
साहित्य आजतक लखनऊ के दूसरे दिन तुम्हारी लंगी की लेखिका कंचन सिंह चौहान, युवा साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता और गेरबाज, प्रमेय के लेखक भगवंत अनमोल और मोस्ट वांटेड जिंदगी, जिंदगी अनलिमिटेड के लेखक गौरव कुमार उपाध्याय ने शिरकत की और अपने संघर्षों की कहानी से लोगों को दो-चार कराया.
साहित्य आजतक के मंच पर हौसलों की उड़ान सत्र में बोलते हुए 'तुम्हारी लंगी' की लेखिका कंचन सिंह चौहान ने कहा कि मुझे लगता कि सबसे जरूरी दो तीन चीजें एक आपका पॉजिटिव रहना और अपनी हकीकत को स्वीकार करना होता है. मेरे पास तो लड़ने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं थे.
अपनी-सी लगी कुब्जा
उन्होंने अपनी किताब तुम्हारी लंगी के किरदार के बारे में बताते हुए कहा, एक मेरा किसी से चर्चा के दौरान कुब्जा पर ध्यान गया और उस दिन मुझे कुब्जा राधा जी से बड़ी लगने लगीं. कुब्जा को मैं जिस नजर से देखती हूं वह एक दिव्यांग पात्र दिखा. मैंने दिव्यांग विमर्श को लिखने से पहले स्त्री विमर्श को लिखा. कई कवियों ने दिव्यांग विमर्श पर लिखा, लेकिन हमने जब लिखा तो खुद का आईना दिखाते हुए लिखा और इसके बाद हमारी बातें आप तक पहुंचने लगीं.
मैंने जब दिव्यांगता पर लिखा शुरू किया, तब तक मैं दिव्यांगता से ऊपर उठ चुकी थी. उन्होंने एक बात का ज्रिक करते हुए कहा कि मैं लोगों की सोच से दिव्यांगा थी. मुझे मेरे पिता ने कई पात्रों का उदाहरण देते हुए बताया ऊपर उठाया है, मैं चाहती हूं कि जो लोग मुझे देख रहे हों, सुन रहे हों. वो बहुत सीखें, अगर कंचन सिंह यहां है तो हम भी आ सकते हैं.
सभी में होती हैं कमियां: भगवंत अनमोल
भगवंत अनमोल ने मंच पर बोलते हुए कहा, सभी की जिंदगी में कोई-ना-कोई कमी होती ही है और मैं पूरी तरह से बोल नहीं पाता था. कोई जब मुझे मेरा नाम पूछता था तो मैं अपना नाम नहीं बता पाता था. आप कितने भी पढ़े लिखे हो, अगर आप अपना नाम नहीं बता पा रहे हैं तो क्या पीड़ित गुजरती है, सोचकर देखिए. आप कितने भी शिक्षित हो, कितने भी ज्ञानी हों और आप नाम न बता पाए तो आपका कोई वजूद नहीं है.
उन्होंने अपने जीवन का एक किस्सा साझा करते हुए बताया कि एक बार जब मेरे शिक्षक ने मुझे सवाल पूछा था, जिसका जवाब 4 प्वाइंट कुछ था. मुझे ये वो जवाब ग्याहरा साल बाद भी याद है और मैं आंसर नहीं बता पाया था, क्योंकि मैं ठीक से बोल नहीं पाता था. वहीं, दूसरा कोई सवाल को हल कर जवाब देता है वो भी 5 मिनट बाद भी. तो उस वक्त लगता था कि जीवन में जीना है या नहीं जीना है. इस सबके बीच में बीटेक में आता हूं, लेकिन मेरे पास भी कोई रास्ता नहीं था.
आपने देखा होगा कि जब गेंद नीचे आती है तो वह ऊपर भी जाती है और पानी को जब रास्ता नहीं मिलता तो वो पहाड़ को काट देता है, क्योंकि उसके पास कोई रास्ता नहीं होता. साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री के संघर्षों का भी उदाहरण दिया.
जिंदगी में एक ही चीज है, जिंदगी के ज्यादा गंभीरता से न ले, क्योंकि आज से 100 साल बाद यहां कोई नहीं रहेगा, लेकिन आपके विचार रहेंगे. राम जी के विचार भी यहां हैं.
