करो एक ही झटके में चढ़ा दो सूली
रोज की मौत में आराम कहां होता है.
खुद ही प्यासे हैं समंदर तो फकत नाम के हैं
भूल जाओ कि बड़े लोग किसी काम के हैं.
संजू शब्दिता के बाद शायर नदीम शाद को कलाम पेश करने के लिए बुलाया गया. नदीम ने खूबसूरत गजल, नज्म पढ़ीं, जिन्हें सुनकर लोगों ने जमकर दाद दी. नदीम ने तरन्नुम से भी गजलें पढ़कर खूब दाद हासिल की. उनके शेर देखिए-
मुश्किल था पर जादू करना सीख गए
अब हम खुद पर काबू करना सीख गए
आपको तो तहजीब मिली थी बिरसे में
आप कहां से तू-तू करना सीख गए.
हटाओ हाथ आंखों से ये तुम हो जानता हूं मैं
तुम्हें खुशबू नहीं आहट से भी पहचानता हूं मैं
भटकता फिर रहा था गम लिपटकर मुझसे ये बोला
कहां जाऊं तुझी को शहरभर में जानता हूं मैं.
रस्मों की जंजीर भी तोड़ी जा सकती है
तेरी खातिर दुनिया छोड़ी जा सकती है
उसको भुलाकर मुझको ये मालूम हुआ है
आदत कैसी भी हो छोड़ी जा सकती है.
खैर मैं अपनी नहीं कहता बताओ तो मगर
यार ये शख्स कहां से है तुम्हारे लायक.
लड़ सको दुनिया से जज्बों में वो शिद्दत चाहिए
इश्क करने के लिए इतनी तो हिम्मत चाहिए
कम से कम मैंने छुपा ली देखकर सिगरेट तुम्हें
और इस लड़के से तुमको कितनी इज्जत चाहिए.
वक्त तुम्हारा है पर उतना जुल्म करो
बाद में जितना सहने में आसानी हो.
मुश्किल कोई आन पड़ी तो घबराने से क्या होगा
जीने की तरकीब निकालो मर जाने से क्या होगा
सब मिलकर आवाज उठाएं तो कुछ चांद पे रौब पड़े
मैं तन्हा जुगनू हूं मेरे चिल्लाने से क्या होगा.