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पहली सी मुहब्बत | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद

हम उस जेनरेशन से आते हैं जो इश्क़ करना फिल्मों से सीखती है जहां हर पल कुछ हो रहा होता है. कोई शरारत, कोई बात, कोई बातचीत. हम समझते हैं कि इश्क़ में ऐसा ही होता है और अगर ये नहीं है तो इश्क़ बोरिंग है लेकिन हकीकत ये है कि इश्क़ उन शादीशुदा पुराने लोगों के बीच भी होता है जो एक कमरे में बैठे बिना बात किये खामोशी से अपना अपना काम करते रहते हैं. उनका इश्क़ वक्त के साथ मैच्योर हो जाता है - सुनिये कहानी 'पहली सी मुहब्बत' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से

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जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
  • नोएडा,
  • 02 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:09 PM IST

पहली सी मुहब्बत 
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी 

 

फैज़ अहमद फैज़ ने कहा है कि – मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग। पहली सी मुहब्बत – कितनी खास होती है ना... जब इश्क के नए नए रंग आंखों में चमकते हैं, नया नया लम्स, नई नज़र... नए ख्वाब और नई ताबीरें... शुरु-शुरु की मुहब्बत खूबसूरत इसलिए भी होती है क्योंकि हम उस शख्स को कम जानते है.. हम उसे और जानना चाहते हैं और जो हम नहीं जानते वो हम तसव्वुर कर लेते हैं, इमैजिन कर लेते हैं... और वो इमैजिनेशन हकीकत से ज़्यादा खूबसूरत होती है। किसी के न होने पर उसकी याद... उससे ज़्यादा खूबसूरत, ज़्यादा ज़हीन, ज़्यादा ईमानदार और ज़्यादा ज़रूरी लगती है। तो इस हिसाब से इश्क का इश्क बने रहने में सबसे ज़रूरी है फासला... लेकिन इश्क में तो फासले मिटाने का दिल करता है... यही तो पेंच है सारा। इसी के इर्द गिर्द इश्क की दुनिया घूमती है और इसी कॉनट्राडिक्शन में रिश्ते के कॉनफ्लिक्ट बनते बिगड़ते है। अब देखिए, इस वक्त मैं लखनऊ के अमीनाबाद में जिस बेकरी के सामने खड़ा हूं... ये मेरे और मेरी वाइफ आभा के रिश्ते की शुरुआत की निशानी है। कई यादें हमारी इसी बेकरी के इर्द गिर्द झिलमिलाती हैं। यहीं हमने न जाने कितनी बार साथ साथ घूमते हुए नानखटाई खाते हुए बेमतलब की बातें की, यहीं हमने वो हमारा अजनबी लोगों को देखकर उसकी कहानी बनाने वाला खेल खेला, यहीं हमारी पहली बार एक दूसरे का हाथ पकड़ा और यहीं मैंने पहली बार उससे कहा – आई लव यू। शादी करोगी मुझसे?

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और उसने कहा मुझसे कहा, शक्ल देखी है आइने में अपनी? ” तो मैंने पूछा क्यों अच्छी शकल वाले से नहीं करोगी?”  और फिर हम दोनों खूब हसे थे, देर तक। हज़रतगंज की चौड़ी सड़कों के किनारे लगे लोहे के खंबों पर टंगे लैंप जल गए थे। ट्रैफिक की रफ्तार शाम के धुंधलके और हवा की हलकी तुर्शी के बीच मध्म हो गयी थी, उसने मेरी आंखों में ग़ौर से देखा और बस मेरा हाथ थाम लिया था। होठों से उसने कभी नहीं कहा था लेकिन जवाब मिल गया था। इसके कुछ महीनों के बाद हमने हम दोनों ने अपने अपने घरों में बात की, लेकिन बात बनी नहीं। मेरे मम्मी-पापा जो काफी प्रोग्रेसिव हैं, जिन्होंने खुद किसी ज़माने में लव मैरिज की थी उन्हें मेरे रिश्ते से ऐतराज़ था। वजह उन्हें आभा के घर वाले पसंद नहीं आए... लेकिन हमने तो तय कर लिया था... सो हो गयी शादी।  

