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माता प्रसाद पांडेय के जरिये अखिलेश यादव ने BJP को कितना बड़ा चैलेंज दिया है?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीेए फॉर्मूले के बाद सोशल इंजीनियरिंग का एक और दांव खेला है. माता प्रसाद पांडेय के रूप मे एक ब्राह्मण को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर उन्होंने बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है.

यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय और समाजावादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय और समाजावादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST

समाजवादी पार्टी मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा क्या दिया, यूपी की राजनीति में बवाल मचा हुआ है. सोशल मीडिया पर समाजवादी पार्टी के हाईपर एक्टिव समर्थकों को लग रहा है कि एक ब्राह्मण नेता को सपा में दूसरे नंबर का पद देकर अखिलेश अपने द्वारा ही बनाए गए पीडीए फॉर्मूले (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) से दूर जा रहे हैं. जो पार्टी के हित में नहीं है. पर दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि अखिलेश यादव ने ये फैसला लेकर साबित कर दिया है कि अब वे राजनीति में परिपक्व हो चुके हैं. लोकसभा चुनावों में जब उन्होंने गैर यादव कैंडिडेट्स पर दांव खेला तो भी यही कहा गया कि समाजवादी पार्टी के लिए ये ब्लंडर हो सकता है. पर चुनाव परिणाम बताते हैं कि अखिलेश का वह फैसला दूरदर्शी था. इसी तरह एक ब्राह्मण नेता को प्रतिपक्ष के नेता जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी देकर अखिलेश यादव ने एक ऐसा दांव खेला है जो बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है.

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1- क्या बीजेपी में ब्राह्मण उपेक्षित महसूस कर रहे हैं?

यूपी के जातिगत समीकरण में संख्या बल के मामले में ब्राह्मण तीसरे नंबर पर रहे हैं. दलित, यादव के बाद जनसंख्या के लिहाज ब्राह्मण वोट निर्णायक रहे हैं. पर राजनीतिक जागरूकता के कारण हमेशा से प्रदेश की राजनीति में सबसे प्रभावशाली ब्राह्मण ही रहे हैं. मंडल की राजनीति शुरू होने के पहले तक प्रदेश के अधिकतर मुख्यमंत्री ब्राह्मण ही हुआ करते थे. कांग्रेस के पतन के बाद ब्राह्मण वोटर्स का झुकाव बीजेपी की ओर हो गया. यही कारण रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने क्रमशः 72% और 80% ब्राह्मण वोट हासिल किए थे. 2022 में यूपी सरकार से तमाम नाराजगियों के बावजूद यह सिलसिला बरकरार रहा. पर बीजेपी में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो कभी कांग्रेस में मिला करता था.
 
उत्तर प्रदेश में अब तक बीजेपी के जितने भी सीएम बने उनमें एक भी ब्राह्मण नहीं रहा. अभी तो ये हाल है कि यूपी का मुख्यमंत्री और यूपी बीजेपी अध्यक्ष दोनों ही ब्राह्मण नहीं हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण बनाम राजपूत के बीच इतनी प्रतिस्पर्धा रही है कि कांग्रेस राज में हमेशा इन दोनों में से एक सरकार का मुखिया रहता तो दूसरा संगठन का मुखिया रहा करता था. पर बीजेपी ने इसे भुला दिया. बीजेपी की ओर से केंद्र में भी कोई कद्दावर मंत्री इस समुदाय का नहीं बना है.

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ब्राह्मणों का यह भी आरोप रहा है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने ब्राह्मण माफियाओं पर तो कार्रवाई की पर ठाकुर माफिया छुट्टा घूमते रहे. यह भी आरोप लगते रहे कि प्रदेश के खास पदों पर ठाकुरों की नियुक्ति की गई. इन सब आरोपों का ही नतीजा रहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में ब्राह्मणों का वोट बंटा है. समाजवादी पार्टी के टिकट पर चिल्लूपार (गोरखपुर) से विधायक रह चुके विनय शंकर तिवारी कहना है कि आगामी विधानसभा चुनावों में ब्राह्मण बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी के साथ आएंगे. तिवारी कहते हैं कि ब्राह्मण बीजेपी राज में उपेक्षित तो हुए ही हैं इसके साथ ही प्रदेश सरकार का कुशासन भी उनको मजबूर कर रहा है कि अब बीजेपी को वोट नहीं देना है.  

