Advertisement

MP: क्या है धार का भोजशाला विवाद? जहां रात के अंधेरे में प्रतिमा रखने की कोशिश के बाद बढ़ गया तनाव

हिंदू भोजशाला को वाग्देवी यानी सरस्वती का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम इस परिसर को कमाल मौला मस्जिद बताते हैं. इसी को लेकर दोनों के बीच लंबे वक्त से विवाद चला आ रहा है. भोजशाला का नाम राजा भोज के नाम पर रखा गया है. यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारक है. 

धार में भोजशाला को लेकर लंबे वक्त से चला आ रहा विवाद धार में भोजशाला को लेकर लंबे वक्त से चला आ रहा विवाद
aajtak.in
  • धार,
  • 11 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:03 PM IST

मध्यप्रदेश के धार में 11वीं सदी की विवादित ऐतिहासिक इमारत भोजशाला में अज्ञात लोगों द्वारा मूर्ति रखने की कोशिश के बाद तनाव बढ़ गया. इसके बाद भोजशाला के आस पास बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है. 

हिंदू और मुस्लिम दोनों भोजशाला पर दावा करते हैं. इसी को लेकर दोनों के बीच लंबे वक्त से विवाद चला आ रहा है. भोजशाला का नाम राजा भोज के नाम पर रखा गया है. यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारक है. 

Advertisement

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक इंद्रजीत सिंह बाकरवाल ने बताया, कुछ अज्ञात असामाजिक तत्वों ने भोजशाला के बाहर सुरक्षा के लिए लगाए गए कंटीले तार के बाड़ को रात में काटकर स्मारक में मूर्ति रखने की कोशिश की. इसके तुरंत बाद पुलिस ने संज्ञान लिया. 

पुलिस के मुताबिक, बाकरवाल ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज और वीडियो की जांच की जा रही है. उन्होंने बताया कि जांच के आधार पर आरोपियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी. 

हिंदू भोजशाला को वाग्देवी यानी सरस्वती का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम इस परिसर को कमाल मौला मस्जिद बताते हैं. इससे पहले भी कई मौकों पर धार शहर में बसंत पंचमी का त्योहार होने पर ऐतिहासिक इमारत भोजशाला को लेकर तनाव की स्थिति बनी रहती थी. 

क्या है इसका इतिहास? 

हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. राजा भोज सरस्वती देवी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. इसे हिंदू सरस्वती मंदिर भी मानते थे. 

Advertisement

ऐसा कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी. बताया जाता है कि 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है. 

आखिर क्या है विवाद? 

हिंदू संगठन भोजशाला को राजा भोज कालीन इमारत बताते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का तर्क है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. दूसरी ओर, मुस्लिम समाज का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. मुस्लिम इसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement