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पुरानी तिजोरी और दस लाख का चैलेंज
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
शहर की सबसे ऊंची इमारतों में से एक डालमिया टॉवर की 13वीं मंज़िल के उस चमचमाते कमरे में कंपनी की मीटिंग चल रही थी। कंपनी के अफ़सर की आवाज़ गूंज रही थी। ये कंपनी ताला और तिजोरी बनाने वाली एक कंपनी थी, जो लगभग सौ साल पुरानी थी लेकिन पिछले तकरीबन एक दशक से डालमिया लॉक्स कंपनी दिवालिया होने के कगार पर आ गयी थी।
आप लोग इन सेल्स ग्राफ़ को देखिए ... शर्म आनी चाहिए आप लोगों को ... कहते हुए साकेत डालमिया साहब ने कुछ कागज़ सामने बैठे सूट-बूट और टाई लगाए लोगों की तरफ उछाल दिये। ये..ये ग्रोथ रेट है हमारी? हमने इस क्वार्टर में पिछले सालों के मुकाबले दस परसेंट भी सेल नहीं की है... हो क्या गया है आखिर... सारे अधिकारी खामोश रहे... खिज़ाब वाले लाल बालों वाले डालमिया साहब की आंखे भी गुस्से से लाल हो रही थीं। उन्होंने गहरी सांस बाहर निकाली, बीपी को दो गोलियां खाईं और कुर्सी के पीछे सर पीछे टिका कर आंख बंद कर ली। फिर गहरी सांस लेने लगे। (बाकी की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें और अगर इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनना हो तो बिल्कुल नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक कीजिए)
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साकेत डालमिया के परदादा महेश डालमिया साहब ने ये कंपनी तकरीबन सौ साल पहले शुरु की थी, अंग्रेज़ों के दौर में। डालमिया लॉक्स एक ज़माने में लोगों के लिए भरोसे का दूसरा नाम हुआ करता था। ये माना जाता था कि डालमिया लॉक्स या तिजोरी को घर में लगा लिया तो लूट या चोरी नामुमकिन है।
पर बीते कुछ सालों में जबसे कीपैड वाले लॉक्स मार्केट में आए... जिनमें आप एक नंबर का कोड लगा सकते हैं और उस कोड को डालने पर ही तिजोरी खुलेगी... लोगों ने उसी तरह लॉक्स लेना शुरु कर दिया था... इसके अलावा कुछ और कंपनियां भी आ गयी थीं, जिन्होंने फिल्म एक्टर्स और क्रिकेट स्टार्स के साथ टीवी ऐड्स बनाए.. ज़ाहिर है एड्स का असर पड़ा और वो ब्रैंड चल निकले और डालमियां लॉक्स का ब्रांड मार्केट में फीका पड़ने लगा। हालांकि ऐसा नहीं कि डालमिया लॉक्स ने एड्स नहीं बनाए थे लेकिन उनके ऐड्स में कुछ दम नहीं था।
आ.. सर मैं कुछ कह सकता हूं... कंपनी के वाइस चेयरपर्सन सुबोध दत्ता ने मीटिंग रूम की खामोशी तोड़ते हुए कहा, तो डालमिया ने आंखे खोलकर उनकी तरफ देखा।
- हां, कहो...
- सर देखिए... मैं ये बात कहना नहीं चाहता था पर अब कहना ज़रूरी हो गया है। जब तक आपके पिता जी कंपनी संभालते थे.. हम तालों के अंदर ब्रास और ज़िंक इस्तेमाल करते थे... ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए आपने ही उसकी जगह आयरन की पतली शीट लगाने को कहा... शुरु में हमारी सेल्स पर कोई असर नहीं हुआ... पर धीरे धीरे उन तालों में जंग लगा और कस्टमर एक्सपीरियेंस खराब होने लगा... ये उसी का नतीजा है कि ... आज हम यहां बैठे हैं...