2- पूर्वी यूपी के ब्राह्मणों के लिए समाजवादी पार्टी बन रही है दुलारी 

2024 के लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव को समझ में आ गया है कि अगर वो ब्राह्मण कैंडिडेट देते हैं तो सफलता की दर बढ़ सकती है. विशेषकर पूर्वी यूपी में ब्राह्मणों को एक साथ लाने में पार्टी को सफलता मिल सकती है. लोकसभा चुनावों में यह स्पष्ट तौर पर देखने को मिल चुका है. बलिया में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सनातन पांडेय के लिए जनता ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर, जो बीजेपी से प्रत्याशी थे, को भी नकार दिया. मऊ से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले भूमिहार ब्राह्मण राजीव राय ने जीत हासिल की. डुमरियागंज में समाजवादी पार्टी के टिकट पर भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी को भी अच्छा जनसमर्थन मिला. हालांकि वो चुनाव जीत नहीं सके. पूर्वी यूपी के कद्दावर ब्राह्मण परिवारों में दो परिवार- पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी और पूर्वांचल के कद्दावर नेता रहे हरिशंकर तिवारी का परिवार- आज बीजेपी के साथ नहीं हैं. करीब 3 दशकों तक पूर्वांचल की ब्राह्मण राजनीति की धुरी रहे हरिशंकर तिवारी अब नहीं हैं पर उनके दोनों बेटे पूर्व सांसद भीष्म शंकर और पूर्व विधायक विनयशंकर आज समाजवादी पार्टी के साथ हैं. 5 अगस्त को हरिशंकर तिवारी की बड़े स्तर पर जयंती मनाई जा रही है. इस अवसर पर प्रतिपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडेय मुख्य अतिथि बनने वाले हैं. मतलब साफ है कि माता प्रसाद पांडेय ने अपना काम शुरू कर दिया है. विनय शंकर तिवारी कहते हैं कि पूर्वांचल में करीब 60 सीटों पर ब्राह्मणों का वोट विधानसभा चुनावों में इस बार निर्णायक होने वाला है. 

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3- ब्राह्मणों का साथ किस तरह अखिलेश यादव को दिलाएगा बढ़त 

प्रदेश में करीब 18 फीसदी सवर्ण जातियां हैं, जिसमें 10 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण हैं. अखिलेश यादव अगर कुल ब्राह्मण वोटों से कुछ परसेंट भी खींच लेते हैं तो बीजेपी की कहानी 2027 में खत्म हो जाएगी. अखिलेश के ब्राह्मण कार्ड को बसपा प्रमुख मायावती की सोशल इंजीनियरिंग से जोड़कर देखा जा रहा है. तिलक तराजू और तलवार -इनको मारो जूते चार का नारा देने वाली बीएसपी ने 2007 के विधानसभा चुनावों में नया नारा दिया. ब्राह्मण बीन बजाएगा, हाथी चढ़ता जाएगा. बसपा को इसका फायदा भी मिला और ब्राह्मणों का बड़ा वोट बैंक पार्टी की तरफ आ गया था. माना जा रहा है कि अब समाजवादी पार्टी की रणनीति भी मायावती के उस वोट बैंक पर टिकी है. उत्तर प्रदेश में जनसंख्या में पिछड़े वर्ग की संख्या 40 फीसदी है, जिसमें यादव 10 से 12 फीसदी, कुर्मी सैंथवार 8 फीसदी, मल्लाह 5 फीसदी, लोध 3 फीसदी, जाट 3 फीसदी, विश्वकर्मा 2 फीसदी, गुर्जर 2 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की संख्या 7 फीसदी है. इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 22 फीसदी हैं और मुस्लिम आबादी 18 फीसदी है. जिस तरह समाजवादी पार्टी ने कुर्मी-पटेल जैसे बीजेपी के कोर वोटर ओबीसी जातियों में सेंध लगाई है उसमें ब्राह्मण वोटर्स भी जुड़ जाते हैं तो अगले विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को कोई भी टक्कर नहीं दे पाएगा.

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