
साहित्य आजतक 2019 के दस्तक दरबार में आयोजित KV Sammelan में शुक्रवार की शाम कवि कुमार विश्वास की कविताओं और गीतों से रंगीन हो गई. उन्होंने साहित्य आजतक के मंच पर आते ही सबसे पहले दो लाइनें सुनाई...
कि हमें बेहोश कर साकी...पिला भी कुछ नहीं हमको...
करम कुछ भी कुछ नहीं हमको, सिला भी कुछ नहीं हमको...
इसके बाद, कुमार विश्वास ने इंडिया टुडे ग्रुप को धन्यवाद देते हुए कहा कि एशिया में अदबी लोगों का इतना बड़ा जमावड़ा और कहीं नहीं होता. हमसभी को मिलकर आजतक को धन्यवाद देना चाहिए इस आयोजन के लिए. इसके बाद उन्होंने कविताओं और गीतों का सिलसिला शुरू कर दिया. साथ ही इन गीतों और कविताओं के पीछे की कहानी, व्यंग्य और प्रासंगिकता का जिक्र भी किया.
साहित्य आजतक की पूरी कवरेज यहां देखें
दिल्ली के प्रदूषण, धुआं और स्मॉग और इस पर हो रही राजनीति पर कुमार विश्वास ने पंक्तियां सुनाईं....
मुझे वो मार कर खुश है, कि सारा राज उसपर है
यकीनन कल है मेरा, आज बेशक आज उसपर है
उसे जिद थी झुकाओ सर, तभी दस्तार बक्शूंगा
मैं अपना सर बचा लाया, महल और ताज उसपर है
न पाने की खुशी है कुछ, ने खोने का गम है...
अजब कशमकश है रोज जीने रोज मरने में
मुक्कमल जिंदगी तो है, मगर थोड़ी सी कम है
हादसों की जद में हैं तो क्या मुस्कुराना छोड़ दें.
कुमार विश्वास ने कहा कि लोग उनसे पूछते हैं कि आप राजनीति में क्यों नहीं आ जाते. तब मैं उनसे कहता हूं कि मैंने कहा हथियार डाले हैं, चलाना नहीं भूला. हमसे भी लोग कहते हैं कि इसकी सरकार आ गई. उसकी सरकार आ गई. जब बाबा तुलसी के समय की अकबर की सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाई. तो ये पांच-दस साल की सरकार क्या बिगाड़ेगी. फिर उन्होंने सुनाया...
कि तुम्हीं पर मरता है ये दिल
अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मों से बंदी है
बगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो
वो ही शिकायत है जमाने से
मेरी तारीफ करता है, मोहब्ब्त क्यों नहीं करता
साहित्य आजतक में रजिस्ट्रेशन के लिए यहां क्लिक करें
दर्शकों की मांग पर साहित्य आजतक के मंच से कुमार विश्वास ने फिर अपनी विख्यात कविता सुनाई...कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है. फिर कुमार विश्वास ने उन प्रेमियों और प्रेमिकाओं पर कविताएं सुनाते हैं...जो कभी मिल नहीं पाते और दूर रहते हुए एक-दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार करते हैं....
हजारों रात का जागा हूं,
सोना चाहता हूं अब
तुझे मिलके ये पलके
भिगोना चाहता हूं अब
बहुत ढूंढा है तुझको खुद मे
कि बहुत थक गया हूं मैं
कि सौंप कर खुद को
कि खोना चाहता हूं मैं.
वाचिक परंपरा की गुणवत्ता कविता से सुनाई
कुमार विश्वास ने साहित्य आजतक के मंच से कहा कि आज भी वाचिक परंपरा में गुणवत्ता है. शुद्धता, सरलता और समरसता तीनों समाहित हैं आज की वाचिक परंपरा में. तभी तो आप इतनी संख्या में सुनने के लिए बैठे हैं और मैं अकेला इस परंपरा को सुना रहा हूं. इसके बाद उन्होंने ये कविता सुनाई. इस एक कविता में कुमार विश्वास ने कई मसलों को शामिल करने की कोशिश की है.
जिनके सपनों के ताजमहल बनने से पहले टूट गए
जिन हाथों में दो हाथ आने से पहले छूट गए
धरती पर जिनके खोने और पाने की अजब कहानी है
किस्मत की देवी मान गई, पर प्रणय देवता रूठ गया
मैं मैली चादर वाले उस कबिरा की अमृत वाणी हूं
लवकुश की पीर भी न गाई, सीता की राम कहानी हूं
कुछ कहते हैं मैं सीखा हूं, अपने जख्मों को खुद सी कर...
कुछ जान गए मैं जीता हूं भीतर-भीतर आंसू पीकर
कुछ कहते हैं मैं हूं विरोध से उपजी एक खुद्दार विजय
कुछ कहते हैं मैं रचता हूं, खुद में मरकर खुद में जी कर
लेकिन मैं हर चतुराई की, सोची समझी नादानी हूं.
लवकुश की पीर भी न गाई, सीता की राम कहानी हूं
कविता के इस सम्मेलन में कुमार विश्वास ने साहित्य आजतक के मंच से अपनी नई कविता सुनाई. इसी कविता के साथ उनके इस कार्यक्रम का अंत हुआ.
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफन हो जाए...
ओढ़िनी इस तरह उलझे कि कफन हो जाए
घर के एहसास जो बाजार की शर्तों में ढले
अजनबी लोग जो हमराह बनके साथ चलें
लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए
भीड़ का शोर जो कानों के पास रुक जाए
सितम की मारी हुई वक्त की इन आंखों में
नमी लाख हो, मगर फिर भी मुस्कराएंगे
अंधेरे वक्त में भी गीत गाए जाएंगे...
'फिर मेरी याद' और इंडिया टुडे साहित्य वार्षिकी का लोकार्पण
इस कार्यक्रम के अंत में कुमार विश्वास की किताब 'फिर मेरी याद' का लोकार्पण किया गया. इस किताब का लोकार्पण TVTN के न्यूज डायरेक्टर सुप्रिय प्रसाद ने किया. इसके बाद इंडिया टुडे मैगजीन के साहित्य वार्षिकी का लोकार्पण किया गया. इस मौके पर इंडिया टुडे मैगजीन के संपादक हिमांशु तिवारी भी थे.