
अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि भौंकते हुए कुत्ते काटा नहीं करते। बात तो सही है, लेकिन कौन जानता है कि एक भौंकता हुआ कुत्ता कब भौंकना बन्द कर दे और काटना शुरू कर दे... अच्छा कुत्तों के मामले में मेरा तजुर्बा थोड़ा अलग रहा है, अपनी बनी नहीं उनसे कभी... मेरे एक दोस्त हैं, अपनी से अच्छी नस्ल का कुत्ता पाले हुए हैं.... खुद नहीं नहाते हफ्तों उसको रोज़ नहलाते हैं, अपने बाप-दादा का नाम भले न पता हो कुत्ते के तीन नस्लों का हिसाब किताब डायरी में लिखे हैं... कोई पड़ोसी पेंचकस मांगने भी घर आ जाए तो उसे अपने पुराने कुत्ते की रिकार्ड की हुई भौं भौं सुनाते हैं... सुनाते हुए खुद भी रोते हैं और उम्मीद करते हैं सामने वाला भी रोए.... सड़क केआवारा कुत्तों से भी बहुत लगाव हैं उन्हें... कहते हैं कि वफादार होते हैं... अरे भाई .... वफ़ादारी अगर इसी का नाम है कि शाम के सात बजे से जो भौंकना शुरू किया तो लगातार, बगै़र दम लिए सुब्ह के छः बजे तक भौंकते चले गये, तो हम बिना कुत्ते के ही भले। कल ही की बात है कि रात के ग्यारह बजे एक कुत्ते की तबीअत जो ज़रा गुद-गुदाई तो उन्होंने बाहर सड़क पर आ कर तरह का एक मिसरा सा दे दिया... (पूरी कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें। और अगर इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनना हो तो फोन पर SPOTIFY या APPLE PODCAST खोलें और सर्च करें STORYBOX WITH JAMSHED)
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(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें) जैसे कोई शायर मुशायरें में माइक के सामने खड़ा होकर गज़ल सुनाने से पहले गला खंखारता है... जो उन्होंने ऊ... की आवाज़ निकाली है साहब... ऐसा लगा कि कह रहे हैं... हासिल ए गज़ल का मतला अर्ज़ कर रहा हूं, समात फर्माएं... और ये सुनते ही सामने वाले बंग्ले से एक दूसरे कुत्ते साहब ने अपने ही सुर में कहा.... इरशाद - इरशाद... अब दूसरी गली से तीसरे कुत्ते की आवाज़ आती है - मतला अर्ज़ कर रहा हं... ग़ौर चाहूंगा मौतरम... और ये सुनकर एक चौथे कुत्ते साहब जो हलवाई की बंद दुकान में बुझ चुके चूल्हे में आराम फर्मा रहे थे अचानक लपके और ... भाऊं भाऊं करके गज़ल मक्ता तक अर्ज़ कर गए। और इसके बाद... का मंज़र क्या कहिए साहब... वाह-वाह... ऐसा लगा कि ईस्ट से वेस्ट तक और नॉर्थ से साउथ तक क़द्र-शनास कु्त्तों यानि शायरी की कद्र करने कुत्ते ने ज़ोरों की दाद दी। एक साथ .... अब तो हज़रत वो मुशाइरा गर्म हुआ कि कुछ न पूछिए। कमबख़्त ये कुत्ते ऐसा लगा कि पूरा दीवान सुनाने बैठ गए... उन शायरों की तरह जिनको माइक मिल जाता है तो डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखी गज़ल तक सुनाते चले जाते हैं और जब वो खत्म हो जाती है तो आस्तीनों पर लिख कर लाए मिसरे सुनाते हैं। मगर कुछ भी कहिए... हमें भले ये भांव भाव लग रही हो लेकिन कुत्तों की दुनिया में तो ऐसा लगा कि जैसे हंगामा हो गया। और हंगामा गर्म हुआ कि ठण्डे होने में न आता था। हमने खिड़की में से हज़ारों दफ़ा इन शायरों को हट्ट- हट्ट चिल्लाया... मगर जब मुशायरा शबाब पर हो तो स्टेज पर पीछे कुर्सी पर बैठे सदर की भी कहां कोई सुनता है, तो हमारी कैसे सुनता। अरे भई, हम ये कहते हैं कि मियाँ तुम्हें कोई ऐसा ही ज़रूरी मुशाइरा करना था तो दरिया के किनारे खुली हवा में जाकर तबा-आज़माई करते ये घरों के दरमियान आकर सोतों को सताना कौन सी शराफ़त है?
