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'चांद को छत पे बुला लूंगा इशारा करके...' चंद्रयान-3 से कितना अलग है राहत इंदौरी और परवीन शाकिर का चांद

भारत आज चांद पर अपना यान उतारने जा रहा है. चांद सदियों से हिंदी-उर्दू साहित्यकारों का पसंदीदा विषय रहा है. शायरों-गीतकारों ने अपने-अपने अंदाज में चांद को कल्पनाओं में साहित्य में उतारा. उसकी तुलना अपने महबूब से की. तमाम गीतकारों ने चांद पर फिल्मी नगमे लिखे. चंद्रयान-3 चांद पर लैंडिंग करने वाला है. चंद्रयान-3 से शायरों का चांद कितना अलग है, देखें...

चांद पर शायरी. चांद पर शायरी.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 2:17 PM IST

धरती से चांद तक का सफर अपने आप में कई दास्तां समेटे हुए है. इश्क में पड़े लोग रात में चांद से पूरे इत्मिनान के साथ गुफ्तगू करते हैं. चांद शायरों का भी एक प्रिय सब्जेक्ट रहा है. शायरों ने चांद की तुलना उसकी खूबसूरती और उसके उजलेपन की वजह से महबूब से की. उसमें अपने माशूक की शक्ल देखी और दिलचस्प अंदाज में शेर कहे. सिनेमा से लेकर गजलों, नज्मों तक में शायरों ने चांद और महबूब के हुस्न को अपने-अपने अंदाज में बयां किया.

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कवियों, साहित्यकारों ने जिस कल्पना के साथ चांद को साहित्य में ढाला, उस कल्पना के बाद अब चांद हकीकत में सामने आ चुका है. चांद को लेकर की गई शायरों की कल्पना चंद्रयान से भेजी गईं तस्वीरों से अलग लग रही है. फिर आज चंद्रयान-3 चांद पर कदम भी रखने जा रहा है. मुक्तिबोध का 'चांद का मुंह टेढ़ा' है और घर- घर गूंजने वाली लोरी- चंदा मामा दूर के... खूब प्रचलित रहा है.

इफ्तिखार नसीम लिखते हैं...
उसके चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमां पे चांद पूरा था मगर आधा लगा.

फरहत एहसास ने लिखा है...
वो चांद कह के गया था कि आज निकलेगा 
तो इंतजार में बैठा हुआ हूं शाम से मैं.

परवीन शाकिर ने लिखा है...
इतने घने बादल के पीछे 
कितना तन्हा होगा चांद.

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बशीर बद्र ने लिखा कि
कभी तो आसमां से चांद उतरे जाम हो जाए 
तुम्हारे नाम की इक खूब-सूरत शाम हो जाए.

डॉ. राहत इंदौरी.

वहीं डॉ.राहत इंदौरी ने कुछ इस अंदाज में लिखा...
रोज तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है.

सूरज सितारे चांद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे.

तीरगी चांद के जीने से सहर तक पहुंची
ज़ुल्फ कंधे से जो सरकी तो कमर तक पहुंची

मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आंख निकलकर तेरे घर तक पहुंची.

आसमानों की तरफ फेंक दिया है मैंने 
चंद मिट्टी के चरागों को सितारा करके 

मुंतजिर हूं कि सितारों की जरा आंख लगे 
चांद को छत पे बुला लूंगा इशारा करके.

अब्दुर्रहमान मोमिन का ये अंदाज देखिए...
ये दुनिया चांद पर पहुंची हुई है
तुझे लाहौर जाने की पड़ी है.

अभी जो शेर लिक्खा भी नहीं है 
अभी से वो सुनाने की पड़ी है.

मोहतरमा ज्योति आजाद लिखती हैं...
बस एक बार मुझे चांद ने पुकारा था
तमाम उम्र सितारों ने घर बुलाया मुझे.

अभी वो चांद फलक से उतर के आएगा
ये एक ख्वाब हमें बारहा दिखाया गया.

चांद आंचल में सजाने की तमन्ना है तुझे
तेरे दामन में सितारों की जगह है कि नहीं.

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चांद पर कभी निदा फाजली ने लिखा...
दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आंचल में 
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

अजीज अहमद खां शफक ने लिखा है...
रात इक शख़्स बहुत याद आया 
जिस घड़ी चांद नुमूदार हुआ.

अफजल मिनहास लिखते हैं...
चांद में कैसे नजर आए तिरी सूरत मुझे 
आंधियों से आसमां का रंग मैला हो गया 

गुलजार ने इस अंदाज में लिखा...
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चांद ने कितनी देर लगा दी आने में.

इमरान शमशाद नरमी ने लिखा कि...
रात के वक्त उभरता है जुनूं का सूरज 
दिन निकलते ही किसी चाँद में ढल जाता है.

शायर मदन मोहन दानिश लिखते हैं...
फलक पे चांद-सितारे टंगे हैं सदियों से
मैं चाहता हूं जमीं पर इन्हें उतारे कोई.

इब्न-ए-इंशा ने चांद को कुछ इस अंदाज में बयां किया है...
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हंस दिए हम चुप रहे मंजूर था पर्दा तिरा
इस शहर में किससे मिलें हम से तो छूटीं महफिलें
हर शख्स तेरा नाम ले हर शख्स दीवाना तिरा
कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएं मगर
जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा...

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