
कहानी - हॉस्पिटल की एक शाम
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
शुक्रवार की सुबह मेरी क्लीनिक में हमेशा रोज़ाना से ज़्यादा भीड़ होती है... वजह ये है कि मैं सैटरडे संडे एक बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में बैठता हूं तो ये क्लीनिक बंद रहती है। उस सुबह भी जब मैं क्लीनिक पहुंचा तो देखा कि भीड़ ठीक-ठाक थी। शादाब, मेरा कंपाउंडर और ऑफिस बॉय पंकज मेरा इंतज़ार ही कर रहे थे। मुझे गाड़ी से उतरता देखकर वो अपनी अपनी जगह पर हो गए।
मैं सीधे अपने केबिन में चला गया... अच्छा, मेरा केबिन जो है थोड़ा बड़ा है... उसमें मेरे अलावा पांच मरीज़ किनारे रखी बेंच पर लाइन से बैठ सकते है... और बाकी मरीज़ बाहर ही रहते हैं। अंदर केबिन से जैसे एक मरीज़ बाहर निकलता तो बाकी चार मेरी तरफ सरक आते और पंकज बाहर से एक नया मरीज़ अंदर भेजता... जो बेंच में सबसे आखिरी में बैठ जाता और चार लोगों के बाद अपने नंबर का इंतज़ार करता।
जी बताइये क्या हुआ.... मैंने समाने बैठी एक साड़ी पहने औरत से पूछा जो काफी गरीब लग रही थी, उसके कपड़े मुड़े-तुड़े थे... बाल बिखरे थे... आंखों के कोर भरे हुए थे... चेहरे की झुर्रियों में उम्र की थकान थी। और आंखें साथ लिपटी बदनसीबियों की कहानी कह रही थी। क्या तकलीफ है बताइये मैंने दोबारा पूछा तो उसने पल्लू को कंधे से हटाया... तो कंधे पर एक ज़ख्म था। बोली, पति फिर मारिन है साहब... (बाकी की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें। और अगर इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनना हो तो बिल्कुल नीचे दिए गए SPOTIFY या APPLE PODCASTS के लिंक पर क्लिक करें)
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(बाकी की कहानी यहां से पढें) अरे मैंने हैरानी से कहा...
केबिन में बैठे हुए बाकी चार मरीज़ जो अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे वो भी चौंक गए... वेटिंग वाले मरीज़ों में एक महिला काफी पढ़ी लिखी और अमीर लग रही थी। काफी मॉडर्न भी... उसने जंप सूट पहना था, ब्रैंडेड जूते और महंगा बैग लटकाया हुआ था, पर्फूय की खुश्बू थी.. उसने भी इस गरीब औरत को कुछ मुंह बिचकाते हुए देखा....
गरीब औरत जिस स्टूल पर बैठी थी मैंने उसे एक तरफ घुमाया ताकि उसके कंधे का ज़ख्म ठीक से देख सकूं। ज़ख्म काफी गहरा था... अरे बाप रे, इस पर तो दांत के भी निशान है... तुम्हारा पति है कि जानवर... हैं... क्या नाम है तुम्हारा
वो बोली, बिमला देवी...
बिमला ये क्यों किया उसने.... मैंने पूछा तो वो अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए बोली,
कल खाना बनाने में देर हुई गयी... ई आए काम पर से तो कहिन खाना निकालो... हमने बस... बस इतना कहा कि थोड़ी देर रुक जाओ... बनाए रहे हैं.... बस पता नहीं कौन से खराब मूड से आए रहे... एकदम से नाराज़ होए लागे... और मारने लगे... जब हम चिल्लाए तो काटन लागे... इधर भी काटिन ये देखिए... कहते हुए उसने अपने दाएं हाथ पर कोहने के ऊपर आस्तीन हटाते हुए दिखाया... वहां भी निशान था...
