
विधानसभा चुनाव के बाद मध्य प्रदेश में सरकार का चेहरा बदल गया और अब बदल रही है सियासी तस्वीर भी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पिछले 18 साल से पार्टी का पर्याय रहे शिवराज सिंह चौहान की जगह नए चेहरे मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर सरकार की तस्वीर बदली तो अब विपक्षी कांग्रेस ने भी बदलाव की ओर कदम बढ़ा दिए हैं. कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की छाया से बाहर निकलते हुए तेजतर्रार नेता जीतू पटवारी को सूबे में संगठन की कमान सौंप दी है.
जीतू पटवारी से पहले कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कमलनाथ पर गाज गिरना तय माना जा रहा था लेकिन हाल में उनके एक बयान ने सस्पेंस बढ़ा दिया था. कमलनाथ ने साफ कहा था कि मैं रिटायर नहीं होने वाला. विधानसभा चुनाव में जिस तरह से नेतृत्व को दरकिनार कमलनाथ टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार रणनीति तक हावी नजर आए, माना जा रहा था कि कांग्रेस के लिए उन्हें किनारे करना आसान नहीं होगा.
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कमलनाथ अगर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ते भी हैं तो माना जा रहा था कि उनकी पसंद के ही किसी नेता को ये जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. कांग्रेस नेतृत्व के कमलनाथ से नए अध्यक्ष के लिए नाम मांगने की खबरों ने इसे और मजबूत भी किया लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने ना तो कमलनाथ के खुद पद छोड़ने का इंतजार किया और ना ही उनकी ओर से नए अध्यक्ष के लिए नाम के सुझाव का. कांग्रेस नेतृत्व ने जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का ऐलान कर दिया और कमलनाथ के योगदान की सराहना करने की खानापूर्ति भी.
जीतू पटवारी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद एक्स पर जो पोस्ट किया, उसमें नई जिम्मेदारी के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के प्रति आभार व्यक्त किया लेकिन कमलनाथ का कहीं जिक्र नहीं था. इससे भी साफ हो गया कि जीतू को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे कम से कम कमलनाथ की कोई भूमिका नहीं है. फिर जीतू पटवारी एमपी कांग्रेस के अध्यक्ष कैसे बने, क्यों बनाए गए? ये सवाल भी उठने लगे. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जीतू हाल के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट राऊ नहीं बचा सके थे. इसकी चर्चा से पहले आइए ये जान लेते हैं कि जीतू पटवारी कौन हैं?
जीतू पटवारी कौन हैं?
जीतू पटवारी स्वतंत्रता सेनानी परिवार से आते हैं और ओबीसी समुदाय से भी हैं जिसकी मध्य प्रदेश में करीब 51 फीसदी आबादी है. वह साल 2013 में इंदौर की राऊ विधानसभा सीट से पहली बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. जीतू 2018 में भी इसी सीट से लगातार दूसरी बार विधानसभा पहुंचे थे. वह कमलनाथ के नेतृत्व वाली 15 महीने की सरकार में मंत्री भी रहे. जीतू पटवारी के पास संगठन में काम करने का तजुर्बा भी है. वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष, युवा कांग्रेस के अध्यक्ष, कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और मीडिया पैनलिस्ट भी रहे हैं.
प्रदेश अध्यक्ष के लिए क्यों बने पहली पसंद?
जीतू पटवारी अपनी सीट हारने के बावजूद मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए पहली पसंद क्यों? ये सवाल भी उठ रहे हैं. जीतू की गिनती राहुल गांधी के करीबी नेताओं में होती है. ये एक वजह बताई जा रही है लेकिन यही एकमात्र वजह है, ऐसा भी नहीं लगता. जीतू पटवारी को गुजरात कांग्रेस के प्रभारी की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी. जीतू एक तो राजनीतिक परिवार से आते हैं और दूसरे उनकी सियासत का अंदाज युवाओं को भाता है.
जीतू पटवारी के पिता रमेश चंद्र पटवारी भी कांग्रेस की सियासत में सक्रिय रहे हैं तो वहीं उनके दादा आजादी के पहले कांग्रेस और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे. 50 साल के जीतू ने कानून की पढ़ाई की है और आक्रामक भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं. जीतू पटवारी ओबीसी नेता हैं और उनकी इमेज एक जुझारू नेता की है. जीतू जिस राऊ विधानसभा सीट से सियासत करते हैं, वह राजनीतिक लिहाज से मध्य प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण मालवा निमाड़ रीजन में आती है.
काम आई गुटनिरपेक्ष, जुझारू नेता की इमेज
मालवा निमाड़ रीजन में कुल 66 विधानसभा सीटें हैं और मुख्यमंत्री मोहन यादव भी इसी रीजन से हैं. कांग्रेस की रणनीति सीएम मोहन के सामने उन्हीं के रीजन से एक बड़ा ओबीसी चेहरा खड़ा करने की है ही, एक पहलू और है. वह जीतू का मध्य प्रदेश कांग्रेस के दो प्रभावशाली गुटों में से किसी से भी नहीं होना. मध्य प्रदेश कांग्रेस के गुटनिरपेक्ष नेता की इमेज, संगठन के आदमी, युवाओं के बीच लोकप्रियता और जुझारू छवि भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में जीतू पटवारी के बाजी मारने के पीछे महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हुई.
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दरअसल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए गुटबाजी बड़ी समस्या रही है. दो पूर्व मुख्यमंत्रियों दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के अपने-अपने गुट हैं तो वहीं अजय सिंह राहुल और अरुण यादव जैसे नेताओं की भी अपनी लॉबी रही है. विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ ने जिस तरह से टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार रणनीति तक, नेतृत्व को किनारे रखा. उसके बाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए ये संदेश देना जरूरी माना जा रहा था कि संगठन से बड़ा कोई नेता नहीं है. कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए एग्रेसिव पॉलिटिक्स करने वाले नेता की इमेज के जीतू पटवारी नेतृत्व को सबसे मुफीद लगे.
लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर निर्णय
कांग्रेस ने सूबे की आबादी में सबसे अधिक हिस्सेदारी वाले ओबीसी से आने वाले जीतू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ ही आदिवासी दिग्गज उमंग सिंघार को विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी सौंपी है. ब्राह्मण नेता हेमंत कटारे को डिप्टी एलओपी बनाया गया है. कांग्रेस ने इस तरह मालवा निमाड़, ओबीसी के साथ ही आदिवासी और ब्राह्मण सियासत साधने की कवायद की ही है, पार्टी का ये कदम लुक यूथ पॉलिसी पर शिफ्ट होने का संकेत भी है.