
भारत में 70 साल बाद चीता युग लौट रहा है. नामीबिया से आठ चीते 17 सितंबर को भारत पहुंचे जाएंगे. पहले उन्हें नामीबिया से कार्गों विमान के जरिए जयपुर लाया जाएगा फिर वहां से हेलीकॉप्टर के जरिए उसी दिन मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) लाया जाएगा. इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है. पीएम अपने जन्मदिन पर इन चीतों को उद्यानों में बनाए गए विशेष बाड़े में छोड़ेंगे. प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने पुष्टि की है.
पीएम मोदी कराहल श्योपुर में महिला स्व सहायता समूह के सम्मेलन को भी संबोधित करेंगे. एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि केएनपी के अंदर तीन हेलीपैड बनाए जा रहे हैं, जबकि चार उद्यान के बाहर वीवीआईपी आवाजाही के लिए बनाए जा रहे हैं.
30 दिन तक क्वारंटीन रहेंगे चीते, सेहत पर रहेगी नजर
जानकारी के मुताबिक कूनो पहुंचने के बाद चीजों को 30 दिनों तक एक बाड़े में रखा जाएगा. इस दौरान उनकी सेहत पर नजर रखी जाएगी. इसके बाद इन्हें छोड़ा जाएगा.
इकोलॉजिकल बैलेंस बनाए रखने के लिए कम से कम 25-30 चीता यहां होने चाहिए, इसलिए पांच साल में और चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से यहां लाए जाएंगे.
1947 में राजा रामानुज ने अंतिम चीतों का किया शिकार
चीतों का तेजी से शिकार बढ़ जाने के कारण उनकी प्रजाति संकट में आ गई थी. मध्य प्रदेश में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में देश में अंतिम तीन चीतों को मार डाला था.
इसके बाद 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर देश में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया था. इससे पहले ऊंचे पहाड़ों, तटीय क्षेत्रों और उत्तर पूर्व को छोड़कर पूरे देश में चीते की आवाज गूंजा करती थी.
अकबर के शासनकाल में 1000 थी चीतों की संख्या
दिव्यभानुसिंह की पुस्तक द एंड ऑफ ए ट्रेल - द चीता इन इंडिया के अनुसार मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल 1556 से 1605 के दौरान देश में करीब 1,000 चीते थे. इन चीतों का इस्तेमाल काले हिरण और चिकारे के शिकार के लिए किया जाता था. दिव्यभानुसिंह बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं.
दिव्यभानुसिंह ने दावा किया कि अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीतों की मदद से 400 से अधिक हिरणों को पकड़ा था. शिकार के लिए चीतों को पकड़ने और उनको कैद में रखने के कारण उनकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है.
पहले भी अफ्रीका से आयात किए जाते थे चीते
दिव्यभानुसिंह के अनुसार, भारत में अंग्रेजों को चीतों से शिकार करने में बहुत कम दिलचस्पी थी. हालांकि वे कभी-कभी घोड़ों पर सवार होकर जानवरों का गोली और भाला से शिकार करते थे. 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारत में चीतों की आबादी कुछ सैकड़ों तक गिर गई थी, जिसके बाद राजकुमारों ने अफ्रीका से इनका आयात शुरू कर दिया था.
1918 और 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे. अंग्रेजों की देश से वापसी और स्वतंत्र भारत के साथ रियासतों के एकीकरण के बाद चीतों के विलुप्ल होने के साथ ही चीतों से शिकार का खेल भी खत्म हो गया.
1952 में पहली बार चीतों के संरक्षण की उठी मांग
1952 में स्वतंत्र भारत में पहली वन्यजीव बोर्ड की बैठक में सरकार ने मध्य भारत में चीतों की सुरक्षा के लिए विशेष प्राथमिकता देने का आह्वान किया था. चीता को संरक्षित करने के लिए साहसिक प्रयोग का सुझाव दिया गया था.
इसके बाद, एशियाई शेरों के बदले एशियाई चीता को भारत लाने के लिए 1970 के दशक में ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू हुई. हालांकि यह प्रयास बीच में ही रुक गया. चीतों को देश में लाने की कोशिशों को 2009 में एक बार फिर से पुनर्जीवित किया गया.
2010 और 2012 के बीच दस साइटों का सर्वेक्षण किया गया. मध्य प्रदेश में कूनो नेशनल पार्क (केएनपी) को कम से कम प्रबंधन के बीच चीतों के लिए तैयार माना. भारत ने चीतों आयात करने के लिए जुलाई में नामीबिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
इसके तहत पांच मादा और चार नर चीता को 16 सितंबर को नामीबिया की राजधानी विंडहोक से लाया जाएगा. 17 सितंबर की सुबह जयपुर हवाई अड्डे पर ये चीते पहुंचेंगे फिर यहां से इन्हें हेलीकॉप्टर से उनके नए घर कुनो ले जाया जाएगा.