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Sahitya AajTak Kolkata 2024: 'हिंदू राष्ट्र एक कंफ्यूज विचारधारा है', बोले आशुतोष

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुए 'साहित्य आजतक' के कार्यक्रम में लेखक आशुतोष ने कहा कि हिंदू राष्ट्र होगा, तो विचारों की स्वतंत्रता ही नहीं होगी. जिस हिंदुत्व के बारे में खोज करते हुए हम 1892 में रुक जाते हैं, उसके बारे में ये जाता है कि ये बहुत पुरानी और हजारों साल की परंपरा है, जो 1892 से शुरू हो रहा है, वो सनातन कैसे हो गया?

साहित्या आजतक 2024 का आयोजन कोलकाता में हो रहा है साहित्या आजतक 2024 का आयोजन कोलकाता में हो रहा है
aajtak.in
  • कोलकाता,
  • 17 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:13 PM IST

Sahitya AajTak 2024: शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का कोलकाता में दो दिवसीय कार्यक्रम का आगाज हो गया है. स्वभूमि- हेरिटेज प्लाजा में हो रहे सेशन 'भारत: एक हिंदू राष्ट्र?' में लेखक और त्रिपुरा के पूर्व गवर्नर तथागत रॉय, लेखक आशुतोष और लेखक हिंडोल सेनगुप्ता शामिल हुए. प्रोग्राम में शामिल लेखक तथागत रॉय ने हिंदू राष्ट्र के सवाल पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हिंदू राष्ट्र एक ऐसी चीज है, जो हिंदुत्व के ऊपर आधारित है और हिंदुत्व को थियोक्रेटिक कॉन्सेप्ट नहीं है. हिंदुत्व की अवधारणा का प्रवर्तन कलकत्ता के एक मनीषी चंद्रनाथ बसू ने किया था लेकिन इस अवधारणा को विनायक दामोदर सावरकर ने लोकप्रिय किया था.

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तथागत रॉय ने कहा कि हिंदुत्व की बेसिक धारणा है कि जो लोग इस भारतभूमि को मातृभू और पुण्यभू समझते हैं, वही इसमें विश्वास रखते हैं और यह उन्हीं के लिए है. इसमें किसी की उपासना पद्धति का कोई लेना-देना नहीं. कोई इस्लाम, ईसाई या सिक्ख धर्म में विश्वास रखते हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. सिर्फ इससे फर्क पड़ता है कि हमें इस भूमि को मातृभू और पुण्यबू समझते हैं. हिंदू राष्ट्र वो राष्ट्र है, जो हिंदुत्व के ऊपर आधारित है.

हिंदुत्व शब्द का प्रयोग सबसे पहले कहां हुआ?

लेखक हिंडोल सेनगुप्ता ने कहा कि हिंदुत्व शब्द बंकिमचंद्र चटोपाध्याय की किताब आनंद मठ किताब में प्रयोग किया गया था. जिस किताब से हमें वंदे मातरम् मिलता है, उसी किताब में हमें हिंदुत्व शब्द का उपयोग मिलता है. सावरकर अपनी किताब Essentials of Hindutva में कहते हैं कि 'अगर सच में कोई हिंदुत्व में विश्वास करता है, तो एक प्वाइंट ऐसा आता है कि इससे इज्म हट जाता है.'

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हिंडोल सेनगुप्ता ने पॉलिटिकल हिंदुइज्म यानी राजनीतिक हिंदुत्व पर बात करते हुए कहा कि यह हिंदू धर्म की राजनीतिक अभिव्यक्ति है. धर्म का हमेशा एक राजनीतिक दृष्टिकोण भी होता है. अगर समाज के साथ धर्म के कोई जुड़ाव नहीं होता, तो राजनीति की जरूरत नहीं होती लेकिन जब भी धर्म के साथ समाज का जुड़ाव होता है, तो उसमें राजनीति तो होती ही है. हिंडोल सेनगुप्ता ने आगे कहा कि हर राष्ट्र की एक सांस्कृतिक नींव होती है. भारतवर्ष की सांस्कृतिक नींव वेदों और उपनिषदों में मिलेगा और यह सांस्कृतिक नींव सबके लिए है, जो भी इस देश में रहते हैं ये उन सबकी धरोहर है. 

'हिंदू राष्ट्र होगा तो...'

