
मध्यप्रदेश के पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने पर रोक लगाने की मांग के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि आप चाहें तो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के द्वारा इस मामले में दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं.
दरअसल, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर को आदेश दिया था कि भोपाल से डिस्पोजल साइट (पीथमपुर) पर कचरे को चार हफ्ते में पहुंचाया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को छूट दी कि वो चाहे तो हाईकोर्ट की सुनवाई में अपनी बात रख सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कचरे को भोपाल से धार जिले के पीथमपुर ले जाने और वहां इसे जलाने पर रोक लगाने की मांग की गई है.
याचिका में कहा गया है कि यूनियन कार्बाइड के कचरे को भोपाल से ले जाने का फैसला लेते समय पीथमपुर के लोगों से सलाह नहीं ली गई. साथ ही पीथमपुरा में रेडियेशन का खतरा हो सकता है. अगर वहां एसा होता है तो पीथमपुरा में उचित मेडिकल सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.
जहरीले कचरे को लेकर हाईकोर्ट ने दिया छह हफ्ते का समय
इधर, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे के निपटान पर सुरक्षा दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया है. 12 सीलबंद कंटेनरों में पैक अपशिष्ट को 2 जनवरी को राज्य की राजधानी भोपाल में अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर में निपटान स्थल पर ले जाया गया था.
एमपी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसके कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को कचरे को नष्ट करने से पहले पीथमपुर की जनता को विश्वास में लेने और उनके मन से भय दूर करने के अनुरोध के बाद समय दिया.
राज्य सरकार के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने अदालत को बताया कि यूनियन कार्बाइड अपशिष्ट निपटान के बारे में काल्पनिक और झूठी खबरों के कारण पीथमपुर कस्बे में अशांति पैदा हुई है. राज्य सरकार की दलील के बाद बेंच ने प्रिंट, ऑडियो और विजुअल मीडिया को मामले पर कोई भी गलत खबर चलाने से रोक दिया. इसके अलावा, राज्य ने भोपाल से पीथमपुर भेजे गए कचरे को 12 सीलबंद कंटेनरों में उतारने के लिए तीन दिन का समय मांगा. इस पर, हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि इस पर सुरक्षित तरीके से और दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करना राज्य का विशेषाधिकार है.
दरअसल, तीन दिन पहले, इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरे के नियोजित निपटान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान दो लोगों ने आत्मदाह करने की कोशिश की थी. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि निपटान मनुष्यों और पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा.
याचिकाकर्ता दिवंगत आलोक प्रताप सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने कहा कि लोगों के मन से डर को दूर करने के लिए परीक्षण के बाद कचरे का सुरक्षित तरीके से निपटान किया जाना चाहिए. सिंह ने यहां अब यूनियन कार्बाइड कारखाने से कचरे को हटाने और उसके निपटान के संबंध में 2004 में रिट याचिका दायर की थी.
वकील नागरथ ने सुनवाई के बाद एक न्यूज एजेंसी से कहा, "व्यापक आंदोलन और प्रतिरोध को देखते हुए आम जनता को विश्वास में लिया जाना चाहिए और इसके लिए कचरे की विषाक्तता के वर्तमान स्तर को निर्धारित करने के लिए परीक्षण किया जा सकता है. परीक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए."
बता दें कि 2-3 दिसंबर, 1984 की मध्य रात्रि को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस लीक हुई थी, जिसमें कम से कम 5,479 लोग मारे गए थे और हजारों लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उन्हें लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं रहीं.
3 दिसंबर 2024 को अंतिम सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े कचरे का निपटान करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों की खिंचाई की थी. उसने कहा था कि गैस आपदा के 40 साल बाद भी अधिकारी 'निष्क्रियता की स्थिति' में हैं, जिससे एक और त्रासदी हो सकती है'
MP हाईकोर्ट ने सरकार से चार सप्ताह के भीतर साइट से कचरे को हटाने और परिवहन करने को कहा था और निर्देश पर कार्रवाई नहीं करने पर अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी थी. हाईकोर्ट का निर्देश 2004 में यूनियन कार्बाइड संयंत्र से कचरे के निपटान के लिए दायर रिट याचिका पर आया था, जिसने दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक को जन्म दिया था.
(इनपुट एजेंसी से भी)