
इंदौर में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां साइबर ठगों ने एक रिटायर्ड प्रोफेसर को झांसे में लेकर 33 लाख रुपये ठग लिए. हालांकि, पुलिस की कार्रवाई के चलते 26.45 लाख रुपये वापस मंगवाए जा सके.
कैसे हुआ फ्रॉड?
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेश डांडोतिया के अनुसार, ठगों के एक गिरोह ने रिटायर्ड प्रोफेसर को वीडियो कॉल किया और खुद को दिल्ली पुलिस के साइबर क्राइम ब्रांच का अधिकारी बताया. ठगों ने दावा किया कि प्रोफेसर का आधार कार्ड ऐसे बैंक खातों से जुड़ा हुआ है, जिनका इस्तेमाल करोड़ों रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग में किया गया है.
इसके बाद, ठगों ने बुजुर्ग प्रोफेसर को गिरफ्तारी की धमकी दी और पूछताछ के बहाने उन्हें मानसिक दबाव में डाल दिया. डर के कारण, प्रोफेसर ने ठगों की बात मानते हुए उनके बताए बैंक खातों में 33 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए.
पीड़ित की शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और 26.45 लाख रुपये वापस दिलवाए. इस रकम से प्रोफेसर ने पुणे में अपना लीवर ट्रांसप्लांट करवाया. डांडोतिया ने बताया कि 49 बैंक खातों को ब्लॉक कर दिया गया है, जिनका इस्तेमाल इस धोखाधड़ी में किया गया था. पुलिस अब बाकी बचे पैसों को वापस लाने की कोशिश कर रही है.
क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’ ठगी?
'डिजिटल अरेस्ट' एक नई तरह की साइबर ठगी है, जिसमें ठग वीडियो या ऑडियो कॉल के जरिए खुद को पुलिस अधिकारी बताते हैं और लोगों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी देते हैं. डर के कारण लोग ठगों की बात मानकर उनके बताए बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर कर देते हैं.
पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे इस तरह के कॉल्स से सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध कॉल आने पर तुरंत पुलिस को सूचना दें.