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कुछ करीबी दोस्तों के साथ कोर्ट से शादीशुदा जोड़ा बनकर बाहर निकलते हुए हम दोनों बहुत खुश थे। शायद खुश होने की आखिरी मंज़िल हमने पा ली थी लेकिन तब हम नहीं जानते थे कि ज़िंदगी हमारे सामने नई चुनौतियां पेश करने वाली थी। उन दिनों तो लगता था जैसे दूर तक फैली वादियां और नज़र की हद तक फैला आसमान भी हमारी खुशी में शामिल है, हम साथ-साथ कई शहर घूमें। एक दूसरे से रूठते-मनाते, लड़ते-झगड़ते और एक दूसरे को जी भर कर चिढ़ाते भी थे। मैं रूठ जाता था तो वो अजीबो-ग़रीब गाने गाकर मना लेती थी और वो रूठ जाती थी तो मैं उसे नान-खटाई देकर मनाता था। हम पति-पत्नी कम दोस्त ज़्यादा थे। लेकिन वो मसरूफियत थी, या वक्त का अपना फैसला, आहिस्ता-आहिस्ता हमारे बीच कुछ बदलना शुरु हो गया था।

शादी के बाद साल डेढ़ साल तो बहुत खूबसूरती से कटे... हम अब भी लखनऊ की गलियों में हाथ पकड़े घूमते थे। अमीनाबाद में कबाब खाते थे। नान खटाई खरीदते थे और आते जाते अजनबी लोगों को देखकर एक-दूसरे को चैलेंज देते थे कि इसकी कहानी बताओ। जैसे एक बार जब हम हज़रत महल पार्क के पास से गुज़र रहे थे तो फुटपाथ पर गोलगप्पे जिसे लखनऊ में पानी के बताशे हैं, खाने के लिए रुके। वहां एक चचा भी पैरों के बीच में छतरी फसाए, हाथ में कागज़ की कटोरी लिये मज़े से बताशे खा रहे थे... हम दोनों भी वहीं खड़े अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे कि तभी आभा की नज़र उन अंकल पर पड़ी और उसने मुझे इशारा किया।

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अरे यार... प्लीज़ अभी नहीं मैंने चिढ़ते हुए कहा वो बोली, नहीं, बताना तो पड़ेगा...मेरी बारी है पूछने की... मैंने ठंडी सांस भरी और उन अंकल को ऊपर से नीचे तक देखा। फिर एक झूठी कहानी सुनाई। यही तो चैलेंज होता था... मैंने कहा– इनका नाम विशवेशवर पांडे है। इनके पिता जी लखनऊ हाई कोर्ट में वकील थे, बल्कि इनके दादा भी अंग्रेज़ों के ज़माने में बैरिस्टर थे.. उनके नाम पर कचहरी के पीछे एक सड़क भी है... मूर्ति भी थी लेकिन टूट फूट गयी है। कहानी ये है कि ... विश्वेशवर साहब बड़े होकर तैराक बनना चाहते थे उनको स्विमिंग का बड़ा शौक था ... स्कूल के दिनों में स्कूल से गोला मारकर तालाब में कूद जाते थे... वहां देर तक पानी में छपाक-छपाक किया करते थे। एक रोज़ इनके हेडमास्टर ने इनके पिता जी से शिकायत कर दी... और फिर इनके पिता जी जो हाथ में छतरी लिये तालाब पहुंचे और अपनी छतरी से ही इनकी खूब पिटाई की... विशवेशवर साहब गुस्से में घर छोड़कर चले गए फिर कभी नहीं लौटे... बहुत साल गुज़र गए... एक बार इन्हें पता चला कि पिता जी का देहांत हो गया है... उस वक्त ये अलीगढ़ में एक ताला फैक्ट्री में मज़दूरी करने लगे थे, भागे भागे आए तो घर वाले इनको देखते ही रोने लगे... गुस्सा-गर्मी सब खत्म हुआ तो बात वकील साहब की वसीयत तक आई। सबको पहले पता था कि वकील साहब ने अपने बेटे को सारी जायदाद दी होगी... जिसमें एक कोठी नक्खास में, एक वज़ीराबाद तीन बड़ी ज़मीने, कुछ इक्के और खानदानी दौलत.. काफी कुछ था... लेकिन वसीयत पढ़ी गयी तो वकील साब ने सारी दौलत रिश्तोदारों मे बांट दी... और विश्वेशवर साहब को सिर्फ एक चीज़ मिली – जानती हो क्या?
आभा ने कहा क्या?
मैंने कहा छतरी
आभा ने उन अंकल को देखा जो घुटनों के बीच छतरी दबाए गोल गप्पे खा रहे थे... और उसने ज़ोर का ठहाका मारा. 
ये हम दोनों का पुराना टाइम पास था हम इसी तरह रैंडम लोगों को देखकर उनकी कहानी सुनाने का चैंलेज एक दूसरे को देते थे, जो सुनने में सच लगे। बढ़िया दिन थे वो.... मज़ा आता था। हंसी मज़ाक छेड़ना, प्रैंक करना, बाहर एक दूसरे को ट्रीट देना... हम शादी के बाद भी ऐसे रहते थे जैसे दोस्त रहते हैं क्योंकि हमारा रिश्ता ही दोस्ती से शुरु हुआ था और शादी हमारी दोस्ती को तोड़ नहीं पाई। लेकिन वक्त आहिस्ता आहिस्ता बदला... या यूं कहें कि बदलना शुरु हुआ जब शादी के दो ढाई साल के बाद आभा की जॉब एक बड़ी कंपनी में लग गई थी। अब वो एसिसटेंट मैनेजर हो गई थी। उसकी ज़िम्मेदारियां बढ़ गई थी और फिर उसने अपने आप को ऊपर से नीचे तक काम में डुबा लिया था।