- देखो सुबोध, मुझे धंधा मत सिखाओ... सकेत डालमिया गुस्से में बोले, हां, मैंने किया हल्की क्वव्लिटी को डाउनग्रेड किया... तो औऱ करता क्या... मार्केट में एक्सपेंस पापा के टाइम के मुकाबले 200 परसेंट बढ़ गए हैं... मार्जन लगातार घट रहा है और टैक्सेस का तो पूछो मत... तो तुम मुझे ये आइडियस्टिक ज्ञान मत दो... इसकी तनख्वाह नहीं देता मैं तुमको... तुम ये बताओ कि कर क्या सकते हो अब...
- सर मैं कोई आइडियलिस्टिक बात नहीं कर रहा था.. मैं तो बस ये बता रहा था कि उसकी वजह क्या है. रही बात इसकी कि अब करें क्या... तो मेरे पास एक आइडिया है...
सबकी नज़रें दत्ता साहब की तरफ उम्मीद से उठ गयीं। दत्ता साहब अपनी कुर्सी से उठे और मीटिंग में चलते हुए बोलने लगे... . आप लोगों ने मुख़्तार का नाम तो सुना होगा...
- मुख़्तार... वो.. वो मुख़्तार...
- हां वही, ताले और तिजोरियों को तोड़ने के लिए सबसे मशहूर आदमी
- उससे हमें क्या लेना देना
- वही बिकवाएगा हमारे ताले और तिजोरियां
- पहेलियां मत बुझाओ... प्वाइंट पर आओ... साकेत डालमिया ने झुंझलाते हुए कहा तो दत्ता साहब अपनी मेज़ के पास लौटकर आए और कुछ पुराने अखबारों की कटिंग्स उठाकर डालमिया साहब की तरफ बढ़ा दी। ये कटिंगस् उन खबरों की थी जिनमें मज़बूत स मज़बूत ताले या तिजोरी को मुख्तार ने आसानी से खोल या तोड़ दिया था। किसी ज़माने में, मुख़्तार कोई आम आदमी नहीं होता था। वो तालों और तिजोरी का जादूगर था। पूरा शहर उसके बारे में जानता था कि दुनिया की ऐसी कोई तिजोरी नहीं बनी है जिसे वो बीस मिनट में खोल नहीं सकता... वो बहुत मशहूर था। किसी ज़माने में ताले खोलने का शो किया करता था। उसकी उंगलियों में वो जादू था कि किसी भी ताले में अपनी मास्टर की घुमाकर वो इस तरह चलाता था कि... कॉमप्लैक्स से कॉमप्लैक्स तिजोरियां खट की आवाज़ से खुल जाती थीं। उसने एक बार शहर की सबसे सेफ माने जाने वाले बैंक के लॉकर रूम में जाकर सिर्फ बीस मिनट में लॉकर खोल दिया था। कई बार सरकारी खुफिया एजेंसिया उसे किसी ऐसे केस में मदद के लिए बुलाती थीं जिसमें ताला, या तिजोरी या चाभी का कोई कनेक्शन हो। मुख्तार शो करता था... जब वो स्टेज पर भारी से भारी ताला चुटकियों में खोल देता था तो पंडाल तालियां से गूंज उठता था।
पर मुख़्तार ने अब ये काम छोड़ दिया था। हुआ यूं कि एक बार कलकत्ता के नैशनल म्यूज़िम में एक बेहद सुरक्षित लॉकर को खोलकर कोई हज़ार साल पुरानी एक मूर्ति चुरा ले गया था। शक मुख्तार पर आया क्योंकि माना गया कि तिजोरी इतनी सुरक्षित थी कि उसे खोलना किसी और के बस में नहीं था, और इत्तिफाक से मुख़्तार उस वक्त उसी शहर में था। मुख़्तार के खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत नहीं थे और वो बार बार कहता रहा कि ये काम म्यूज़ियम के केयर टेकर ने ही किया है जिसके पास लॉकर की चाभी थी। पर पुलिस ने साबित करने पर तुली रही कि काम मुख़्तार का है... हालांकि आखिरी में साबित हो गया कि चोरी केयरटेकर की मिली भगत से ही हुई थी। लेकिन जब तक केस चला... मुख़्तार महीनों तक जेल में रहा... और उसके बाद उसने तय कर लिया था कि अब वो कभी किसी की मदद के लिए भी ये काम नहीं करेगा।