बिमला देवी ने बताया कि उसका पति उसे अक्सर मारता है... वो एक बार पुलिस थाने भी गयी थी... तब पुलिस ने समझा बुझा कर वापस भेज दिया था। लेकिन पति की मार-पिटाई बंद नहीं हुई... अब जब वो थाने जाती है तो दरोगा साहब ये कहकर भगा देते हैं कि तुम लोगों का रोज़ का यही है... बिमला ने साड़ी समेटते हुए अपने पैर दिखाए जिन पर बेंत से मारे जाने के नीले नीले निशान थे। वो चलते हुए लंगड़ा रही थी।
उसकी बात सुनकर मेरा मन दर्द से भर गया। केबिन के अंदर बैठे बाकी मरीज़ भी हमदर्दी से उसे देखने लगे। वो जंपसूट पहने अमीर और पढ़ी-लिखी महिला ने तो मुंह ही घुमा लिया... उससे देखा ही नहीं गया।
- “किसी दिन मार डालेगा तुम्हें।” कहते हुए मेरी आवाज़ तेज़ हो गयी। एक तो सारी दिक्कत ये है कि तुम लोग पढ़े लिखे नहीं हो... इसीलिए कहा जाता कि अशिक्षा समाज के लिए एक नासूर है... पढ़ी लिखी होती तो तुम्हें अपने अधिकारों का बार में पता होता... खुद लात मार देती ऐसे रिश्ते को और जाकर अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीती... मैंने बेंच पर बैठे मरीज़ों की तरफ देखा तो उन लोगों ने भी मेरी बात को सपोर्ट करते हुए हां में सर लिया। आज तो मैं दवा दे दूंगा... कल फिर मारेगा... क्या करोगी फिर....
“नहीं साब, वो सुबह जब उसका नसा उतरा तो कहिन कि अब सराब नहीं छुएबे... कसम खाइन हैं अपने बच्चे की ”
- “अरे, बड़ा वो कसम वाला.... फिर पीकर आएगा.. फिर मारेगा... देखो मेरी बात सुनो... मैंने कुर्सी उसकी तरफ खिसकाते हुए कहा, देखो बिमला... पत्नी पर हाथ उठाना ग़ैर कानूनी बात है... इसे घरेलू हिंसा कहते हैं... और इसके खिलाफ अपने देश में सख्त कानून हैं... तुम पढ़ी लिखी नहीं हो इसलिए अपने अधिकार नहीं जानती... लेकिन अब जानो... देखो क्या हाल बना दिया है...”
- डॉक्टर साहब, बस ई बार दै दीजिए दवा... अब नहीं करेगा... हम अपने रिस्तेदारन का फोन किये रहे, ऊई सब समझाए रहे... आप बस इसके लिए कछु दै दिजिए... बहुत दर्द है यहां...
अरे दर्द तो होगा ही, कंधे से मांस का खींच लिया है... shhh… देखो कैविटी बनी है... मैंने गहरी सांस ली और आवाज़ दी... पंकज, पंकज आया तो मैंने ड्रेसिंग का कुछ सामान मांगा और बिमला देवी के कंधे पर मरहम लगाने लगा... मरहम लगाते वक्त उसे दर्द हो रहा था। जब मैं रूई से घाव साफ कर रहा था तो उसे दर्द हो रहा था... जिससे केबिन में बैठे मरीज़ उसे अफसोस भरी निगाह से देख रहे थे... कि वाकई हमारे समाज में कितने परतें हैं... काश ये लोग भी पढ़े लिखे नौकरी पेशा सशक्त होते तो ये भी अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर और इज़्ज़त से जी सकते।
देखो बिमला.... मैंने रूई पर डॉक्टर टेप चिपकाते हुए कहा, तुम अगर चाहो तो मैं पुलिस स्टेशन चल सकता हूं तुम्हारे साथ... इंस्पेक्टर साहब से मैं बात करूंगा... देखते हैं कैसे नहीं दर्ज करते FIR ... पति तुम्हारा बिल्कुल ठिकाने पर आ जाएगा... बताओ...
बिमला ने कुछ सोचा और फिर ना में सर हिलाते हुए कहा... अरे रहा देव डॉक्टर साहब... घर-आंगन की बात है, घरै में निपट जाए... मारिहें-पिटिहैं और का करिहैं... कौनू जान से छोड़ी मार डालिहे... जिये का तो पड़े करी... का करी
मुझे गुस्सा तो बहुत आया... लेकिन करता क्या.... मैंने हल्की नाराज़गी में कहा, तुम जानो तुम्हारा काम जाने... मेरा काम बताना था... अगली बार पति मारे तो मेरे पास मत आना.... जाओ... ड्रेसिंग कर दी है... ये दवा बाहर से ले लेना... और बाहर पंकज होगा उससे कहना.... आ... अच्छा रुको... मैंने खुद मेज़ पर रखी घंटी बजाई... पंकज ने केबिन के अंदर झांका...