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आभा के ऑफिस में एनुअल कनक्लेव होने वाला था। वो दिन-रात काम में लगी थी। मेरे सो कर उठने से पहले चली जाती थी और मेरे ऑफिस से लौटने के काफी देर बाद, लौटती थी।

इतनी देर कहां लगा दी तुमने, फोन तो कर दिया करो एक बार जब आभा देर से लौटी तो मैंने दरवाज़ा खोलते ही झुंझलाकर कहा। आभा ने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और वो तेज़ कदमों से अंदर वाले कमरे में चली गई। उसको मेरा ये बर्ताव बुरा लगा था और ये नाराज़गी ही उस खामोशी का सबब थी जो कुछ रोज़ के लिए हम दोनों के बीच आकर खड़ी हो गई थी।

हम अजनबी से दोस्त हुए थे, दोस्त से प्रेमी-प्रेमिका और प्रेमी-प्रेमिका से पति पत्नी। ये वही क्रम था जिसमें दुनिया के बहुत सारे लोग रिश्तों के पायदान चढ़ते हैं लेकिन सीढ़ी के अगले पायदान पर पैर रखते हुए... पिछला तो छूट ही जाता है। मैं और आभा जब दोस्त हुए तो अजनबी नही रहे, फिर प्रेमी-प्रेमिका बने तो दोस्त नहीं रहे, और फिर जब पति-पत्नी बने तो प्रेमी-प्रेमिका भी नहीं रहे सके।

एक दिन आभा दफ्तर से लौटी तो मैंने उसकी तरफ एक गुलदस्ता बढ़ा दिया... उसने मुस्कुरा कर लिया लेकिन वो गर्मजोशी नहीं थी जो पहले हुआ करती थी। गुलदस्ता साइड में ऱखते हुए बोली, एसी रिपेयर करने आया था क्या, कल पूरी रात आवाज़ आती रही... मैं तो सो नहीं पाई... चलो खाना लगाते हैं ... ये कहते हुए वो चेंज करने चली गयी और मैं वहीं खड़ा रह गया।

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कोई नाराज़गी नहीं थी हमारे बीच... कुछ बिगड़ा भी नहीं था... बस बस वो पहली सी मुहब्बत अब पहली से नहीं रही थी... वो नया नया रंग पुराना पुराना हो गया था। आभा और मेरा रिश्ता हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा बदल रहा था और ये शायद नार्मल था क्योंकि हम हर रोज़ पति-पत्नी के तौर पर ज़्यादा परिपक्व हो रहे थे लेकिन हां... दोस्त के तौर पर, हम एक दूसरे से दूर हो रहे थे और यही हमारी गलती थी।