उस घटना के इतने सालों बाद अब डालमिया लॉक्स के दत्ता साहब उसे लेकर कोई एडवरटाइज़िंग प्लैन बना रहे थे। मीटिंग रूम में साकेत डालमिया ने अखबार की कतरने सामने से खिसकाते हुए कहा, तो ये क्या मदद करेगा हमारी... ये तो खुद तिजोरी तोड़ने वाला आदमी है। दत्ता साहब बोले, सर आप पूरा प्लैन तो सुनिये। प्लैन ये है कि हम अखबारों में एक विज्ञापन देंगे... कि ताला तोड़ने वाले मुख़्तार को हम चैलेंज देते हैं कि वो हमारी तिजोरी... मॉडल नंबर 108 को तीन घंटे में तोड़ कर दिखाए... इसके लिए पूरा इवेंट होगा... मीडिया, पब्लिक, हम सबके सामने तिजोरी में पैसे रखेंगे और मुख़्तार से कहेंगे कि अगर उसने तीन घंटे में ये तिजोरी खोल ली... तो अंदर रखा पूरा पैसा उसका... जनता मुख़्तार को जीनियस मानती है सर, जब वो इसे नहीं खोल पाएगा तो हमारा ब्रांड लोगों की नज़र में फिर से आ जाएगा।
- पर अगर उसने लॉक खोल लिया तो... दत्ता मुस्कुराए और शातिराना तरीके से बोले, नहीं खोलेगा सर... यही तो खेल है...
- क्यों नहीं खोलेगा...
- क्योंकि हम उसे पैसा तिजोरी न खोलने का देंगे..
मीटिंग रूम में सारी नज़रें दत्ता साहब की तरफ घूम गयीं। दत्ता आगे बोले, हम मुख़्तार के साथ स्टैंप पेपर पर एक अग्रीमेंट करेंगे कि हम उसे दस लाख रुपये देंगे। तिजोरी खोलने की एक्टिंग करने के। उसमें लिखेंगे कि ये बस एक तरह का विज्ञापन है। पर पब्लिक, मीडिया और हमारे कॉमपटिटर्स को इस अग्रीमेंट के बारे में कुछ पता नहीं चलेगा... उन्हें तो लगेगा कि मुख़्तार ने हमें चैलेंज दिया... और हमने उसे एक्सेप्ट कर लिया।
साकेत डालमिया के चेहरे पर छाई मुस्कुराहट बता रही थी कि प्लैन उन्हें बहुत पसंद आया... पर वो अपनी एक्साइटमेंट छुपाते हुए बोले, हम्म... तिजोरी के अंदर कितनी रकम रखोगे...
- अदर कुछ भी रख देंगे, वो तो बस दिखाने के लिए है... रख देंगे एक करोड़... वो तो वापस ही आना है... हां बस दस लाख रुपए देने पड़ेंगे मुख्तार को... कुछ पैसे हम इवेंट के टिकट से भी कमा लेंगे..
दस लाख में इतना बड़ी ब्रांड बिल्डिंग बुरी नहीं थी। कोई और टीवी एड बनाने में इससे ज़्यादा पैसे लग जाते और वो इतना इफेक्टिव कॉनसेप्ट नहीं होता। तो बहरहाल, प्लैन पर मुहर लग गयी और दत्ता साहब ने तैयारी शुरु कर दी।
कुछ दो हफ्तों के बाद एक शाम दत्ता साहब... अपनी कंपनी वाली लंबी कार में शहर के एक ऐसे इलाके में चले जा रहे थे जिसके आस-पास नालों की बू थी। दूर तक गरीबी दिख रही थी.. कच्चे मकानों से उठता शाम के चूल्हे का धुआं... दत्ता साहब नाक पर सफेद रुमाल लगाए गाड़ी से उतरे और अपने सेक्रेटरी के साथ एक गली की तरफ जाने लगे। कुछ देर बाद उन्हें नुक्कड़ वाले मकान के बाहर एक लंबा चौड़ा शख्स जिसकी उम्र 55 के आसपास होगी, चारपाई पर बैठा दिखाई दिया। जो शायद अपमे पोते के साथ खेल रहा था। मैला सा कुर्ता पायजामा जो कभी सफेद रहा होगा, बाल खिचड़ी रंग के, भौंवे सफेद, हाथ पैरों पर पुरानी चोटों के निशान थे...
