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कवि सम्‍मेलन: नए-नए थे तो हम भी बिल्‍कुल तुम्‍हारे जैसे थे...

साहित्य आजतक के पांचवें सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में मशहूर कवि कुमार विश्वास, मनोज मुंतशिर, मदन मोहन समर, डॉ सरिता शर्मा, तेज नारायण शर्मा और डॉ निर्मल दर्शन ने अपनी कविताओं से समां बांधा.

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महेन्द्र गुप्ता
  • नई दिल्‍ली,
  • 11 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:57 PM IST

साहित्य आजतक के पांचवें सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में मशहूर कवि कुमार विश्वास, मनोज मुंतशिर, मदन मोहन समर, डॉ सरिता शर्मा, तेज नारायण शर्मा और डॉ निर्मल दर्शन ने अपनी कविताओं से समां बांधा. इस सत्र का संचालन कुमार विश्वास ने किया.

सबसे पहले कवि डॉ निर्मल दर्शन ने मंच संभाला. उन्‍होंने गीत 'जो तुम भी करते मुझसे प्‍यार तो माझी गीतों को गाता, स्‍वप्‍न हमारे आज नहीं तो कल पूरे हो जाते. आशाओं का महल हम तामीर कराते' से शुरुआत की. इसके बाद तेज नारायण शर्मा ने मंच संभाला. लाल किले से 70 सालों से भाषण दिया जा रहा है. भाषण वही का वही है, बस लोग बदलते जाते हैं. सूर्य की रोशनी लाने का वादा वे लोग कर रहे हैं, जिनके चुनाव चिह्न लालटेन है. शर्मा ने आगे कविता पढ़ी,

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आप ये भाषणों का बोझ जो हर साल हमारे कंधों पर डालते हैं,

कभी ये सोचा भी है कि हम इसे कैसे संभालते हैं.

आजादी सिर्फ समर्थ लोगों की सामर्थ्‍य का एक सालाना जलसा है,

जो हजामत बनवाकर जटायु बनने का ढोंग जानते हैं,

आप मर्यादा पुरुषोत्‍तम हैं, आपको तो हम ऐसे ही बहुत जानते हैं.

इसके बाद गीतकार मनोज मुंतशिर ने मंच संभाला. उन्‍होंने पढ़ा,

लपककर जलते थे, बिल्‍कुल शरारे जैसे थे

नए-नए थे तो हम भी बिल्‍कुल तुम्‍हारे जैसे थे

जैसा बाजार का तकाजा है, वैसा लिखना अभी नहीं सीखा

मुफ्त बंटता हूं मैं तो आज भी मैंने बिकता अभी नहीं सीखा

एक चेहरा है मेरा कमबख्‍त वो भी इतना जिद्दी है कि

जैसी उम्‍मीद है जमाने को, वैसा अभी दिखना नहीं सीखा

आगे डॉ सरिता शर्मा ने गीत पाठ किया. उन्‍होंने गाया,

निस्‍वार्थ समर्पण को कमजोरी मत समझो

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मन के रिश्‍ते को कच्‍ची डोरी मत समझो

तुम पढ़ न सके ये कमी तुम्‍हारी अपनी है

मेरे मन की किताब को कोरी मत समझो

उन्‍होंने आगे गुनगुनाया निरंतर चल रही हूं मैं

जहां जैसी मिली राहें

उन्‍हीं में ढल रही हूं मैं

कहीं ऊंचा कहीं नीचा

मेरा पथ है बड़ा दुर्गम

कहीं पाषाण कहीं खंडहर

ने लिए अवरोध के परचम

कहीं मिलती धरा बंजर

कहीं फैले हुए हैं जंगल

कवि मदन मोहन समर ने कविता पाठ से समां बांधा. उन्‍होंने पढ़ा,

अपनी आंखों में झांकों तुम नमी नहीं चिंगारी है

चिंगारी पर राख नहीं है, लपटों की तैयारी है

चलो हवा दो इस चिंगारी को, शोलो में ढाल दो

जहां अंधेरा शासन हो शोला एक उछाल दो

देख रही है दुनिया तुम में उजियाले विश्‍वास को

एक दिन दिव्‍य बनाकर तोहफा दो इतिहास को

नई रोशनी की तहरीरें लिख डालो आकाश में

उठो बांध लो सारा सूरज अपने बाहुपाश में

अंत में कवि और आप पार्टी के नेता कुमार विश्‍वास ने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधा. विश्‍वास ने अपनी कविता के जरिए दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पार्टी के अन्‍य नेताओं पर हमला किया.

विश्‍वास ने कविता शुरू करने से पहले डिस्‍क्‍लेमर भी दिया कि वे सब के बारे में कह रहे हैं, किसी एक पर नहीं है. वे सब हिन्‍दुस्‍तान की राजधानी में बैठे हैं. इसे सुनने में दिल और दिमाग भी लगाना. उन्‍होंने अपनी कविता में कहा,

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पुरानी दोस्‍ती को इस नई ताकत से मत तौलो

ये संबंधों की तुरपाई है, षणयंत्रों से मत तौलो

मेरे लहजे की छैनी से गढ़े कुछ देवता तब

मेरे लफ्जों पर मरते थे, वो कहते हैं मत बोलो

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