
नामीबिया से लाकर कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों की इन तस्वीरों को देखकर हर कोई खुश हो गया. सरकार ने भी दावा किया कि चीतों के आ जाने से कूनो नेशनल पार्क के पास बसे गांव में रहने वाले लोगों का जीवन बदल जाएगा. नेशनल पार्क के आसपास बसे गांवों में भयानक गरीबी, गंदगी, बदहाल सड़कें, बुनियादी सुविधाओं की कमी और कुछ गांव में कुपोषित बच्चे भी हैं. ऐसे में गांव वालों का कहना है कि चीतों के आने से उनके जीवन में बहुत ज्यादा बदलाव शायद ही आए. नेशनल पार्क के पास बसे गांवों में लोगों के पास रोजगार की कमी है.
Aajtak ने कूनो नेशनल पार्क के पास बसे गढ़ी मोनावर गांव का दौरा किया तो पाया कि चीतों की चकाचौंध से दूर नेशनल पार्क से महज 10 किलोमीटर दूर इस गांव में गरीबी, बेरोजगारी और मूलभत सुविधाओं की कमी से लोग परेशान हैं.
गांव में घुसते ही हमें झोपड़ीनुमा कच्चा मकान दिखा. आवाज़ लगाने पर दीपसिंह नाम का शख्स बाहर आया. उसने बताया कि गांव या उसके आसपास रोजगार का कोई साधन नहीं है, इसलिए मजदूरी करने बाहर जाते हैं. यही नहीं, दीपसिंह के ठीक पास में रहने वाली लक्ष्मीबाई ने तो सरकार से मांग कर डाली की चीतों को ले आए हैं, तो अब रोजगार या कोई काम धंधा उपलब्ध करा दिया जाए तो गरीबों का भला हो. लक्ष्मीबाई ने तफ्सील से बताया कि नेशनल पार्क के पास बसे इस गांव के हालात क्या हैं और कैसे कई बार इन्हें भूखा सोना पड़ता है.
गांव के अंदर घूमने पर दिखा कि यहां रहने वाली सहरिया जनजाति बेहद गरीबी में जीवन बिता रही है. थोड़ा अंदर जाने पर भूख से बिलबिलाता बच्चा दिखा तो सोचा उसकी मां से बात करें लेकिन जब उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया, तो पास ही बैठे युवक ने बताया कि गांव में लोगों की स्थिति दयनीय है. उसने बताया कि गांव में भुखमरी यानी बच्चों में कुपोषण कम तो हुआ है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. पड़ोस में रहने वाला एक बच्चा कुपोषित है जिसे लेकर परिजन अस्पताल ले गए हैं.
हाल ही में मध्यप्रदेश विधानसभा में सरकार ने बताया था कि श्योपुर जिले में 21 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं. आपको बता दें कि श्योपुर पूरे मध्यप्रदेश में कुपोषण के मामले में पहले नंबर पर है. शायद यही वजह है कि गांव में रहने वालों को लग रहा है कि चीतों से ज्यादा जरूरी गांव में बुनियादी सुविधाओं को देना है. गांव के युवाओं का कहना है कि चीतों के आने से बहुत ज्यादा फर्क उनके जीवन पर नहीं पड़ने वाला है.
इलाके की गढ़ी मोनावर जाने वाली यह सड़क इतनी बदहाल है कि गाड़ियों के साथ-साथ इंसानी जिस्म की हड्डियां भी बोल जाएं. गांव की ओर जाने वाली इस सड़क की दूरी कूनो जाने वाली सड़क से महज 1 किलोमीटर ही है, लेकिन हालात इतनी खराब है कि ज़रूरत पड़ने पर यहां एम्बुलेंस तक नहीं पहुंच पाती. गांव के रहने वाले सोनू जाटव बताते हैं कि कई मर्तबा गर्भवती महिलाओं को बाइक पर या फिर खाट पर लेकर इस सड़क से बाहर निकालना पड़ता है क्योंकि उन्हें लेने एंबुलेंस यहां नहीं आती.
यह सिर्फ एक गांव की तस्वीर नहीं. कूनो नेशनल पार्क से विस्थापित सहरिया जनजाति के एक और गांव पारोंद में भी लोग अव्यवस्थाओं के बीच जीवन जीने को मजबूर हैं. अब सरकार का दावा तो है कि चीतों के आने से इलाके में बदलाव होंगे. लेकिन सच यह भी है कि यह बदलाव आने में अभी लंबा समय लगेगा. फिलहाल तो कूनो नेशनल पार्क के आसपास बसे दर्जनों गांवों में लोग बदहाली के बीच जीवन बिता रहे हैं.