मुख़्तार... दत्ता साहब की आवाज़ से वो चौंका...सूट बूट पहने दत्ता साहब को देखकर खड़ा हो गया।
- क्या हुआ ... मैंने कुछ नहीं किया... आप लोग कौन हैं... आप लोग पुलिस से हैं... देखिए मैंने वो काम छोड़ दिया है...
- अरे अरे घबराओ मत.. हम पुलिस से नहीं है... डालमिया लॉक्स का नाम सुना है...
- हां, सुना है
- मैं वहीं से हूं... मेरा नाम सुबोध दत्ता है... हमारे पास तुम्हारे लिए काम है
- देखिए मैं कह चुका हूं कि मैंने काम छोड़
- अरे भई, विज्ञापन का काम है... इश्तिहार समझते हो... हम तुम्हें अपने एक इश्तिहार में लेना चाहते हैं बस.. बैठ के बात करते हैं... पूरी बात समझाता हूं...
मुख्तार चारपाई पर एक तरफ खिसका तो दत्ता साहब ने बैठते हुए मज़ाक में कहा, इतनी बदबूदार जगह पर कैसे रह लेते हो यार... मेरा तो यहां सांस लेना मुश्किल हो रहा है... ऐसा लग रहा है किसी कूड़ेदान में बैठे हैं मुख्तार झेंप गया... बोले, ख़ैर, सुनो... दो हफ्ते बाद शहर के एक अखबार में एक खबर छपेगी कि तालों के जादूगर मुख्तार ने डालमिया लॉक्स को चैलेंज दिया है। वो खबर हम छपवाएंगे... तुमको बस ये कहना है कि हां चैलेंज तुमने दिया है। दो दिन बाद हम एक और खबर छपवाएंगे कि हमने यानि डालमिया लॉक्स ने चैलेंज एक्सेप्ट कर लिया है। और फलां फलां तारीख को, हमारी फैक्ट्री में इसका फैसला होगा। ये एक बड़ा इवेंट होगा... उसमें सैकड़ों लोग टिकट लेकर आएंगे... और तुम्हें बस... बस तिजोरी को खोलने की एक्टिंग करनी है... तीन घंटे का शो चलेगा... उसके बाद तुम्हें ये कहना है कि तुम तिजोरी नहीं खोल पाए और बस... इसके लिए एक अग्रीमेंट होगा.. जिसमें मैं ये लिखूंगा कि तिजोरी नहीं खोल पाने पर ही तुम्हें पांच लाख रुपए दिये जाएंगे...
पांच लाख? मुख्तार ने दोहराया तो दत्ता बोले हां पांच लाख... बस इतना सा काम है... उसी शाम को प्रेस कॉनफ्रैंस होगी.. शहर के बड़े बड़े अखबारों के रिपोर्टर्स होंगे। तुमको उनके सामने ये कहना होगा कि मैंने बहुत कोशिश की, पर ये नहीं खुल पाया। मंज़ूर है?
जी... ये तो आसान है... मैं तैयार हूं इसके लिए...
ठीक है मुख्तार, पर एक पेंच है इसमें... समझा देता हूं... पांच लाख तुम्हें तिजोरी ना खोलने के लिए मिलेगा... पर अग्रीमेंट में लिखा होगा कि तिजोरी न तोड़ने के लिए तुम्हें दस लाख मिलेगा।
- दस लेकिन आपने तो पांच कहा था
- हां, पांच तुम मुझे दोगे... भई, पूरा प्लैन मेरा है तो ... कुछ फायदा तो मेरा भी होना चाहिए न...
