
मध्यप्रदेश में लगातार पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है. प्रदेश में लाखों युवा अपनी पढ़ाई के बाद केवल नौकरी के इंतजार में सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. मध्यप्रदेश सरकार ने यह दावा किया था कि आने वाले वर्षों में लाखों नौकरियां दी जाएंगी. लेकिन दूसरी ओर, राज्य में बेरोजगारों की संख्या सरकारी आंकड़ों में 30 लाख के पार पहुंच चुकी है. रोजगार कार्यालय, रोजगार मेले और मध्यप्रदेश रोजगार पोर्टल पर इन बेरोज़गारों को अब 'आकांक्षी युवा' का नाम दिया गया है, लेकिन इन युवाओं की आकांक्षाएं पिछले कई सालों से पूरी नहीं हो पा रही हैं. आर्थिक मजबूरी के कारण, पढ़े-लिखे युवा बे-मन से, अक्सर कम वेतन वाली और अस्थिर नौकरियों में काम कर रहे हैं, ताकि किसी तरह घर चला सकें
राजधानी भोपाल के रहने वाले तरुण यादव ने बी.कॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद कई सालों तक नौकरी की तलाश की. उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी की, लेकिन कई बार असफलता हाथ लगी तो कई बार भर्तियां ही नहीं निकलीं. सरकारी नौकरी तो दूर, प्राइवेट सेक्टर में भी अच्छे वेतन वाली नौकरी पाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया.नौकरी न मिलने के कारण तरुण अब एक फ़ूड डिलीवरी कंपनी में काम कर रहे हैं, जहां मुश्किल से 8,000-10,000 रुपये की कमाई हो पाती है. तरुण जैसे लाखों पढ़े-लिखे युवा हर दिन इसी संघर्ष से गुजर रहे हैं, जिनके सपने रोजगार की कड़वी हकीकत के आगे टूट रहे हैं
सागर जिले की खुरई के रहने वाले नरेंद्र ने बी.कॉम की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब एक अच्छी नौकरी की तलाश में हैं. पिछले दो दिनों से भोपाल में नौकरी ढूंढ रहे हैं, इससे पहले इंदौर में भी कोशिश कर चुके हैं, खुरई से यह सोचकर निकले थे कि बड़े शहर में नौकरी आसानी से मिल जाएगी, लेकिन हालात उम्मीद से उलट निकले. एक इंटरव्यू दिया लेकिन सैलरी इतनी थी जिससे शहर में गुज़ारा करना नामुमकिन है. एक बार स्पोर्ट्स टीचर की नौकरी भी की, मगर वेतन इतना कम था कि घरवाले ताने मारने लगे. नरेंद्र जैसे हज़ारों युवाओं की हकीकत की ज़मीन पर उम्मीदें बिखरती जा रही हैं.
मध्यप्रदेश सरकार ने अब नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं को 'आकांक्षी युवा' नाम दिया है. लेकिन विधानसभा में सरकार के जवाब के मुताबिक, उनके पास बेरोज़गारों की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. हालांकि, प्रदेश के रोज़गार पोर्टल पर नौकरी के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले युवा ही सरकार की नजर में नौकरी के आकांक्षी हैं. इस पोर्टल पर 30 लाख से अधिक युवा नौकरी की उम्मीद में आवेदन कर चुके हैं, जिनमें से अधिकांश शिक्षित हैं. बेरोज़गारी के इस संकट के बीच, नाम बदलने से हकीकत नहीं बदली है—सवाल अब भी वही है, क्या इन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त अवसर हैं ?
एक बार आंकड़ों पर डालें नजर:-
बहरहाल, मध्यप्रदेश में बढ़ती बेरोज़गारी अब राजनीतिक बहस का विषय बन गई है. बीजेपी सरकार जहां युवाओं को 'आकांक्षी' बताकर अपनी नीतियों का बचाव कर रही है, वहीं कांग्रेस इसे सिर्फ़ शब्दों का खेल करार दे रही है. बीजेपी का दावा है की सरकार रोज़गार के नए अवसर पैदा कर रही है. वहीं, कांग्रेस का आरोप है कि सरकार के पास बेरोज़गारों की सही जानकारी तक नहीं, बेरोज़गारी के इस मुद्दे पर अब सियासत तेज़ हो गई है—लेकिन सवाल वही है, युवाओं को रोजगार कब मिलेगा?
युवाओं को झूठ बोल रही है सरकार: नेता प्रतिपक्ष
मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा, मध्य प्रदेश में सरकार रोजगार के नाम पर युवाओं को झूठ बोल रही है. जहां जाओ वहां बेरोजगारी देखने को मिलती है और सरकार के पास कोई जवाब नहीं है कि बेरोजगारी इतनी बढ़ क्यों रही है? सरकार क्यों युवाओं के लिए रोजगार सृजित नहीं कर पा रही है? उन्हें जवाब देना होगा सिर्फ सरकार की नीतियों का गुणगान करने से कुछ नहीं होता है असल में मध्य प्रदेश की हालत देखी जाए तो यहां पर युवाओं से लेकर हर वर्ग परेशान है.
कांग्रेस को आरोप लगाने का कोई हक नहीं: मंत्री
कौशल विकास एवं रोजगार विभाग मंत्री गौतम टेटवाल ने कहा, हम इनको बेरोजगार नहीं, आकांक्षी युवा इसलिए कहते हैं, क्योंकि उन्हें नौकरी की 'आकांक्षा' है. हमारी सरकार लगातार रोजगार देने का प्रयास कर रही है. रोजगार पोर्टल पर जितने भी पंजीयन आते हैं, हम उनको रियल टाइम अपडेट करते हैं. मध्य प्रदेश में आने वाले समय में नौकरी के कई अवसर हम खोलने जा रहे हैं. सरकार लगातार कोशिश कर रही है कि युवाओं को रोजगार मिल सके, अलग-अलग रोजगार मेले के जरिए भी सरकार लगातार जब देने में लगी हुई है. कांग्रेस को आरोप लगाने का कोई हक नहीं है.
बेरोज़गारी पर सियासी तकरार तेज़ है, लेकिन हकीकत यह है कि लाखों युवाओं के हाथ अब भी खाली हैं. आंकड़े बढ़ रहे हैं, वादों की झड़ी लग रही है, मगर नौकरियों के दरवाजे अब भी बंद हैं. सरकार अपनी योजनाओं का गुणगान कर रही है, विपक्ष हमलावर है, लेकिन समाधान कहीं नजर नहीं आ रहा. सवाल यही है—‘आकांक्षी युवा’ कब तक सिर्फ़ उम्मीदों के सहारे अपने सपनों का बोझ उठाते रहेंगे?