और फिर हम देसी लोगों के कुत्ते भी कुछ अजीब बदतमीज़ होते हैं। इधर गरीब आदमी को झोले लिये जाते देखा तो भभोड़ लेंगे... भौंकने लगेंगे ये भी नहीं पता कि क्यों भौंक रहे हैं... कोई अमीर आदमी सड़क पर कार से गुज़रा तो पीछे पीछे दौड़ेंगे, जैसे कोई ज़रूरी बात बताना चाहते हो... और कहीं वो रुक गया तो कार से बाहर आकर पूछा... हां भई, क्या है... तो वापस जाते हुए कहेंगे.. नहीं, कुछ नहीं बस यूं ज़रा रेस लगा रहे थे। जाइये आप... हम तो यूं ही टाइम पास कर रहे थे... ये हैं आवारा कुत्तों की आवारा हरकत... अब आप अमीरों के कुत्ते देखिए.. आ हाहाहा.. क्या कहने भाई साहब... ये चिकने फर जैसे बाल... साफ सुथरे... इंजेक्शन लगे हुए... नाखून कटे, खुश्बू से महकते हुए। एक बार एक अमीर आदमी के बंग्ले पर जाने का इत्तिफाक हुआ हमारा... ख़ुदा की क़सम उनके कुत्तों में वो शाईस्तगी देखी कि लगा वाह... इस मुल्क में गरीब आदमी बन के पैदा होने से अच्छा है कि अमीर का कुत्ता बन के पैदा हों। क्या ठाठ थे... और ठाठ छोड़िये... अरे साहब, उन कुत्तों में सॉफेस्टिकेशन था... दिल किया कुत्ते को भी आदाब कर लूं... जूँ ही हम बंगले के अन्दर दाख़िल हुए कुत्ते ने बरामदे में खड़े-खड़े ही एक हल्की सी पूंछ हिला दी.. जैसे गली में आमने-सामने से निकलते लोग एक दूसरे को देखकर सर हिला देते हैं... कुत्ते ने पूंछ हिलाई तो हमें लगा कि हमें भी कुछ तो आदाब दिखाना चाहिए, आखिर हम भी ठीक-ठाक खानदान के हैं... हमाए दादा भी पोस्ट मास्टर थे, पर दादा कांजी हाउस में अफसर थे, अब्बा वकील थे... अम्मा... अरे मतलब... नस्ल हमाई भी कोई खराब नहीं थी... हमने अपनी तहज़ीब का मुज़ाहिरा किया और चलने लगे... कि तभी उस कुत्ते न जाने क्यों एक मुंह ऊपर उठाया और ऊ.... की आवाज़ फिर लगा दी... हम पलट गए... देखा तो वो ऊपर वाली खिड़की की तरफ देख के चिल्ला रहा था जैसे कह रहा हो कि भई देखिए... ये आ रहा है अंदर... देखिएगा कहीं कुछ गमला, दीवार घड़ी, या कोई सामान न उठा ले जाए... गुस्सा तो बहुत आया लेकिन जैसे ही मैंने उसे घूरा... उसके मुंह के किनारे वाले दो दांत दिखने लगे... और आवाज़ बदलने लगी... हम जल्दी से अंदर चले गए। फिर जिन साहब का वो कुत्ता था... उनसे कहा कि वापसी के वक्त इन्हें ज़रा बांध दीजिएगा... वो नाराज़ हो गए... बोले... क्या फरमाया आपने... .बांध दीजिएगा... अरे तौबा-तौबा.... भाई साहब ये आज़ाद रूह है... इनको बांधा नहीं जाता....मैंने कहा तो बोले, इन्हें इनकी आरामगाह में भेजा जाता है। ऐसा वैसा न समझिए इनको....