
मध्य प्रदेश के श्योपुर में स्थित कूनो नेशनल पार्क से कुछ चीतों को राजस्थान के मुकुंदरा नेशनल पार्क में शिफ्ट करने की तैयारी की जा रही है. वहीं, एमपी के गांधी सागर अभ्यारण भी चीतों को शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है. हालांकि, कूनो के कुछ चीतों को दूसरे स्थानों पर शिफ्ट करने का प्रस्ताव पहले से ही चीता रीइंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट का हिस्सा था.
हाल ही में एक माह के अंतराल में कूनो में दो चीतों की मौत के बाद से कुछ चीतों को दूसरे स्थान पर भेजने की चर्चा तेज हो गई है. इसी बीच वन विभाग ने चार दिन पहले एनटीसीए को एक पत्र लिखकर चीतों के लिए वैकल्पिक स्थान की मांग की है. उधर, विशेषज्ञ कूनो में चीता की केयरिंग कैपेसिटी 20 ही बता रहे हैं.
चीता को शिफ्ट करने का निर्णय लेगी केंद्र सरकार
दरअसल, चीतों के लिए राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान के साथ ही एमपी के गांधी सागर अभयारण्य को भी चिह्नित किया है. इनमें मुकुंदरा पहले स्थान पर है. यहां चीतों को बसाने के लिए आवश्यक तैयारियां पूरी हैं. वहीं, गांधी सागर में व्यवस्थाएं जुटाने में कम से कम एक साल लग सकता है. हालांकि, कूनो से कितने चीते कब शिफ्ट होंगे, ये निर्णय केंद्र सरकार को लेना है.
बता दें कि पिछले मार्च माह हुई चीता टास्क फोर्स की बैठक में मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क और गांधी सागर अभयारण्य को लेकर मंथन हो चुका है. इसमें सामने आया कि यदि कूनो से कुछ चीतों को तत्काल भी शिफ्ट किया जाए, तो मुकुंदरा हिल्स पूरी तरह तैयार है.
मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक जसवीर सिंह चौहान ने 'आजतक' को फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि उनके विभाग ने चीतों के लिए एक वैकल्पिक स्थान का आग्रह करते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण (एनटीसीए) को चार दिन पहले एक पत्र लिखा है.
कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किमी में फैला है. यहां एक समय में अधिकतम 20 से 21 चीतों को रखने की क्षमता है. इस लिहाज से 18 चीतों के लिए अभी पर्याप्त स्थान है. मगर, चीते आजाद होकर विचरण कर सकें और सुरक्षित रहे, इसके लिए चीतों की संख्या को कम करने की जरूरत है.
चीतों की शिफ्टिंग की बात नई नहीं- डॉ झाला
वहीं, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के पूर्व डीन रहे और पूर्व में चीता प्रोजेक्ट से जुड़े रहे डॉ. वाय वी झाला ने 'आजतक' को फोन पर बताया कि कूनो नेशनल पार्क चीतों की बसाहट के लिए पूरी तरह से मुफीद है. वहां चीता प्रोजेक्ट के तहत नामीबिया और साउथ अफ्रीका से लाए गए चीते सर्वाइव भी कर रहे हैं. कूनो से कुछ चीतों की शिफ्टिंग की बात नई नहीं है. एक्शन प्लान में भी यही सोच रखी गई थी.
उसमें बताया गया था कि 20 चीतों को लाया जाएगा, उनमें से चार या पांच चीतों को कहीं और रखा जाएगा, क्योंकि कूनो की केयरिंग कैपेसिटी 20 है. यहां से कुछ चीतों को राजस्थान के मुकुंदरा शिफ्ट किए जाने का विचार सही है. मुकुंदरा चीते रखे जाने के लिए तैयार भी कर लिया गया है. वैसे मुकुंदरा के साथ एमपी में ही गांधी सागर सेंचुरी भी चिह्नित है. मगर, वहां अभी तैयारियां नहीं हो सकी है.
बता दें कि चीता पुनर्स्थापना परियोजना के तहत साउथ अफ्रीका और नामीबिया से कुल 20 चीतों को लाकर बसाए जा चुके हैं. इनमें से एक नामीबियाई मादा चीते की 26 मार्च को किडनी बीमारी से और पिछले रविवार को साउथ अफ्रीका के चीते उदय की मौत हो चुकी है. कूनो में वर्तमान में 22 चीते (इनमें 4 शावक भी शामिल) हैं और कूनो की क्षमता 20 चीतों की है.
मुकुंदरा में 82 वर्ग किमी का फेंसिंग एरिया
मुकुंदरा हिल्स राजस्थान के चार जिलों कोटा, झालावाड़, बूंदी और चित्तौड़गढ़ के लगभग 760 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस टाइगर रिजर्व में करीब 417 वर्ग किलोमीटर कोर और 342 वर्ग किलोमीटर बफर जोन है. कोटा के वन अफसरों के मुताबिक, इसमें 82 वर्ग किलोमीटर (8,200 हेक्टेयर) का एरिया तार फैंसिंग से कवर्ड है.
इसमें चीता शिफ्ट करने का प्लान है. फेंसिंग होने से चीता के जंगल से बाहर निकलने की आशंका नहीं रहेगी. मुकुंदरा में चीतों के भोजन के लिए यहां चीतल, चिंकारा, सांभर और जंगली सूअर पर्याप्त मात्रा में हैं.
गांधी सागर में भी की जा रही है तैयारी
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित गांधी सागर अभयारण्य 370 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां चीतों को बसाने के लिए आवश्यक तैयारियों के लिए वन विभाग ने केंद्र सरकार से 20 करोड़ रुपए की डिमांड भेजी थी. इसमें पिछले दिनों 5 करोड़ रुपए की स्वीकृति मिल गई है.
पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) जसवीर सिंह चौहान के अनुसार, इन 20 करोड़ रुपए से गांधीसागर में 60 वर्ग किलोमीटर एरिया में फेंसिंग की जाएगी. साथ ही हैबिटेट विकसित किया जाएगा, जलस्रोत तैयार होंगे, पेट्रोलिंग, सुरक्षा आदि की व्यवस्था की जाएगी. मगर, इन सब कार्यों में एक साल का समय लगेगा.