- हां हां कोई दिक्कत नहीं मुख्तार ने कहा, आप ले लीजिएगा... मुझे बस मेरे पांच लाख उसी शाम प्रेस कॉनफ्रैंस से पहले पहले मिल जाने चाहिए...
- मिल जाएगा... डील
दोनों ने हाथ मिलाया और डील तय हो गयी।
ठीक दो महीने के बाद अखबार में छपी चैलेंज देने वाली खबर और कंपनी के चैलेंज एक्सपेट कर लेने के बाद आठ अक्टूबर का दिन मुकर्रर हुआ। डालमिया लॉक्स की ही एक पुरानी फैक्ट्री में शो ऑर्गनाइज़ हुआ। हज़ारों की भीड़ जमा हो गयी। दोपहर का वक्त था। फैक्ट्री के अंदर एक जगह पर जहां हल्का अंधेरा था, वहां लाइट्स लगाई गयीं। पीछे बड़ी बड़ी मशीनें थीं। काफी ऊंची छत पर इधर से उधर जाने के लिए पैसेज बने थे।
उसी हॉल में लोगों के बीच मुख़्तार खड़ा था। और उसके बगल में रखी थी.. डालमिया लॉक्स की तिजोरी मॉडल नं एक सौ आठ.. जिसके बारे में कंपनी ने दावा किया था कि इसे न कोई खोल सकता है, न तोड़ सकता है। शलवार कमीज़ पहने मुख्तार ने कमर पर एक बेल्ट बांधी थी, जिस से एक चाबियों का गुच्छा लटक रहा था और उसके बगल में वो सारा सामान था जो वो तिजोरी खोलने के ड्रामे में इस्तेमाल करने वाला था। एक बड़ा सा हथोड़ा, कुछ चाभियों का गुच्छा, एक डिब्बे में बारूद, छेनियां और एक इलेक्ट्रानिक कटर...
तो दोस्तों... आप सब का बहुत बहुत स्वागत है साकेत डालमिया की आवाज़ हॉल में गूंज गयी। उनके पीछे खड़े हाथ बांधे खड़े थे सुबोध दत्ता साहब। साकेत डालमिया ने आगे कहा, “तो दोस्तों, इंतज़ार खत्म हुआ... अब हम देखेंगे कि दुनिया के सबसे शातिर तिजोरी तोड़ और तालों के जादूगर मुख्तार हमारे डालमिया तिजोरी को खोल पाएंगे या नहीं। हम ये चैलेंज सबके सामने करना चाहते थे ताकि हम अपने सौ साल पुराने ब्रांड के ग्राहकों का भरोसा बनाए रख सकें। तो चलिए शुरु करते हैं... कहते हुए साकेत साहब ने दत्ता साहब को एक बड़ा सा बैग दिया... दत्ता साहब ने बैग खोला... और कुछ गड्डियां निकालते हुए पूरी भीड़ की तरफ दिखाते हुए बोले...
दोस्तों... ये एक करोड़ रुपए कैश हैं और मैं ये एक करोड़ रुपये हमारी डालमिया तिजोरी जो कि दुनिया की सबसे सेफ़ तिजोरी है, उसमें मैं रख रहा हूं। भीड़ में से कोई भी आकर चेक कर ले कि नोट असली हैं...
दो लोग आए और उन्होंने दो तीन गड्डी चेक करके थंम्स अप का इशारा किया।
शुक्रिया... आप जाइये... तो अब मैं ये करोड़ रुपए इसमें डाल रहा हूं कहते हुए दत्ता साहब ने नोटों की गड्डी सेफ में सजा दी। फिर तिजोरी को गोल गोल घुमाते हुए सबको दिखाया और दरवाज़े को बंद करते हुए बोले... मैंने इस पर टाइम लॉक लगा दिया है... अब ये चार घंटे से पहले नहीं खुलेगी... अब चैलेंज मुख्तार का है.... देखते हैं कि वो तीन घंटे में इसे खोल पाता है या नहीं... मुख्तार तुम तैयार हो...
