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भोपालः बेटे की चाह में एक माह की मासूम को मार डाला, कोर्ट ने मां को सुनाई आजीवन कारावास की सजा

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा समय में बेटियां सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण का सशक्त हस्ताक्षर हैं. शास्त्रों में भी बेटियों को हृदयों का बंधन, भावनाओं का स्पंदन, सृजन का आधार, भक्ति का आकार और संस्कृति का संस्कार माना गया है. आज के भारत में बेटियों को साहस, सृजन, सेवा, सभ्यता, सौंदर्य और शक्ति पुंज के रूप में देखा जा रहा है.

प्रतिकात्मक तस्वीर प्रतिकात्मक तस्वीर
अमृतांशी जोशी
  • भोपाल,
  • 27 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 10:53 PM IST

भोपाल की जिला अदालत ने अपनी ही एक माह की मासूम बेटी की निर्मम हत्या करने वाली मां को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास और एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. अपर सत्र न्यायाधीश अतुल सक्सेना की अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि बेटियां सिर्फ परिवार ही नहीं, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण की मजबूत कड़ी हैं. मामले में विशेष लोक अभियोजक सुधा विजय सिंह भदौरिया ने पैरवी की. 104 पन्नों के फैसले में कोर्ट ने बेटियों को लेकर विशेष टिप्पणी भी की.

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आजतक से खास बातचीत में विशेष लोग अभियोजक सुधा विजय सिंह भदौरिया ने बताया कि 5 साल बाद वह मासूम को न्याय दिलाने में सफल रहीं, लेकिन इस दौरान भोपाल जिला कोर्ट की टिप्पणी सबसे महत्वपूर्ण थी.

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा समय में बेटियां सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण का सशक्त हस्ताक्षर हैं. शास्त्रों में भी बेटियों को हृदयों का बंधन, भावनाओं का स्पंदन, सृजन का आधार, भक्ति का आकार और संस्कृति का संस्कार माना गया है. आज के भारत में बेटियों को साहस, सृजन, सेवा, सभ्यता, सौंदर्य और शक्ति पुंज के रूप में देखा जा रहा है. फैसले में रवींद्रनाथ टैगोर की पंक्तियों का भी उल्लेख किया गया- 'जब एक पुत्री का जन्म होता है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर मानव जाति से अप्रसन्न नहीं है, क्योंकि ईश्वर पुत्रियों के माध्यम से स्वयं को साकार करता है.'

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क्या है पूरा मामला?

घटना 16 सितंबर 2020 की है, विशेष लोक अभियोजक भदौरिया ने बताया कि घटना के दिन सुबह करीब 11 बजे आरोपी मां सरिता मेवाड़ा ने बाहर आकर लोगों को बताया कि उसने अपनी एक माह की बेटी किंजल को चारपाई पर सुलाया था, लेकिन बाद में वह चारपाई से गायब मिली.

परिवार और आसपास के लोगों ने तलाश शुरू की. घंटों बाद दोपहर करीब 4 बजे घर के भीतर रखी पानी की टंकी में मासूम बच्ची का शव बरामद हुआ.

बच्ची के पिता सचिन मेवाड़ा ने जब अपनी पत्नी सरिता से सख्ती से पूछताछ की, तो वह टूट गई और रोते हुए बताया कि उसने खुद किंजल को पानी की टंकी में डालकर ढक्कन बंद कर दिया था.

दरअसल, सरिता को बेटे की चाह थी और बेटी के जन्म से नाराज थी. इसी नफरत में उसने मौके का फायदा उठाकर मासूम बेटी की बेरहमी से हत्या कर दी और डर के कारण किसी को कुछ नहीं बताया.

अब 5 साल बाद कोर्ट ने इस निर्मम हत्या के मामले में आरोपी मां को उम्रकैद की सजा सुनाई है, साथ ही यह संदेश भी दिया है कि बेटियां ईश्वर का वरदान हैं और उन्हें बोझ समझने की मानसिकता को सख्ती से कुचलने की जरूरत है.

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