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70 साल बाद भारत आ रहे चीते की सामने आई फोटो, अफ्रीका में हुआ मेडिकल, सीएम को बेसब्री से इंतजार

मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर नेशनल पार्क में जल्द ही अफ्रीका से चीते भेजे जाएंगे. 20 जुलाई को भारत और नामीबिया के बीच इसे लेकर करार हुआ था. सीएम शिवराज सिंह ने इस पर बधाई देते हुए इन चीतों के मेडिकल प्रशिक्षण की तस्वीर ट्विटर पर साझा की और लिखा कि मध्य प्रदेश इन चीतों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है.

नामीबिया में हुआ चीतों का मेडिकल (फोटो सौ. ट्विटर- @IndiainNamibia) नामीबिया में हुआ चीतों का मेडिकल (फोटो सौ. ट्विटर- @IndiainNamibia)
खेमराज दुबे
  • श्योपुर,
  • 16 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 9:59 AM IST

दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला वन्यजीव चीता 70 साल बाद भारत की जमीन पर एक बार फिर लौट रहा है. दरअसल,  20 जुलाई को भारत सरकार और नामीबिया के बीच हुए करार के तहत अब अफ्रीका भारत को चीते देगा. ये चीते मध्य प्रदेश के श्योपुर में स्थित कूनो-पालपुर नेशनल पार्क में दिखाई देंगे.

श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में बसने आ रहे चीतों का सोमवार को मेडिकल परीक्षण किया गया. सीएम शिवराज ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया सांझा की है. उन्होंने टीम को बधाई देते हुए कहा, ''यह वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है. एमपी तैयार है और इन चीतों के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है.''

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आजादी के 75 साल पूरे होने पर 15 अगस्त के दिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारत आने वाले चीतों की एक तस्वीर भी साझा की है, जिसमें चीतों का मेडिकल हो रहा है.

इंटरनेशनल विशेषज्ञों की टीम ने किया चीतों का परीक्षण
चीतों की तस्वीरें विंडहोक,नामीबिया में भारतीय उच्चायुक्त ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के माध्यम से साझा करते हुए लिखा, ''स्वतंत्रता दिवस पर खास- मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क जाने वाले संभावित उम्मीदवार चीतों का अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम ने पहली बार स्वास्थ्य परीक्षण किया गया. यह मेडिकल चेकअप प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ. लॉरी मार्कर के नेतृत्व में हुआ. हम नामीबिया के पर्यावरण और पर्यटन मंत्रालय को धन्यवाद देते हैं.''

बता दें कि श्योपुर जिले के जंगलों में गुजरात के गिरिवन से बब्बर शेरों के पुनर्वास के लिए दो दशक पहले कूनो नेशनल पार्क विकसित किया गया था. लेकिन यहां लंबे इंतजार के बाद भी बब्बर शेर यानी एशियाटिक लायन नहीं लाए जा सके, जिसके बाद अफ्रीकन चीतों की शिफ्टिंग का प्रोजेक्ट बनाया गया.

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