जी हां, उसने जवाब दिया।
तो चलिए फिर देखते हैं कि किसमें कितना है दम... योर टाइम स्टार्ट नाओ
एक घंटी की आवाज़ गूंजी औऱ फिर मुख्तार ने पूरी तिजोरी को चारों तरफ घुमा कर देखा, उस पर लगे टाइम लॉक के बटंस दबाए... फिर दरवाज़े पर लगी नॉब को घुमाकर कान लगा के कुछ सुनने लगा.. उसने अपनी कमर से लटकी चाबियां निकालीं और लॉक खोलने की कोशिश की... पर लॉक नहीं खुला...
साकेत डालमिया और सुबोध दत्ता एक दूसरे को देखकर मुस्कराने लगे। लेकिन उन दोनों के चेहरे की मुस्कुराहट ज़्यादा देर नहीं टिकी... अचानक उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। क्योंकि उन्होंने देखा कि मुख़्तार अचानक पागल सा हो गया था, वो हथौड़ा उठाकर तिजोरी पर पूरी ताकत से चलाने लगा था। उसके चेहरे पर जैसे जुनून सवार था... चार हथौड़ी की चोटों से तिजोरी एक तरफ से पिचकने लगी... तो दत्ता और डालमिया ने घबराकर एक दूसरे को देखा...
... ये... ये क्या कर रहा है.. लगता इसने हमें धोखा दे दिया... ये ये पूरी तिजोरी तोड़ेगा और ... और एक करोड़ ले जाएगा... ब्रैंड की ऐसी तैसी होगी और एक करोड़ का नुकसान अलग... दत्ता मैंने तुम पर भरोसा नहीं करना चाहिए था।
- सब आप फिक्र मत कीजिए... वो ऐसा नहीं करेगा... स्टैंप पेपर पर अग्रीमेंट है... अगर उसने तिजोरी तोड़ दी... तो ये डील तोड़ने के एवज मे जेल जाएगा... और ये बात उसे पता है...
- पता है तो ऐसे क्यों तोड़ रहा है
- सर पता नहीं, शायद नैचुरल एक्टिंग कर रहा है
- दुनिया मैंने भी देखी है... ये एक्टिंग बिलकुल नहीं है... मुझे लगता है इसकी नीयत बदल गयी है
मुख्तार ने तिजोरी अपने रानों पर टिका कर उठाई और गुस्से में चीखते हुए नीचे पटक दी। तिजोरी कई जगह से पिचक कर कमज़ोर हो गयी थी। फिर उसने पास में रखा बारूद उठाया... और उसे तिजोरी के चारों तरफ लगाने लगा... और भीड़ से दूर हटने का इशारा किया। धमाके से सेफटी के लिए बचाने के लिए भीड़ थोड़ी देर के लिए हॉल से बाहर चली गयी। मुख्तार ने बारूद में आग लगाई और भाग कर हॉल के दरवाज़े पर आ गया। अंदर एक ज़ोर दार धमाका हुआ... सब लोग वापस अंदर गए... दत्ता और डालमिया का चेहरा पसीना-पसीना था। पर उन्हें राहत हुई जब देखा कि तिजोरी का लगभग कचूमर बन गया था पर टूटी नहीं थी।
इसके बाद मुख़्तार ने भीड़ के बीच में हथोड़ा लेकर बेसाख्ता तिजोरी पर बजाना शुरु किया... पर कुछ नहीं हुआ... वो थक गया तो बैठ कर लॉक में अलग अलग चाबियां लगाने लगा... पर लॉक नहीं खुलना था तो नहीं खुला... आखिरकार उसने गुस्से में फिर से आरी उठाई और तिजोरी को काटने की कोशिश की, पर आरी का ब्लेड टूट गया। उसके हाथ में चोट लगने से खून आने लगा था, पर वो रुका नहीं... हथोड़ा उठाया और बिना रुका तिजोरी पर मारने लगा। कुछ देर तक मारते-मारते वो खुद बे दम हो गया और फिर एक तरफ गिर गया....
