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Sahitya AajTak 2023: शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का शुभारंभ शुक्रवार को दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में हुआ. आज (शनिवार) कार्यक्रम का दूसरा दिन है. इसमें 'सनातन धर्म और स्त्री' शीर्षक पर 'मैं जनक नंदिनी' की लेखिका आशा प्रभात, कवि डॉ. अनामिका, 'हैती और गुलाबी नदी की मछलियां' की लेखिका सिनीवाली शर्मा और लेखक व कवि अनु शक्ति सिंह ने विचार व्यक्त किए.
लेखिका आशा प्रभात ने कहा कि सनातन धर्म में स्त्रियों की क्या हिस्सेदारी थी, ये जानना चाहिए. स्त्री के बिना ईश्वर भी आधा है. फिर परिस्थितियां कैसे बदलीं, इस पर नजर डालनी चाहिए. सावित्री से उनके पिता ने कहा था, तुम स्वयं अपने वर की तलाश करो. इसका मतलब उस समय वयस्क होने पर लड़कियों की शादी होती थी. साथ ही ये बात लड़कियों की निर्भयता भी दिखाती है.
सीता ने कहीं भी प्रतिरोध नहीं किया, ऐसा नहीं है
बात अगर सीता करें तो जनक जी ने उन्हें अपना नाम दिया और शादी राम से शादी हुई. यहां कहीं भी कुल-गोत्र बीच में नहीं आया. कहा जाता है कि सीता ने कहीं भी प्रतिरोध नहीं किया. ऐसा नहीं है. जब अग्नि परीक्षा की स्थिति आई तो उन्होंने प्रतिरोध किया. उन्होंने कहा कि आप अपने कुल के गौरव के लिए ऐसा कर रहे हैं. अंत में सीता कहती हैं कि मैं जनक नंदिनी आपका परित्याग करती हूं.
'पुरुष अति पुरुष हो गए हैं और स्त्री अति स्त्री...'
कवयित्री डॉ. अनामिका ने अपनी कृति 'तृन धरि ओट' का जिक्र करते हुए कहा कि अगर आपका मन लगातार डोल रहा है तो दोनों छोरों पर जाएगा. अतिरेकों के शमन की बहुत आवश्यता है. इसकी वजह ये है कि पुरुष अति पुरुष हो गए हैं और स्त्री अति स्त्री हो सकती हैं. दुनिया में जितने भी युद्ध हो रहे हैं, उनमें स्त्रियों के दृष्टि से बहुत कुछ हो रहा है. उनका शोषण हो रहा है.
'अगर प्रेम करने लायक पुरुष नहीं मिलता है तो...'
पूर्व में जाएंगे तो पाएंगे राम भी सीता से राय मांगते थे. आज के समय संवादहीनता दिख रही है. इससे वैश्विक मंच भी अछूते नहीं हैं. साधनों और अवसरों का बराबर आवंटन जरूरी है. लज्जा केवल स्त्री ही नहीं पुरुष का भी गहना है. अगर प्रेम करने लायक पुरुष नहीं मिलता है तो उसे बीमार बच्चे की तरह मत अपनाएं. जिसको रोज माफ करना पड़े, उसके लिए दया हो सकती है लेकिन उत्साह नहीं. पुरुष को जाहिए कि वो उत्साह जगाए.
'आदर्श समाज के लिए दोनों का अच्छा होना जरूरी है'
लेखिका सिनीवाली शर्मा ने कहा कि मैं कुछ भी लिखती हूं तो स्त्री पुरुष को लेकर नहीं लिखती. जो जरूरी है वो लिखती हूं. महाभारत में जो सुकन्या के साथ हुआ वही पुरुषों के साथ भी हो रहा है. शादी कितना दर्दनाक हो सकता है, ये किताब के जरिए बताने की कोशिश की है. आदर्श समाज के लिए स्त्री और पुरुष और दोनों को अच्छा होना चाहिए.
हमें स्त्री और पुरुष का भेद खत्म करना होगा
स्त्री की अस्मिता पर आपका क्या विचार है. इस सवाल के जवाब में कवयित्री अणुशक्ति सिंह ने कहा, जब मैंने शर्मिष्ठा की रचना की तो उसके दृष्टिकोण से इस बात को कहना शुरू किया. इसमें एक बेटी ने अपनी आहुति देकर पिता के धर्म की रक्षा की.
उन्होंने कहा कि हमारे समाज में दो तरह के लोग हैं. जब हिंसा होगी, आदर्श समाज कैसे बनेगा. एक तरफ बात की जाती है 'त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम, देवौ ना जानाति कुतो मनुष्य' और दूसरी तरफ 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'. हमें स्त्री और पुरुष का भेद खत्म करना होगा.