'प्रेम लोगों तक पहुंचा का है जरिया'
उन्होंने अपनी किताब गेरबाज के बारे में बताते हुए कहा कि प्रेम लोगों तक पहुंचे का जरिया है, क्योंकि लोग ऐसी ही चीजें पढ़ना चाहते हैं. उन्होंने भारत के पूर्व राष्ट्रपति के कोट्स को बोलते हुए कहा कि सोच किसी के बाप की जागीर नहीं है. तो मैंने अपनी सोच पर काम किया. मैंने किन्नरों पर बात की है, जिन पर कोई बात नहीं करता चाहते थे और मैं ऐसे ही विषयों को लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि साहित्य राजनीति के आगे चला है पीछे नहीं चला है. यही मेरी सोच है.
'सुबह की छांव को देखकर निशा होने वालों...'
जिंदगी अनलिमिटेड के लेखक गौरव कुमार उपाध्याय ने कहा, कई बार ऐसा होता है कि जो आप देख रहे होते हैं, लेकिन अंदर कुछ और होता है. मैंने लिखना इस लिए शुरू किया कि मैं पिछले 10 सालों से सिंगापुर में रह रहा हूं.
उन्होंने अपने संघर्ष की कहानी साझा करते हुए बताया कि मैं एक बार जापान में एक रेलवे स्टेशन पर था और सोच रहा था कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूं. और इसी दौरान मेरी तबीयत खराब हो गई और मैं प्लेटफॉर्म पर गिर गया. मुझे वहां से उठाकर लोगों ने होटल पहुंचाया. तब मैंने एक लाइन लिखी थी, सुबह की छांव को देखकर निशा होने वालों, घर के कुछ हिस्सों में धूप सिर्फ दोपहर में आती है. मुझे लगा कि जिन चीजों के पीछे मैं भाग रहा हूं, जिनको में प्रभावशाली समझ रहा हूं, लेकिन वो सब वास्तविकता नहीं है. मुझे आगे आना होगा और लिखना होगा.
इसके बाद मैंने सोशल मीडिया पर उम्मीद की चिट्ठी लिखना शुरू किया और आप यकीन मानिए चार से जो उम्मीद की चिट्ठी के साथ सफर शुरू हुआ. मुझे हर रोज सैकड़ों मैसेज आते हैं, जहां मुझे लगाता है कि मैं तमाम लोगों की जिंदगी बदलने की कोशिश कर रहा हूं और कही-न-कही मेरी बात पहुंच रही है. मेरे जीवन में संघर्ष दूसरे तरीके का है और इसकी जरूरत भी है.
'मैं संभावनाओं में करता हूं यकीन'
उन्होंने आगे बताया कि मुझसे किसी ने पूछा की आप शौक से लिखते हैं या दूसरों के लिए लिखते हैं तो मैंने कहा कि मैं दूसरे की जरूरत के लिए लिखता हूं. मैं संभावनाओं में यकीन करता हूं. मुझे लगता है कि जब आप परेशान होते हैं तो आपके पास संभावनाएं रहती हैं. जैसे एक नेकी नाम के व्यक्ति हैं ऑस्ट्रेलिया में जिनके हाथ-पैर नहीं है, लेकिन वो अपनी जिंदगी में सब कुछ करते हैं. तो मुझे लगा कि ये बहुत अनोखी कहानी है, जिसको लोगों को जानना चाहिए.
जब मैंने इस पर काम शुरू किया तो पता चला कि दुनिया में उनके जैसे 400 लोगों और हैं, जिनके हाथ-पैर नहीं हैं. जब मैं इसके और तह में गया तो पता चला कि ऐसी हजारों कहानियां हैं. फिर मैंने देखा कि पैरा ओलंपिक भी होता है, जहां ये लोग सारे गेम्स खेल रहे हैं. मुझे लगा कि जिस चीज को मैं खोज रहा हूं, वो बहुत ही सहज है. आप जो भी परिस्थितियों से गुजर रहे हैं अगर उन्हें स्वीकार करते हैं तो जिंदगी में संभावनाएं बहुत हैं और फिर आपका नजरिया जिंदगी को लेकर बदल जाता है.