उसके गिरते ही एक शोर सा उठा... सुबोध दत्ता और साकेत डालमिया ने गहरी सांस ली और गले लग गए। वो समझ गए थे कि मुख्तार उन्हें धोखा देना चाहता था पर दे नहीं पाया।
ख़ैर, मुकाबला हो गया था। मुख्तार हार गया और डालमिया लॉक्स कंपनी जीत गई थी। दोस्तों, आखिरकार वही हुआ जिसका हमें यकीन था। ये जीत हमारी नहीं, ये आपके सौ साल के भरोसे की है। आप ने देख लिया कि डालमिया लॉक्स कितने सुरक्षित हैं। तो सामने वाले हॉल में आप सब के लिए स्नैक्स का इंतज़ाम है... खाइये-पीजिए... और थोड़ी देर बाद प्रेस कॉनफ्रैंस के बाद इस प्रोग्राम को खत्म करेंगे।
मुख्तार ज़मीन पर बेसुध पड़ा था... थोड़ी देर बाद उसने हिम्मत बटोरी... और फिर घुटने की टेक लेकर उठा। साकेत डालमिया चले गए थे लेकिन दत्ता साहब उसके पास आए और बोले, फिसल तो गयी थी तुम्हारी नियत... पर आखिरकार हार ही गए... मुख्तार खामोश रहा। वो आगे बोले, चलो उठो... चेक कलेक्ट कर लो... और प्रेस कॉनफ्रैंस के लिए तैयार हो जाओ.... और हां, सुनो इतवार को घर आउंगा... पांच लाख निकाल कर रखना... फिर उसके गाल थपथपा कर, शान से हॉल से बाहर चले गए।
उसी शाम शहर के सभी बड़े अखबारों के पत्रकार प्रेस कॉनफ्रैंस में मौजूद थे... सामने एक ऊंचा सा स्टेज था जिस पर तीन चार कुर्सियों पर डालमिया लॉक्स के बड़े बड़े ऑफिसर्स बैठे थे। और बीच वाली कुर्सियों पर बैठा था.. हाथ पर पट्टी बांधे हुए मुख्तार... उसकी कमीज़ की ऊपरी जेब में दस लाख का चेक था, जो अग्रीमेंट के मुताबिक तिजोरी न खुल पाने के एवज में उसे मिला था। मुख्तार अगल बगल में दत्ता साहब और डालमिया बैठे थे। डालमिया के सामने मेज़ पर वो तिजोरी रखी थी... जो इधर उधर से बुरी तरह पिचक गयी थी, खरोंचे बने थे पर अब भी उसका दरवाज़ा नहीं खुल पाया था।
वो बोले, तो पत्रकार साथियों .. जैसा कि आप लोग देख पा रहे हैं कि मुख्तार जैसे शातिर तिजोरीबाज़ आदमी की भरसक कोशिशों के बाद भी डालमिया की तिजोरी अब भी सेफ है... जो चैलेंज हमने एक्सेप्ट किया था... वो हमी जीते... आप लोगों के कुछ सवाल हों तो आप पूछ सकते हैं... हमारे वाइस चेयरपर्सन आपके सवालों का जवाब देंगे। पत्रकारों ने सवाल पूछना शुरु किया तो सुबोध जवाब देने लगे कि ये तिजोरी किस मटेरियल की बनी है, इसके लॉक कहां से इंपोर्ट हुए हैं, वगैरह वगरैह। जितने देर वो बोल रहे थे... इधर डालमिया सामने रखी तिजोरी से खेलने लगे... तभी खटाक की हलकी सी आवाज़ आई तो डालमिया चौंक गए। तिजोरी में लगा टाइम लॉक टाइण खत्म हो जाने के बाद तिजोरी अपने आप अनलॉक हो गयी थी। मुंह इस तरफ था जिधर डालमिया थे... पत्रकार मेज़ पर रखी तिजोरी को पीछे से देख रहे थे। डालमिया साहब ने तिजोरी को खोला... तो .. तो उनका गला सूख गया... तिजोरी खाली थी। उसमें कुछ भी नहीं था।
दत्ता पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे और बगल में बैठे डालमिया की कनपटी से पसीना बह रहा था। उनके हाथ कांपने लगे... फौरन बीपी की दो गोलियां खाईं और कुर्सी पर धम्म से टेक लगा ली... माथा सहलाने लगे।
तो मुख्तार जी... आप क्या कहना चाहते हैं इस डालमिया तिजोरी के बारे में
एक पत्रकार ने मुख्तार से सवाल किया... मुख्तार ने डालमिया की तरफ देखा... जिनके माथे से पसीना बह रहा था। मुख्तार मुस्कुराया और फिर बोला... मैं यही कहना चाहूंगा... कि मैं वाकई डालमिया कंपनी की इस तिजोरी को खोलना नामुमकिन है... मैंने अपनी पूरी ताकत लगा दी, हथौड़े से पीटा... यहां तक की बारूद से उड़ाया... पर कुछ नहीं हुआ....
