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'साहित्यकार की कृति को संस्कृति बनाता है प्रकाशक...', साहित्य आजतक के मंच पर बोले केशव मोहन पांडेय

Sahitya Aajtak 2023: दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में शुक्रवार को शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आगाज हुआ. तीन दिन चलने वाले इस कार्यक्रम के पहले दिन साहित्य से लेकर सिनेमा तक कई दिग्गजों ने हिस्सा लिया. इसी कड़ी में प्रकाशक संवाद: 'लेखक से कितने दूर, कितने पास-3' विषय पर चर्चा हुई.

साहित्य आजतक के मंच पर बोलते केशव मोहन पांडेय. साहित्य आजतक के मंच पर बोलते केशव मोहन पांडेय.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:52 AM IST

दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में शुक्रवार को शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आगाज हुआ. तीन दिन चलने वाले इस कार्यक्रम के पहले दिन साहित्य से लेकर सिनेमा तक कई दिग्गजों ने हिस्सा लिया. इसी कड़ी में प्रकाशक संवाद: 'लेखक से कितने दूर, कितने पास-3' विषय पर चर्चा हुई. इसमें सर्व भाषा ट्रस्ट के पब्लिशर केशव मोहन पांडेय, पत्रकार और बखरी किताब के लेखक विकास मिश्र और डॉ. आशीष कुमार जयसवाल (सीएमओ होम्योपैथी, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) ने विचार व्यक्त किए. 

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सर्व भाषा ट्रस्ट के पब्लिशर केशव मोहन पांडेय ने कहा, इस ट्रस्ट का उद्देश्य साहित्य की सेवा करना है. साहित्यकार की कृति से उसकी प्रकृति बनती है. प्रकाशक उसे संस्कृति बनाता है. छात्र जीवन में मैंने भाषा के नाम पर विकृति महसूस की. भाषा में तोड़ने की बात नहीं आनी चाहिए. इसको देखते हुए ही हमने सर्व भाषा के नाम पर काम किया. कश्मीर से लेकर केरल तक को इसमें संजोया गया है.

'बात प्यार या व्यापार की हो, वित्त बहुत अहम'

केशव मोहन पांडेय कहते हैं, बात प्यार या व्यापार की हो, वित्त की बात भी बहुत अहम होती है. चित्त लेखकों से मिल जाता है. इस तरह सभी के सहयोग से इस कारवां को आगे बढ़ा रहे हैं. कश्मीरी, डोगरी, उड़िया, राजस्थानी और पंजाबी के साथ ही अन्य भाषाओं के लेखक भी हमारे साथ जुड़े हैं.

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'अगर भाषा गलत है तो उसे कोई स्वीकार नहीं करेगा'

भाषाओं की तुलना पर उन्होंने कहा कि बंटवारा करना ठीक नहीं है. भाषा को लेकर मेरा मानना है कि ये अच्छा समय है. नवांकुर लेखक हों या पुराने साहित्यकार दोनों को पाठक स्वीकार रहा है. अगर भाषा गलत है तो उसे कोई स्वीकार नहीं करेगा. भाषा में देशज शब्द आने पर मिठास आ जाती है.

'भाषा में भाव, प्रवाह और सरलता होनी चाहिए'

वहीं, भाषाओं में हल्केपन के सवाल पर पत्रकार और बखरी किताब के लेखक विकास मिश्र ने अपनी किताब का उदाहरण देते हुए कहा कि भाषा में भाव, प्रवाह और सरलता होनी चाहिए. बतौर लेखक मेरा मानना है कि परम विद्वान से लेकर पान की गुमटी वाले को भी हमारी बात समझ आए.

'हमारे साहित्य में हैं होम्योपैथी के मूलभूत सिद्धांत'

इसके साथ ही डॉ. आशीष कुमार जयसवाल (सीएमओ होम्योपैथी, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) ने भी इस चर्चा में हिस्सा लिया. उन्होंने होम्योपैथी के सिद्धांतों को लेकर चर्चा की. उन्होंने होम्योपैथी और साहित्य के संबंध पर बात करते हुए कहा कि होम्योपैथी के जो मूलभूत सिद्धांत हैं वो हमारे साहित्य में बहुत पहले से रहे हैं. शोध के दौरान हमने पाया कि होम्योपैथी के सिद्धांत हमारे अपने हैं.

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