लेखक आशुतोष ने कहा कि हिंदू राष्ट्र होगा, तो विचारों की स्वतंत्रता ही नहीं होगी. जिस हिंदुत्व के बारे में खोज करते हुए हम 1892 में रुक जाते हैं, उसके बारे में ये जाता है कि ये बहुत पुरानी और हजारों साल की परंपरा है, सनातन है. मैं सवाल पूछना चाहता हूं कि जो 1892 से शुरू हो रहा है, वो सनातन कैसे हो गया? आशुतोष आगे कहते हैं कि सावरकर ने अपनी किताब में हिंदुत्व से जुड़े सभी शब्दों के बारें मे साफ-साफ लिखा है लेकिन आज की तारीख में इन शब्दों के साथ ऐसा घाल-मेल किया गया है कि मौजूदा पीढ़ी को लगता है कि जो हिंदू धर्म के नाम पर हो रहा है, वो हिंदुत्व है...ऐसा बिल्कुल नहीं है. हिंदुत्व एक राजनीतिक चीज है, जिसका हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. वो धर्म का इस्तेमाल करके राजनीति के अपने अभीष्ट को पूरा करते हैं. हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है, जो धर्म का इस्तेमाल करती है. लेखक आशुतोष ने बाबा साहब अंबेडकर के कथन की भी याद दिलाई कि उन्होंने कहा था कि 'हिंदू राष्ट्र एक ऐसा विचार है, जो लोकतंत्र के खिलाफ है और इसको रोकना चाहिए.'

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आशुतोष ने हिंदू धर्म पर भी अपने विचार रखे और कहा कि सबको समाहित करके और सबको साथ लेकर चलने वाले धर्म का नाम है- हिंदू धर्म. जब आप दीनदयाल उपाध्याय और गोलवलकर को पढ़ते हैं, तो लगता है कि जो पुण्यभूमि और मातृभूमि की बात की जा रही है, उसमें जिनकी पुण्यभूमि इस (भारत) धरती पर नहीं है, उनको (मुसलमानों और ईसाईयों) आप बाहर कर देते हैं. हमको ऐसी विचारधारा नहीं चाहिए. 

इसके बाद लेखक तथागत रॉय ने हिंदुत्व की प्राचीनता पर उठे सवाल पर बात करते हुए कहा कि हमारे वायुमंडल में ऑक्सीजन है, इस तथ्य के खोज से पहले भी ऑक्सीजन था. इसी तरह से हिंदुत्व का आविष्कार नहीं, इसकी खोज हुई. 

तथागत रॉय की नजर में हिंदुत्व...

तथागत रॉय ने हिंदुत्व पर बात करते हुए कहा कि यह हिंदुइज्म से बहुत बड़ी चीज है. हिंदुइज्म जीवन जीने का एक तरीका है. अगर हिंदुइज्म एक Way of Life है, जो इसको राजनीतिक विचारधारा कैसे कहा जा सकता है. राजनीतिक विचारधारा वो है, जिसके साथ मिट्टी का संबंध है और कहा गया है कि जो हमारे देश की मिट्टी को पुण्यभू और मातृभू समझते हैं, वही हिंदुत्व में विश्वास रखते हैं और वही हमारे स्टेट के सदस्य होंगे, वही हमारे स्टेट में रहेंगे. बाकी नहीं सकते, ऐसी तो कोई बात नहीं है लेकिन कोई अगर सोचेगा कि मेरा पुण्यभू कहीं और है, तो उसको हिंदू नहीं माना जा सकता है.

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हिंडोल सेनगुप्ता ने कहा कि अंबेडकर जी ने जो पाकिस्तान और गांधी जी के में मोपला दंंगों के बारे में लिखा था, वो बात हम छुपा देते हैं. 

'सिर्फ रामचरित मानस पढ़ लें...'

आशुतोष ने कहा कि यही वो विचारधारा है कि बिना पाकिस्तान, इस्लाम और मुसलमान का रिफ्रेंस दिए आप हिंदू धर्म पर बात ही नहीं कर सकते. ये कौन सी सोच है? हिंदू धर्म पर बात करते हुए बीच में हिंदुत्व को लाकर घाल-मेल पैदा किया जाता है, तब दिक्कत होती है. आशुतोष ने हिंदू राष्ट्र पर बात करते हुए कहा कि यह एक बहुत ही कन्फ्यूज विचारधारा है. अगर आप सिर्फ रामचरित मानस पढ़ लें, तो आपको पाकिस्तान और इस्लाम के रिफरेंस की जरूरत नहीं पड़ेगा और आपको अपने अंतर्मन में झांकना होगा लेकिन उससे वोट नहीं मिलेंगे. 

हिंडोल सेनगुप्ता कहते हैं कि अंतर्मन में ही झांक रहे थे, बाहर से आकर गला काट दिया. सरदार पटेल जब सोमनाथ देखने गए थे, तो उन्होंने कहा था कि इसको फिर से बनाओ. मेरे माता-पिता और परिवार भी पाकिस्तान से हैं, क्यों उनको घर छोड़ना पड़ा. वो भी अंतर्मन में रहना चाहते थे लेकिन रहने नहीं दिया. 

इसके बाद आशुतोष ने सरदार पटेल के उस कथन का जिक्र किया, कि उन्होंने कहा था कि 'हिंदू राष्ट्र एक पागल विचार है', उन्होंने ऐसा क्यों कहा...इसको समझने की जरूरत है क्योंकि आपको बार-बार पाकिस्तान जाना पड़ता है. इसलिए उन्होंने कहा था कि ये लड़ाने वाली विचारधारा है, ये सबको बांटने वाली विचारधारा है, सबको साथ लेकर चलने वाली विचारधारा गांधी के साथ है.
 
 

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