
'साहित्य आजतक' का सबसे आखिरी सत्र ग़ज़ल को समर्पित था. विश्व पुस्तक मेला 2019 के लेखक मंच पर 'साहित्य आजतक' के इस सत्र की सबसे खास बात यह थी कि यह मेले के लिए निर्धारित समापन समय के बाद शुरू हुआ, फिर भी दर्शकों का उत्साह कम नहीं था. वैसे तो इस सत्र में चर्चा होनी थी डॉ. चेतन आनंद के हालिया गज़ल संग्रह 'अल्फाज के पंछी' पर लेकिन दर्शक किताब पर बातचीत की जगह उनकी ग़ज़ल सुनने पर आमादा थे. संचालक सईद अंसारी ने दर्शकों का मूड देखते हुए उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए उनसे ग़ज़ल सुनाने का आग्रह किया.
डॉ. चेतन आनंद ने पहले तो साहित्य आजतक की इस बात के लिए तारीफ की कि वह लेखकों की नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए सार्थक मंच दिया. यह एक ऐसा चैनल है जो युवा युवा कवियों को मौका दे रहा है. उसके बाद उन्होंने 'अल्फाज के पंछी' की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें कुल इक्यासी गज़लें हैं. डॉ आनंद के मुताबिक इस संकलन में शामिल ग़ज़लों में प्यार भी है, आक्रोश भी, तो समाज की विद्रुपताओं पर कटाक्ष भी. जिंदगी के हर रंग इनमें शामिल है, अब ये चाहे जहां तक उड़ान भरें.
2013 की तबाही शिव का संदेश था कि केदारनाथ में मंदिर के सिवा कुछ और नहीं
दर्शकों के आग्रह पर उन्होंने शुरुआत कुछ यों कीः
मैंने देखो आज नए अंदाज के पंछी छोड़े हैं
खामोशी के नभ में कुछ आवाज के पंछी छोड़े हैं
अब इनकी किस्मत में चाहे जितनी दूर तलक जाएं
मैंने कोरे कागज पर अल्फ़ाज़ के पंछी छोड़े हैं
उन्होंने आगे कहा-
पता नहीं था परों में वो जान भर देगा
मेरे नसीब में वो आसमान भर देगा
इसीलिए तो मैं लिपटा हुआ हूं मिट्टी से
ये आसमान तो मुझमें गुमान भर देगा...
इसके बाद उन्होंने अपने गुरु कवि डॉ कुंवर बेचैन को याद करते हुए उन पर लिखी अगली गज़ल की कुछ पंक्तियां सुनाईं-
वक्त की सियासत के, क्या अजब झमेले हैं
चेहरे तो गायब हैं, आईने अकेले हैं
इन रगों में बसते हैं, गीत नज़्म कविताएं
तुम क्या सिखाओगे हमको, हम कुंवर के चेले हैं
इस समय तक विश्व पुस्तक मेले का हॉल खाली हो चुका था. सुरक्षा वाले बत्तियां बुझाना चाहते थे, पर लेखक मंच पर साहित्य आजतक के कार्यक्रम में जुटे दर्शक उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे. दर्शकों की भारी मांग पर आनंद ने आगे सुनाया
अगर ये प्यार है तो प्यार के ये दरमियां भी हो
न हम बोलें, न तुम बोलो मगर किस्सा बयां भी हो
‘साहित्य आजतक’ को समर्पित उनकी अगली पंक्ति है
जहां दिल से मिले दिल एक ऐसा कारवां भी हो
कहां पर हो कहां कह दूं यहां भी वहां भी हो
व्यक्ति कि महत्त्वाकांक्षा को शब्द देते हुए उन्होंने आगे सुनाया-
उसे सूरज दिया चंदा दिया तारे दिए
फिर भी वो कहता है मेरे हिस्से में अब ये आसमां भी हो
मुझे थी चाह जिसकी, वो तेरा दिल मिल गया मुझको
मुझे क्या काम तेरे जिस्म से चाहे जहां भी हो
अगर ये प्यार है तो प्यार के ये दरमियां भी हो
न हम बोलें, न तुम बोलो मगर किस्सा बयां भी हो
भारतीय पत्रकारिता का पिंड है राष्ट्रवाद, फिर इससे गुरेज क्यों?
अपनी पसंदीदा ग़ज़ल सुनाते हुए उन्होंने पढ़ा-
प्यार आगे कब बढ़ा तकरार से रहकर अलग
सीढ़ियां बनती नहीं दीवार से रहकर अलग
रुक गए तो मौत की आगोश में आ जाओगे
सांस चलती ही नहीं रफ्तार से रहकर अलग
नफरतें ही नफरतें बस उलझने ही उलझने
ज़िदगी में ये मिला है प्यार से रहकर अलग
लोग सब हैरान मुझसे पूछते हैं आजकल
तुम खबर कैसे बने अखबार से रहकर अलग
जिंदगी में हौसला रखिए इसे मत छोड़िए
नाव आखिर कब चली पतवार से रहकर अलग
आलम यह था कि माइक बंद हो चुकी थी. बत्ती बुझ चुकी थी. पर दर्शक हटने का नाम नहीं ले रहे थे. अंत में सुरक्षावालों के आग्रह पर साहित्य आजतक ने जल्द ही किसी अन्य कार्यक्रम में बड़े स्तर पर मुलाकात का वादा कर इस आयोजन को विराम दिया.