जी सर
मैंने पंकज से बिमला की तरफ एक इशारा किया... वो समझ गया।
ठीक है सर...
दरअसल मैंने पंकज से इशारे में कहा था कि बिमला से पैसा ना ले।
चलित है डॉक्टर साहेब... बहुत बहुत धन्यवाद कहते हुए वो पैर की तरफ झुकने लगी...
अरे अरे... ये मत करो... चलो जाओ आराम से... दर्द वर्द बढ़े या सूजन आए तो आ जाना...
वो हां में सर हिलाते हुए चली गयी। बिमला के जाने के बाद कमरे में एक अजीब सी खामोशी थी... मैंने केबिन में बैठे लोगों की तरफ देखकर गहरी सांस लेते हुए कहा, This country has long way to go… फिर उस पढ़ी लिखी महिला जो अमीर भी लग रही थी उससे कहा, देखिए.... एजुकेशन इज़ वेरी इमपॉर्टेंट... अब ये लोग कभी स्कूल गए नहीं, अपने राइट्स पता नहीं हैं इन्हें... कोई चाह कर भी मदद नहीं कर सकता इनकी... सैड... हाह... ऐनी वे... आप बताइये...
ख़ैर... मैंने अगले मरीज़ को देखा... उसे बुखार था। दो तीन मरीज़ निपटाने के बाद अब बारी उसी औऱत की थी जो वर्किंग लग रही थी... उसके पास लैपटॉप बैग था, और एक महंगा हैंड बैग भी... वो खूबसूरत भी थी, जंप सूट पहने उस लड़की ने ठीक-ठाक मेकअप कर रखा था। वो पढ़ी-लिखी लड़की... मेरे सामने स्टूल पर आकर बैठ गयी। परफ़्यूम की खुश्बू महक मेरे आसपास महक उठी।
“हैलो डॉक्टर” उसने मुस्कुराकर नर्म लहजे में कहा तो मैंने भी अदब से “हैलो” कहा।
- “जी बताइये” मैंने मुस्कुराकर पूछा, इससे पहले वो कुछ कहती मैंने कहा, Whats Your name…
- आ... आई एम मेघा कपूर... उसने कहा.. तो मैंने प्रिस्क्रिप्शन पेपर पर उसका नाम लिखा... मेघा कपूर.... जी मेघा टेल मी... मैंने कहते हुए उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा...
वो अपनी हल्की आवाज़ में मुस्कुराकर बोली, “आ.. एक्चुअली, कल मैं ऑफिस से लौटी तो... फ्रेश होने के बाद when I was coming out of my bathroom…. I slipped… पता नहीं कैसे पैर फिसल गया... तो ये लेफ्ट पैर में काफी स्वैलिंग आ गयी है... माई एलबो इज़ ऑल्सो पेनिंग ...
- “ओह आई सी, दिखाइये” मैंने कहा तो मेघा ने मुश्किल से अपना हाथ हिलाते हुए मेरी तरफ़ बढ़ाया।
हाथ देखकर मैं चौंक गया। वो... वो निशान गिरने के नहीं, मार-पीट के थे। कोहनी से नीचे वाले हिस्से पर लाल उभरे निशान बता रहे थे कि किसी छड़ी सा ऐसी ही चीज़ से पीटा गया है, साफ निशान दिख रहा था।
मैंने सर उठाकर उसकी आंखों में देखा। उसका हाथ कांपने लगा। मैंने उसकी आंखों में ग़ौर से देखा, जो आहिस्ता-आहिस्ता डब-डबा रही थीं।
“फ्लोर काफी... काफ़ी स्लिपरी हैं मेरे यहां तो” उसने आवाज़ संभालते हुए कहा। मैं उसकी आंखों में उमड़ रहे आंसुओं को देर तक देखता रहा।
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