तो कुत्तों से हमारे रिश्ते हमेशा ये ज़रा कशीदा ही रहे हैं लेकिन हमसे क़सम ले लीजिए जो ऐसे मौक़े पर हमने कभी सही रास्ते से से मुँह मोड़ा हो। शायद आप इसको तअल्ली समझें लेकिन ख़ुदा शाहिद है कि आज तक कभी किसी कुत्ते पर हाथ उठ ही न सका। अक्सर दोस्तों ने सलाह दी कि रात के वक़्त लाठी या छड़ी ज़रूर हाथ में रखनी चाहिए लेकिन हम किसी से ख़्वाह-मख़्वाह अदावत पैदा करना नहीं चाहते। हालाँकि कुत्ते के भौंकते ही हमारी तबई शराफ़त हम पर इस दर्जे ग़ल्बा पा जाती है कि आप हमें अगर उस वक़्त देखें तो यक़ीनन यही समझेंगे कि हम बुज़दिल हैं। शायद आप उस वक़्त ये भी अन्दाज़ा लगा लें कि हमारा गला ख़ुश्क हुआ जाता है। ये अलबत्ता ठीक है। ऐसे मौक़े पर कभी गाने की कोशिश करूँ तो खरज के सुरों के सिवा और कुछ नहीं निकलता। अगर आपने भी हम जैसी तबीअत पाई हो तो आप देखेंगे कि ऐसे मौक़े पर आयत-उल-कुर्सी आप के ज़ेहन से उतर जाएगी। उसकी जगह आप शायद दुआ-ए-क़ुनूत पढ़ने लग जाएँ। बाज़ वक्तों में ऐसा इत्तिफ़ाक़ भी हुआ है कि रात के दो बजे छड़ी घुमाते थिएटर से वापस आ रहे हैं और फिल्म के किसी गाने को गाकर उसकी ऐसी तैसी कर रहे हैं, लफ्ज़ भूल गए तो सीटी बजाने लगे... इतने में गली में मुड़े तो मोड़ पर सामने एक बकरी बँधी थी। ज़रा तसव्वुर मुलाहज़ा हो। अब बंधी बकरी है लेकिन हमें कुत्तों का ऐसा डर कि बकरी भी कुत्ता लग रही है... बस हाथ पाँव फूल गए। छड़ी की गर्दिश धीमी होते-होते हवा में ठहर गयी। सीटी की आवाज़ थरथरा कर ख़ामोश हो गई। घबरा गए। डॉक्टर कहते हैं कि ऐसे मौक़ों पर अगर सर्दी के मौसम में भी पसीना आ जाए तो कोई मुज़ाइक़ा नहीं बाद में फिर सूख जाता है। हालांकि आज तक कुत्ते के काटने का कभी इत्तिफ़ाक़ नहीं हुआ लेकिन अगर ऐसा सानिहा कभी पेश आया होता तो इस आपबीती की बजाए आज हमारा मर्सिया सुन रहे होते।
कुत्तों के भौंकने पर मुझे सब से बड़ा एितराज़ ये है कि उनकी आवाज़ सोचने के ताकत खत्म कर देती है। खास तौर पर जब किसी दुकान के तख़्ते के नीचे से उनका एक पूरा खुफ़िया ग्रुप बाहर सड़क पर आ कर तब्लीग़ का काम शुरू कर दे तो आप ही कहिए होश ठिकाने रह सकते हैं? हर एक की तरफ़ बारी बारी सब पर ध्यान देना पड़ता है। कुछ उन का शोर, कुछ हमारी सनक.. इस हंगामे में दिमाग़ भला ख़ाक काम कर सकता है? ऐसे मौक़े पर कोई कहानी लिखने बैठे भी तो क्या ही तीर मार लेगा... कैसी कहानी लिखेगा सोचिए... जिसमें न सर होगा... न पैर... बस पूंछ ही पूंछ होगी... मैं कहता है कि भई रात में भौंकने की ज़रूरत क्या है... चलो मान लिया ज़रूरी बात है... कोई आदमी रात को गली में सामने से गुज़रा... आप लगे भौंकने... अब एक भौंका, दूसरा भौंका... तीसरा भौंका.... अरे भई कहना क्या चाहते हो... हैं... अरे मान लो कि कोई ज़रूरी इक्तिला देना है या ये कहना है कि सड़क बंद है... तो भई तुम्हारे ग्रुप का एक नुमाइन्दा शराफ़त के साथ उस गुज़रने वाले से कह दे कि आली जनाब, सड़क बन्द है तो ख़ुदा की क़सम वो बिना चूं-चां किये वापस लौट जाएगा... मगर ये क्या कि मार भों-भों करके अपने फेफड़े फाड़े डाल रहे हो और हमारे कान...