
विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) की 13 सितंबर को पहली कोऑर्डिनेशन मीटिंग में ये निर्णय लिया गया था कि गठबंधन की पहली साझा रैली भोपाल में होगी. चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी में विपक्षी गठबंधन की पहली रैली के लिए कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने अक्टूबर के पहले हफ्ते का समय बताया था. लेकिन इस रैली के ऐलान को एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि इसे कैंसिल किए जाने की घोषणा हो गई.
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इसका ऐलान खुद मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने किया. खास बात ये है कि कमलनाथ की ओर से रैली कैंसिल होने की जब जानकारी दी गई, उससे कुछ ही मिनट पहले उन्हीं की पार्टी के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि ये रैली भोपाल में होगी या कहीं और, इसे लेकर अभी फैसला नहीं हुआ है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिककार्जुन खड़गे और अन्य सहयोगी इस पर चर्चा कर रहे हैं.
दिल्ली से जिस रैली के आयोजन का ऐलान हुआ था, दिल्ली में उस पर मंथन चल रहा था कि इसका आयोजन भोपाल में ही हो या कहीं और. कोई फैसला नहीं हो पाया था कि कमलनाथ ने रैली रद्द होने का ऐलान कर दिया. कहने को तो विधानसभा चुनाव की तैयारी ध्यान बंटने जैसे कारण गिनाए जा रहे हैं लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या बात बस इतनी सी ही है?
क्या सनातन विवाद से डर गए कमलनाथ?
सनातन मुद्दे को लेकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हमलावर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक, बीजेपी के बड़े नेता लगातार कांग्रेस, गांधी परिवार और कमलनाथ पर हमला बोल रहे हैं. सीएम शिवराज ने साझा रैली रद्द किए जाने के ऐलान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दावा किया कि सनातन धर्म को लेकर डीएमके नेताओं की टिप्पणी के बाद जनता के गुस्से की वजह से ये कदम उठाना पड़ा. ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या कमलनाथ सनातन विवाद से डर गए?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन की साझा रैली रद्द करने के निर्णय के पीछे कई कारण हैं. सनातन विवाद भी उनमें से एक है लेकिन ये भी नहीं कहा जा सकता कि केवल यही कारण है.
दरअसल, कमलनाथ बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व के ट्रैक पर चल रहे हैं. कमलनाथ ने बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के साथ ही पंडित प्रदीप मिश्र की कथा आयोजित कराई. वे खुद को हनुमान भक्त भी बताते हैं. कमलनाथ ने सनातन विवाद के बीच भोपाल में इंडिया टुडे के कार्यक्रम पंचायत आजतक मध्य प्रदेश के दौरान सनातन को लेकर उदयनिधि के बयान से जुड़े सवाल पर कहा था कि ये सब जानते हैं कि अपना देश सनातन धर्म का है. सनातन धर्म सबको जोड़कर रखने की बात करता है. डीएमके वाला कुछ भी कहता रहे, इस पर राय की कोई आवश्यकता नहीं है.
कमलनाथ ने ये भी कहा कि सनातन क्या है, ये मैं पहले ही बता चुका हूं. हिंदू राष्ट्र को लेकर भी कमलनाथ ने कहा था कि 85 फीसदी आबादी हिंदू है तो देश ऐसे ही हिंदू राष्ट्र है. ऐसे में कमलनाथ के लिए सनातन विवाद के बीच डीएमके नेताओं के साथ मंच साझा करना उनके लिए असहज करने वाला होता.
चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर डायवर्ट होने का खतरा
विपक्ष की साझा रैली के लिए भोपाल में राष्ट्रीय नेताओं का जमावड़ा लगता तो फिजां में राष्ट्रीय राजनीति के रंग स्वाभाविक रूप से घुल जाते. मध्य प्रदेश के स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के शोर में दबने की आशंका भी कमलनाथ को थी. अमिताभ तिवारी ने कहा कि कमलनाथ की रणनीति अब तक साफ रही है- सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ स्थानीय मुद्दों पर चुनाव अभियान को केंद्रित रखना. अलग-अलग राज्यों की पार्टियों के नेताओं का फोकस अपने वोटर पर होता. ऐसे में ये रैली खिचड़ी तो होती ही, बीजेपी को कांग्रेस पर हमले के लिए कोई नया हथियार न मिल जाए, कमलनाथ को ये डर भी था.
भोपाल रैली रद्द होने की ये भी वजह
भोपाल में विपक्षी गठबंधन की साझा रैली रद्द होने के पीछे संसाधनों से लेकर चुनाव प्रचार बाधित होने के खतरे तक, कई और फैक्टर भी अहम कारक बताए जा रहे हैं. जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश में मुख्य पार्टी के नाते भीड़ जुटाने से लेकर नेताओं के ठहरने और खाने-पीने के इंतजाम तक, व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी की होती. चुनावी राज्य है ऐसे में रैली की सफलता कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जुड़ जाती और ऐसे में कमलनाथ के लिए खुद कमान संभालना जरूरी हो जाता. इससे कांग्रेस के संसाधन और ऊर्जा रैली में लगते ही, पार्टी का प्रचार भी हफ्ते-10 दिन के लिए थम जाता.
चुनावी राज्यों में गठबंधन के लिए दूरी जरूरी?
सनातन मुद्दे को लेकर बीजेपी जिस तरह से आक्रामक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के बड़े नेता, सांसद, विधायक सनातन विवाद को लेकर विपक्ष को घेर रहे हैं, चर्चा है कि कांग्रेस का एक धड़ा चुनावी राज्यों में गठबंधन के किसी संयुक्त आयोजन से बचने के पक्ष में हैं. जानकार भी ये कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में डीएमके वोट नहीं दिला सकती लेकिन कांग्रेस नेताओं के साथ मंच पर उसके नेताओं की मौजूदगी भर से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.