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MP: यहां कौवों के लिए बनाया गया है पार्क, जलेबी-कचौड़ी सहित परोसते हैं ढेरों पकवान

गायब हो रहे कौवों को बचाने के लिए मध्य प्रदेश के विदिशा में एक अनोखी पहल की गई है. यहां मुक्तिधाम में काग उद्यान बनाया गया है. यहां इन पक्षियों के लिए समोसे, जलेबी, कचोरी और बिस्किट आदि अलग-अलग जगह पर परोसे जाते हैं. इसे बनाने का विचार शहर के एक समाजसेवी मनोज पांडे को आया था. 

शहर के लोग अपनी मर्जी से देते हैं कौवों के लिए समोसे, कचौड़ी और जलेबी. शहर के लोग अपनी मर्जी से देते हैं कौवों के लिए समोसे, कचौड़ी और जलेबी.
मनीष चौरसिया
  • विदिशा,
  • 09 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:06 PM IST

पितृ पक्ष में हर कोई कौवों के लिए भोजन निकालता है. मान्यता है कि यदि कौवों को भोजन दिया जाए, तो इससे पितरों की आत्मा तृप्त हो जाती है. मगर, कंक्रीट के बढ़ते जंगलों की वजह से कौवे गायब होते जा रहे हैं. ऐसे में उन्हें बचाने के लिए मध्य प्रदेश के विदिशा में एक अनोखी पहल की गई है. 
 
यहां मुक्तिधाम में काग उद्यान बनाया गया है. यहां इन पक्षियों के लिए समोसे, जलेबी, कचोरी और बिस्किट आदि अलग-अलग जगह पर परोसे जाते हैं. कुछ सालों से इस मुक्तिधाम के काग उद्यान की चर्चा दूर-दूर तक हो रही है. इसे बनाने का विचार शहर के एक समाजसेवी मनोज पांडे को आया. 

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मनोज पांडे बताते हैं, “शहर में कौवों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही थी. हालात ये थे कि श्राद्ध के दिनों में भी कौवे ढूंढ़े नहीं मिलते थे. तभी उन्हें इसे बनाने का आइडिया आया. उन्हें मुक्तिधाम के आस-पास कौवे दिखते थे. इसलिए उन्होंने यहीं पर काग उद्यान बनाया.”

समाजसेवी मनोज पांडेय की पहल से मुक्तिधाम में काग उद्यान बनाया गया है.

 
'मां ने कहा- मनोज पागल हो गया'

मुक्तिधाम के सचिव मनोज पांडे बताते हैं, “लोगों को मुक्तिधाम को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं. मैं इन्हीं भ्रांतियों को दूर करना चाहता था. मैंने यह ठान लिया था कि मैं हर रोज मुक्तिधाम आऊंगा. मैं एक ब्राह्मण परिवार से आता हूं और जनेऊधारी हूं. मुक्तिधाम आने के लिए जनेऊ भी उतरना पड़ता है.” 

वह बताते हैं, “जब मेरी मां को पता चला कि मैं रोज मुक्तिधाम जाता हूं और वहां इस तरह से सेवा देता हूं, तो उन्होंने कहा कि मनोज पागल हो गया है. मगर, मैं जनेऊ उतारकर रोज यहां आने लगा और समाज के दूसरे लोगों को भी अपने इस मिशन से जोड़ता रहा.”

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'कचौड़ी समोसा जलेबी सब फ्री में आता है'

मनोज पांडे बताते हैं कि अब धीरे-धीरे शहर के लोगों को मुक्तिधाम और काग उद्यान की व्यवस्था पसंद आने लगी है. वह रोज सुबह 6 बजे यहां पर आ जाते हैं. रास्ते में जो भी दुकानें पड़ती हैं, वो अपनी दुकान से कौवों के लिए जलेबी, समोसा, कचौड़ी, बिस्किट, नमकीन सहित जिसको जो देना होता है, वह हर रोज मुझे देते हैं. 

लोगों का कहना है कि इस कौवों के पार्क के बनने के बाद शहर का ईको सिस्टम बेहतर हुआ है.

शहरवाले भी इस पहल से हैं खुश

वो कहते हैं श्राद्ध के वक्त तो मुक्तिधाम में उत्सव का माहौल होता है. उस वक्त यहां पर कौवों के लिए तरह-तरह के पकवान बनवाए जाते हैं. शहर में रहने वाले हरिनारायण शर्मा भी बताते हैं कि इस काग उद्यान से पहले छत पर एक भी कौवा देखने को नहीं मिलता था. श्राद्ध में कौवे मिलते नहीं थे, जिससे मन में असंतुष्टि होती थी, लेकिन अब ये आसानी से देखे जाते हैं. मतलब काग उद्यान बनाने से शहर का इको सिस्टम भी काफी हद तक ठीक हुआ है. 
 
19 साल से लॉकर में बंद अस्थियों का कराया विसर्जन 

मनोज बताते हैं कि इसके पहले मुक्तिधाम की स्थिति बहुत खराब थी. जब उन्होंने यहां की बागडोर संभाली, तो पता चला कि यहां के लॉकर में 20 साल से 19 से ज्यादा अस्थियां बंद हैं. मतलब उन्हें कोई लेने ही नहीं आया. मनोज कहते हैं कि उन्होंने पूरे उत्सव के साथ उन सभी अस्थियों का विसर्जन करवाया और फिर गया जाकर सबका पिंड दान भी किया.

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मनोज कहते हैं कि काफी सालों के बाद उनकी कोशिशें रंग ला रही हैं. लोगों में अब मुक्तिधाम को लेकर भ्रांतियां खत्म हो रही हैं. अब अगर किसी को मुझे शादी का कार्ड भी देना है, तो वह उसे देने के लिए बिना किसी डर के मेरे पास मुक्तिधाम खुशी खुशी चला आता है.

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