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इनकी एजुकेशन, पैशन और प्रोफेशन एक, साहित्य आज तक में मिलिए आशुतोष राणा से

जिस शख्स ने भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री में खलनायक की परिभाषा को बदल कर रख दिया. जिसे पर्दे पर देखने के बाद रात में पेशाब जाने पर डर लगता था. साहित्य आज तक पर मिलें आशुतोष राणा से...

Sahitya Aajtak Sahitya Aajtak
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 5:49 PM IST

ईमानदारी से बता रहे हैं. पहली बार आशुतोष राणा को फिल्म में देखा तो रातों में नींद नहीं आती थी. रात में सूसू करने जाते तो मम्मी को जगाते थे. फिल्म थी संघर्ष. खूंखार विलेन बने थे आशुतोष राणा. उनका वो स्टाइल आज भी याद आए तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उसके बाद बहुत से किरदारों में उनको देखा. ज्यादातर खलनायक.

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आशुतोष मध्य प्रदेश में पैदा हुए. गदरवारा, नरसिंहपुर जिले में. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली में एक्टिंग पढ़ी. फिर मुंबई जाकर रम गए. स्वाभिमान से शुरू हुआ करियर आज जहां हैं वहां से हम जैसे उनके फैन चींटी जैसे दिखाई देते हैं. लेकिन वो कहते हैं कि दर्शक हैं तो हम हैं. एक्टिंग के अलावा आशुतोष का मन सबसे ज्यादा किसी चीज में रमता है तो वो हैं किताबें. उन्हीं में डूबते उतराते रहते हैं. ‘साहित्य आजतक’ में वो आपसे, हमसे मिलने आ रहे हैं. उसके पहले हमने उनसे छोटी सी बात की. फोन पर. माइक्रो क्वेश्चन वाली बातें. इतने भर से उनके व्यक्तित्व का अंदाजा नहीं मिल सकता लेकिन उसका हल्का सा प्रतिबिंब जरूर मिलेगा.

1. रावण हिंदी साहित्य का विलेन माना जाता है. रावण से आपका बचपन से नाता है. बचपन से रामलीला में रावण के रोल किए. फिर रामायण एपिक में रावण के चरित्र को अपने संवाद दिए. रावण के अंदर एक सबसे अच्छी बात क्या लगती है. और एक सबसे बुरी?
आशुतोष. रामायण में राम नायक हैं, रावण प्रतिनायक.(ये शब्द अपनी डिक्शनरी में जोड़ लें.) दोनों महान. दोनों योद्धा. दोनों विद्वान. दोनों शिव उपासक. दोनों शक्ति प्रेमी. अखंड प्रतापी. दोनों की फैन फॉलोविंग अच्छी है. दोनों में अंतर केवल इंकार और स्वीकार का है. अगर राम इंकार करते. पिता का कहना नहीं मानूंगा. वन नहीं जाऊंगा. भाई को राज नहीं करने दूंगा. तो वो रावण होते. रावण अगर स्वीकार कर लेता. ऋषियों को मत सताओ. भई नहीं सताता. सीता को वापस कर दो. भई कर देता हूं. बड़े भाई राम से पंगा मत लो, मित्रता कर लो. ठीक है जी कर लेता हूं. ये स्वीकार करके रावण राम बन जाता.

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2. कौन सी किताब आपको सर्वाधिक पसंद है. जिसने आपकी विचारशीलता पर विशेष प्रभाव डाला हो.
आशुतोष. मुख्य बात ये नहीं कि मुझे कौन सी किताबें पसंद हैं. बात ये है कि मुझे किताबें बहुत पसंद हैं. किसी एक का नाम लूं तो बाकी के साथ अन्याय होगा. फिर भी कुछ किताबें विशेष प्रिय हैं. कृष्ण की आत्मकथा , मधु शर्मा ने लिखा है. आठ भागों में. विष्णु गुप्त चाणक्य. शिवाजी सावंत ने कर्ण लिखा, वो अच्छी किताब है. नरेंद्र कोहली की लिखी महासमर.

3. किस कवि में आपकी सबसे ज्यादा रुचि है?
आशुतोष. कविताओं में परमरुचि है. रामधारी दिनकर मेरे प्रिय कवि हैं. इनके अलावा दुष्यंत कुमार, निराला भी पसंद हैं.

4. सारी बातें साहित्य से जुड़ी कर लीं. लेकिन अगर आपकी फिल्मों के बारे में कुछ न जाना तो अफसोस रहेगा. आपकी फिल्मी यात्रा में सबसे यादगार किस्सा?
आशुतोष. देखो जो अभिनय हम कर रहे हैं, हमारी चाहत है. मोहब्बत है. इसकी राह में हर कदम यादगार रह जाता है. हर पल. हम बंबई आए. तब से जीवन इसी के नाम है. हम उन भाग्यशाली लोगों में हैं जिनका पैशन एजूकेशन और प्रोफेशन एक ही है.

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इंटरव्यू साभार: thelallantop.com


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