बारूद का नाम लेते ही... डालमिया चौंके... उन्हें याद आया कि बारूद के इस्तेमाल के वक्त सब लोग दस मिनट के लिए कमरे से बाहर गए थे... यानि उसी दस मिनट में मुख्तार ने तिजोरी खोल कर पैसे निकाल लिये थे।
मैं अपनी हार मानता हूं मुख्तार ने कहा... डालमिया की तिजोरी दुनिया की सबसे मज़बूत तिजोरी है... जिसे खोलना... मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
तालियों का शोर से हॉल गूंजने लगा... साकेत डालमिया को समझ नहीं आया कि वो करें तो क्या करें... वो झटके से उठे और दत्ता की कुर्सी के पीछे से जाते हुए... कुर्सी के पास रुके ... और फुसफुसा कर कहा YOU ARE FIRED… कहते हुए हुए स्टेज से नीचे उतरे और हॉल से बाहर चले गए। सुबोध दत्ता को कुछ समझ नहीं आया... ये..ये क्या हुआ अचानक उन्होंने खुली तिजोरी की तरफ झांका तो उनकी भी हवाइयां उड़ने लगीं। हाथ कांपने लगे... पत्रकार उठ कर जाने लगे थे। कुछ देर में हॉल में सन्नाटा हो गया। मुख्तार अपनी उंगली में बंधी पट्टी सहलाते हुए उठा और एक अंगड़ाई ली। दत्ता साहब गुस्से में उसके पास आए...कब खोली तुमने तिजोरी.... उन्होंने पूछा तो मुख्तार मुस्कुराते हुए बोला... तिजोरी तो मैंने दो मिनट में ही खोल ली थी... आठ मिनट तो पैसा झोले में भरने को चाहिए था।
- मैं... मैं तुम्हें अंदर करवा दूंगा...
- किस लिए...
- अग्रीमेंट की कॉपी मेरे पास भी है... चेक मेरी जेब में है... और कल सुबह के अखबार इस खबर से पटे होंगे कि मुख्तार ने तिजोरी नहीं खोली...
- तुम... तुम मुझे जानते नहीं... कहते हुए उन्होंने मुख्तार का गिरेबान पकड़ लिया... मुख्तार ने मुस्कुराते हुए उनका हाथ हटाया और कहा, ये गर्मी बचा कर रखिए.... नई नौकरी ढूंढने में काम आएगी दत्ता साहब... और हां... नई कंपनी में ज़रा ईमानदापी दिखाइयगा... पांच लाख रुपए के लिए बेच मत दीजिए... वरना वो भी कुछ सालों में डालमिया लॉक्स की तरह दिवालिया हो जाएगी। कहते हुए मुख्तार जाने लगा... दत्ता धम्म से कुर्सी पर बैठ गए... मुख्तार स्टेज की सीढ़ियों से उतरते उतरते रुका और बोला... और हां... आपका पांच लाख इतवार को मिल जाएगा... पर हां, लेने के लिए आना वहीं पड़ेगी... उसी बदबूदार जगह... जो आपके लिहाज़ से कूड़ेदान है... चलता हू
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