क्या हो रहा ऑफिस में…” संडे की शाम को उसने चाय का कप मेरी तरफ बढ़ाया तो मैंने उससे पूछ लिया कैसा चल रहा है प्रोजेक्ट, चाय में चीनी मिलाते हुए उसने बहुत ही संजीदा जवाब दिया, फाइनल प्रेज़ेंटेशन देनी है ट्यूसडे को... ये वाली डील हो गयी तो सब बहुत अच्छा हो जाएगा .. अच्छा सुनो वो ऑफिस से आते हुए लॉड्री होते आना... दो हफ्ते से फोन आ रहा है उसकाउसने कहा और मेज़ पर रखी मैगज़ीन में उलझ गई। मैंने उस पल महसूस किया कि अब हमारी बातें कितनी संजीदा होने लगी थीं। वो बेवजह की बातें, वो शरारतें कहां गुम हो गई थीं। और उनकी जगह लांड्री के बिल, राशन की लिस्ट और दूसरी ज़रूरी बातों ने ले ली थी।

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डिनर की टेबल पर खामोशी से खाना खाते हुए मैं अक्सर उसे देखता और सोचता कि ये वही लड़की है जिससे कभी मैं बिना किसी टॉपिक के घंटों बात कर सकता था। वो जो हर रोज़ सोने से पहले और उठने के बाद मुझे आई लव यू कहकर गले लगा लेती थी, अब मुद्दतें गुज़र जाती हैं कभी ऐसी कोई बात नहीं करती।

कैसी चल रही है तुम्हारी जॉब
एक रात खाना खाते वक्त, उसने सलाद की प्लेट मेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछा तो मैंने प्लेट लेते हुए अनमने ढंग से कहा ठीक चल रही है, और तुम्हारी
वो बोली, हम्म, देखो शायद इस बार प्रोमोशन हो जाए... रश्मि मैम, थोड़ा इंप्रैस तो हैं पर लेकिन लगता है थोड़े एफर्ट और लेने पड़ेंगे। बाई दा वे वीकेंड पर मुझे पुणे जाना होगा.. एक सेल्स मीटिंग है

मैंने उसकी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और नज़र प्लेट पर ही गड़ाए रहा। सच बताऊं तो मुझे बहुत अफसोस हुआ था कि अगले हफ्ते वो शहर में नहीं होगी, क्योंकि 4 चार तारीख को मेरी सालगिरह होती है।

उस रात बिस्तर पर लेटे हुए मैं सोचता रहा कि लोगों के बदलने के किस्से तो बहुत सुने थे लेकिन जिस तरह आभा बदली, ऐसे तो कोई मिसाल भी नहीं। कहां तो पहले वो मेरे बर्थडे के एक हफ्ते पहले से ही तैयारियां शुरु कर देती थी। गिफ्ट्स भेजती थी, गाने रिकॉर्ड करके भेजती थी और जाने क्या-क्या करती थी, मुझे स्पेशल महसूस करवाती थी और कहां ये वक्त है जब वो मुझे छोड़ कर चली जाएगी।

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एक दोपहर दफ्तर में मुझे बुखार सा महसूस हुआ, ठंड भी लग रही थी। मैं कैब लेकर ऑफिस से घर आ गया। मन किया कि फोन करके आभा को बता दूं कि वो जल्दी आ जाए लेकिन न जाने क्यों, हाथ रुक गए। सोचा, वो खुद आ ही जाएगी, लेकिन काफी देर इंतज़ार के बाद भी वो नहीं आई.. रात साढ़े 9 बजे उसका मैसेज आया “Sorry… will be late tonite”

कोई जब बीमार होता है तो उसे मां ज़रूर याद आती है, मुझे भी आ रही थी। हालांकि मेरी हालत वैसी नहीं थी पर फिर भी मैंने कोशिश की, सहारे से उठा एक कागज़ पर आभा के लिए मैसेज लिखकर टेबल पर छोड़ा और उसी हालत में कांपते हुए, कार ड्राइव करते हुए मां-बाबूजी से पास चल दिया। उस उदास लम्हे में हमारी किस्मत ने ये तय कर दिया था कि न आभा को मेरी ज़रूरत है, न मुझे आभा की।