हालांकि ऐसा नहीं कि सारे कुत्ते ही ऐसे होते हैं.... ख़ुदा ने हर क़ौम में नेक अफ़्राद भी पैदा किए हैं। कुत्तों में भी नेक कुत्ते होते हैं, आपने ख़ुदा तरस कुत्ता भी ज़रूर देखा होगा। अमूमन उसके जिस्म पर तपस्या के असरात ज़ाहिर होते हैं। जब चलता है तो गरीबी और घबराहट के एहसास से आँख नहीं उठाता। दुम अक्सर पेट के साथ लगी होती है। सड़क के बीचों-बीच जीवन क्या है के सवाल पर सोचता हुआ... ग़ौर-ओ-फ़िक्र के लिए लेट जाता है और आँखें बन्द कर लेता है। शक्ल बिल्कुल फ़िलास्फ़रों की सी और शजरा आजकल के मोटिवेशनल स्पीकर्स सी मिला हुआ लगता है... अब किसी गाड़ी वाले ने हॉर्न बजाया। या गाड़ी के हिस्सों को खटखटाया और लोगों से कहलवाया। अरे हटाइये ज़रा इसको... और लोगों ने हट् हट चिल्लाया... तब उन्होंने एक अंगड़ाई ली... और सुर्ख़ मख़्मूर आँखों को खोला। सूरत-ए-हालात को एक नज़र देखा और फिर आँखें बन्द कर लीं। किसी ने एक अबे हट कहा तो आप निहायत इत्मीनान के साथ वहाँ से उठ कर एक गज़ दूर पर जा लेटे और ख़यालात का सिलसिले जहाँ से टूट गया था वहीं से फिर शुरू कर दिया। कोई गैरत वाला कुत्ता होता तो उसके लिए ये भी मैटर करता है कि घंटी या शोर कौन कर रहा है... कार वाला था तो हट गए... साइकल वाला होता तो गैरत वाला कुत्ता अल्लाह मियां से दुआ करता कि पांच सेकेंड के लिए ज़बान दे दीजिए तो उठ कर उस साइकल वाले से कहें, अबे निकल जा ना साइड से... इतने में तो ठेला चला जाता है....रात के वक़्त यही कुत्ता अपनी ख़ुश्क पतली सी दुम को सड़क पर फैला कर सोते हैं। आपने ग़लती से उस पर पाँव रख दिया, तो चिल्ला के उठेंगे और आपके पूरे खानदान को ज़बानी तौर पर तौल देंगे... आप समझेंगे आऊं आऊं कर रहा है... बेचारा... ये इतने पाजी होते हैं कि कूड़ा उठाने वाले आ जाएं तो उन पर ऐसे भौंकते हैं जैसे इनकी अमानत लिये जा रहे हैं... कोई फकीर आ जाए तो उसे दौड़ा लेते हैं... मुझे तो कभी-कबार इनके सपने आने लगते हैं... एक बार सपना देखा कि मैं सड़क से जा रहा हूं और अचानक कई किस्म के कुत्ते मेरे पैरों में लिपट गए... अरे हमने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया... हड़बड़ा कर उठ बैठे तो पाया कि पैर मसहरी की अरदावन में फंसा हुआ है।