
शब्द-सुरों का महाकुंभ, साहित्य आजतक का आज दूसरा दिन है. साहित्य का ये मेला तीन दिन का है, जो 18 से 20 नवंबर तक दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में लगा हुआ है. इस कार्यक्रम में सिनेमा, संगीत, सियासत, संस्कृति और थिएटर से जुड़े जाने-माने चेहरे हिस्सा ले रहे हैं.
मेले में कई मंच हैं, जहां साहित्य पर चर्चा भी हो रही है और संगीत के सुर भी महक रहे हैं. साहित्य के इस मंच पर 'क्राइम का विस्फोटक संसार' नाम के सेशन नें हिंदी क्राइम फिक्शन राइटर सुरेंद्र मोहन पाठक (Surendra Mohan Pathak) ने भी शिरकत की. सुरेंद्र मोहन अब तक 300 से ज्यादा कहानियां लिख चुके हैं. क्राइम जर्नलिस्ट शम्स ताहिर खान (Shams Tahir Khan) उनसे सवाल जवाब कर रहे थे.
सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि लोअर क्लास के बड़े क्राइम 24 घंटे में हल हो जाते हैं. क्योंकि करने वाले को खुद ही पछतावा होने लगता है. वो छुप नहीं पाते. थोड़ हुड़क दो, तो वो खुद ही सब बता देते हैं. 80-85 प्रतिशत क्राइम तो हाथ के हाथ ही सॉल्व हो जाते हैं.
'क्रिमनल सीन ऑफ क्राइम पर एक बार ज़रूर जाता है'
कहते हैं कोई भी क्रिमनल हो वो सीन ऑफ क्राइम पर एक बार ज़रूर जाता है. इसपर सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा ये किताबी बातें हैं. ये बातें मैंने अपनी नौजवानी में पढ़ी थीं, इसपर तो एक फिल्म भी बनी थी- 'फिर सुबह होगी'. ऐसा कुछ स्थापित नहीं है कि ऐसा होता है. ये सिर्फ फिक्शनल बातें होती हैं. रियल लाइफ में ऐसा कोई रोल नहीं. ये कोई रूल नहीं है. वो खुद क्यों जाएगा?
आफताब बेवकूफ़ है!
क्रिमिनल जहां क्राइम करता है, वहां से भाग जाता है. लेकिन श्रद्धा मर्जर केस, यह अनोखा ऐसा केस है जिसमें आफताब क्राइम करने के 6 महीने बाद तक वहीं रहता है, भागता नहीं है. इसपर सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि जब आप मान रहे हैं कि ये इकलौता ऐसा केस है, तो उसे जर्नलाइज़ न करें. उन्होंने कहा कि आफताब बेवकूफ है. उसने सोचा ही नहीं. उसे लगा फ्रिज बहुत बड़ा करतबी आइटम है. पर बॉडी ने तो अपने टाइम पर डीकंपोज़ होना है. फॉरेन्सिक साइंस में बॉडी से ये पता लगा सकते हैं कि कत्ल का वक्त क्या था.
'करप्शन ने पुलिस की कोई औकात नहीं छोड़ी'
पहले और बाद की पुलिस इनवेस्टिगेशन में क्या फर्क आया है. इसपर उन्होंने कहा पहले अंग्रेजों के जमाने की पुलिस ज्यादा मुस्तैद थी, क्योंकि अंग्रोजों का डंडा मजबूत था. उस वक्त लॉ एंड ऑर्डर अच्छा था, किसी की मजाल नहीं होती थी कुछ करने की. मैंने अंग्रोजों का समय देखा है. तब मैं 8 साल का था. उस समय 40 गांव पर एक थाना होता था. तब एक हवलदार डंडा हिलाता जाता था और 6 आदमियों को गिरफ्तार करके ले आता था. और आज पुलिस जीप भरके, 20-25 लोगों को लेकर एक आदमी को गिरफ्तार करने जाती है, और मार खाके आते हैं. ये कैसा लॉ एंड ऑर्डर है, पुलिस से किसी को कोई डर या खतरा ही नहीं लगता. करप्शन ने पुलिस की कोई औकात नहीं छोड़ी.
'बेनिफिट ऑफ डाउट अपराधियों के लिए हथियार है'
4 में से 3 अपराधी छूट जाते हैं, सिर्फ एक को सजा मिलती है. कन्विक्शन रेट 25 प्रतिशत है. इसपर उन्होंने कहा कि कोर्ट की अपनी लिमिटेशन हैं, कोर्ट मजबूर है. उसे पता होता है कि मुजरिम सामने खाड़ा है, लेकिन वो सजा नहीं दे सकता. प्रयदर्शिनी मट्टू वाले केस में भी यही हुआ था. जज ने भावुक होते हुए यही कहा था कि मझे पता है मुजरिम सामने है, लेकिन मैं सजा नहीं दे सकता क्योंकि पुलिस ने केस को जानबूझकर इतना कमजोर बनाया है कि मुजरिम बेनिफिट ऑफ डाउट पर छूट जाए. उन्होंने कहा कि बेनिफिट ऑफ डाउट मुजरिमों के लिए बहुत बड़ा हथियार है, अदालतों के लिए नहीं, पुलिस के लिए नहीं.
जघन्य अपराधों को समरी ट्रायल होना चाहिए
उन्होंने कहा कि जघन्य अपराधों को समरी ट्रायल होना चाहिए. हमने सिस्टम बनाया ही ऐसा है कि वो हमारे हक में नहीं गुनहगार के हक में काम करता है. अगर ये वजह न होती तो लोकसभा में जमानत पाए एक तिहाई एमपी न होते.
राजीव गांधी के कत्ल, जिसमें 31 साल जेल में रहने के बाद क्रिमिनल्स को छोड़ दिया जाता है. इस पर भी सुरेंद्र मोहन पाठक ने अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि सजा सख्त ही होनी चाहिए. सजा हमदर्द बनकर नहीं होती. कोई कहे कि मैं अपनी बीवी का कत्ल करके पछता रहा हूं, इतने से नहीं छूट सकता. इगनोरेंस ऑफ लॉ इज़ नॉट ए क्राइम, ये नहीं माना जा सकता.
क्या कभी क्राइम खत्म होगा?
क्या कभी क्राइम खत्म होगा? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि ये कभी नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि विदेशों की तरह हमारे यहां तो रोटी, कपड़ा और मकान की कोई गारंटी नहीं है. अब भले ही नारे लगाए जाते हैं, लेकिन अमल में तो नहीं लाया जाता. लोग भूखों मरते हैं, फुटपाथ पर सोते हैं. तो ऐसे में जब आदमी भूखा मरेगा, तो वो कुछ भी करेगा, उन्माद में करेगा.