कुछ घंटे की ड्राइव के बाद मैं बाइपास रोड से होता हुआ अपने घर पहुंच गया था।
दफ्तर से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर मैं मम्मी-पापा के पास आ गया था।

सही किया जो आ गए... देखो कैसे तप रहा है... मम्मी ने सर पर गीली पट्टियां रखते हुए कहा था। मैंने उन्हें कह दिया कि कि आभा बिज़ी है इसलिए चला आया। उन्होंने यकीन भी कर लिया।

फोन पर आभा की 18 मिस्ड कॉल और कुछ मैसेज थे, जिसमे वो सॉरी कहते हुए वापस बुला रही थी। मेरी आंखों के सामने वो दौर घूमने लगा जब मैं और आभा बेताब सड़कों पर बेपरवाह घूमते थे, कौन जानता था कि ये सफर इतना मुख़्तसर होगा।

लेकिन वो कहते हैं ना कि मां-बाप सब जानते हैं... हमें लगता है कि हम उनसे छुपा ले जाएंगे पर उन्हें सब पता होता है। एक रोज़ जब मैं बिस्तर पर लेटा फोन पर कुछ देख रहा था तो मम्मी मेरे कमरे में आईं।

क्या बात है, हुआ क्या है, मुझे बताओ उन्होंने कहा तो मैं हड़बड़ाते हुए बोला न..नहीं कुछ नहीं, होना क्या है, आप लोगों की याद आई तो... वो मुस्कुराई और बोले, तुम बोलो न बोलो, तुम्हारी शकल बोल रही है, कुछ गड़बड़ है, अब बताओ... अरे बताओ उन्होंने कहा तो मेरी आंखों में आंसू चमकने लगे।

माओं को भगवान ने ना जाने ये कौन सा वरदान दिया है कि औलाद की खुशी हो या ग़म, उनसे कुछ नहीं छुपता। मैंने भी शुरु से लेकर आखिरी तक की सारी कहानी उन्हें बता दी। बात खत्म होने के बाद मैंने उनकी तरफ देखा। मम्मी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी। जो मुझे थोड़ी अजीब लगी... मैं उन्हें अपनी परेशानी बता रहा था और वो यूं बिहेव कर रही थीं जैसे ये कोई बात ही नहीं है। मेरे सिरहाने खिसक कर आईं... गहरी सांस ली और बोलीं

भई, तुम्हारी जेनेरेशन यूं तो बड़ी समझदार है, टेक्नोलॉजी के बारे में, मेंटल हल्थ के बारे में, करियर के बारे में... पर इश्क के मामले में बड़ी कन्फ्यूज़ है... मैं मुस्कुराया, आगे बोलीं.

पता है दिक्कत क्या है, तुम्हारी जेनेरेशन की? Actually तुम लोग प्यार करना फिल्मों से सीखते हो, जहां हर सीन में कुछ न कुछ हो रहा होता है, शायद इसीलिए तुम लोग सोचते हो कि प्यार तभी है जब कुछ हो, कोई हसी-मज़ाक, कोई रूठना-मनाना, कोई शरारत, कोई नाचना-गाना हैना?” मैं ग़ौर से मां की आंखों में देख रहा था, लेकिन बेटा असल ज़िंदगी का प्यार उससे अलग होता है, हकीकत में प्यार तब होता है जब दो लोग एक कमरे में, अपना-अपना काम करते हुए भी खामोशी से घंटों बिता देते हैं.. तुम लोगो ने नकली दुनिया को अपना आइडल बना लिया है और तुम सब वही बनना चाहते हो...

मां की कही हुई इस बात ने मेरी ज़हन के रौशनमदान खोल दिये, इस नज़रिया से मैंने कभी सोचा ही नहीं था।

मां ने मुझे समझाया कि वक्त के साथ दुनिया की हर चीज़ बदलती है, रिश्ते में प्यार जताने का तरीका भी बदलता है। हमारा बर्ताव, हमारी बातें सब बदलती हैं। मुमकिन है जो हम प्यार जताने में झिझकने भी लगते हैं लेकिन वहां प्यार कम नहीं होता। तब प्यार में शोर नहीं होता, गहराई होती है। ये ऐसे है जैसे आपका दो तीन साल का बच्चा जब तोतली ज़बान में कुछ बोलता है तो बहुत सुंदर लगता है उसे सुनना... दिल करता है उससे उसी ज़बान में बात करते रहे... लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो हमेशा वैसे ही तुतलाता रहेगा... वो बड़ा होगा तो उसका बर्ताव बदलेगा... प्यार तब भी रहेगा... लेकिन बस प्यार जताने का तरीका बदल जाता है... रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं

आभा इस वक्त ज़िंदगी के जिस संघर्ष में डूबी है... वो तुम दोनों के भविष्य के लिए ज़रूरी है... तुम्हें उसे सपोर्ट करना चाहिए... कब तक सड़कों पर अजनबी लोगों की झूठी कहानियों सुनाओगे... कब तक चाहते हो कि वो तुम्हारे बर्ड पर उतने ही गिफ्ट दे ... जितने साल के तुम हुए हो... बेटा... तुम दोनों के बीच कुछ गड़बड नहीं है, सब नॉर्मल है... बस... बस तुम सोच ज़्यादा रहे हो...

उस पूरी रात मां का हर लफ्ज़ मेरे ज़हन में हथोड़े की तरह बजता रहा। अगली सुबह मैंने आंगन में चारपाई पर बैठे मां-बाबूजी को देखा मां अखबार पढ़ रही थी, बाबूजी मटर छील रहे थे। उनके बीच कोई संवाद नहीं था, लेकिन प्यार था, वही प्यार जिसके बाद उन्होंने शादी की। मुझे एहसास हुआ कि वो हमेशा से तो ऐसे नहीं रहे होंगे, वो भी कभी हसते-खिलखिलाते होंगे, शरारतें करते होंगे, अब उनके प्यार का रूप बदल गया है, पर प्यार तो अब भी है न।

अब मुझे समझ आने लगा था कि मेरे और आभा के बीच का फासला इसलिए था क्योंकि हमारी दोस्ती कमज़ोर हो गई थी। मैं पति बनकर सोचने लगा था। पहले अगर वो रात बाहर होती तो मैं फिक्रमंद होता, नाराज़ नहीं। वो मेहनत करती तो मैं सहारा देता, ताने नहीं। पिछले पूरा वक्त मेरी आंखों के सामने किसी कहानी की तरह गुज़रने लगा और उस वक्त में ना मैं गुनाहगार था, न वो। हम दोनों ही अपनी अपनी जगह पर सही थी, सिर्फ वक्त बदल रहा था।
मम्मी मैं जा रहा हूं, आता हूं अगले हफ्ते मैंने कहा तो मम्मी-पापा मुस्कुरा दिये, वो जानते थे कि मुझे बात समझ आ गई है।

रास्ते में, मैं आभा के लिए अपने बर्ताव पर खूब रोया, गाड़ी के बंद शीशों में खुद पर चीखा भी। हालांकि जानता था कि वो पुणे जा चुकी होगी, लेकिन मैं घर पहुंचना चाहता था। लैंडलाइन से उसे फोन करके यकीन दिलाना चाहता था मैं घर वापस आ गया हूं, मुझे माफ कर दो लेकिन घर पहुंचा तो एक सरप्राइज़ मेरा इंतज़ार कर रहा था। दरवाज़े पर ताला नहीं था, अंदर गया तो आभा वहीं थीं। आंसुओं से भरी, हैरान आंखों से उसने मुझे देखा और इससे पहले वो कुछ कहती, मैंने कहा आई एम सॉरी आभा

आभा और मेरी आंखों में आंसू थे... लेकिन हमने उस रात एक अहद किया कि हम पति पत्नी का रिश्ता चाहे निभा पाएं या नहीं... लेकिन दोस्ती हर हाल में निभाएंगे...

 

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