
तमिलनाडु में बीजेपी और AIADMK दोनो अपनी अपनी जमीन पर कायम हैं, लेकिन सत्ताधारी डीएमके से अकेले मुकाबला दोनो में से किसी के लिए संभव नहीं है - और यही बात करीब दो साल बाद दोनो पक्षों को फिर से करीब ला रही है.
मुश्किल पेंच अब भी वही फंसा हुआ है कि जिस बीजेपी नेता की वजह से गठबंधन टूटा था, AIADMK की धारणा उस नेता के बारे में अब भी नहीं बदली है, और वो नेता हैं - तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई.
खबर आई है कि तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और AIADMK नेता ई. पलानीस्वामी चाहते हैं कि बीजेपी के. अन्नामलाई का रोल थोड़ा कम कर दे - लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी ऐसा करेगी? और अगर बीजेपी ई. पलानीस्वामी की डिमांड नामंजूर कर देती है, तो क्या AIADMK और बीजेपी के बीच चुनावी गठबंधन फाइनल नहीं हो पाएगा?
AIADMK को अन्नामलाई से दिक्कत क्यों
असल बात तो ये है कि तमिलनाडु में सत्ताधारी डीएमके से मुकाबले के लिए बीजेपी और AIADMK दोनो के सामने आपस में हाथ मिलाने के अलावा अब कोई रास्ता भी नहीं बचा है. तभी तो अपनी नापसंदगी को किनारे रख ई. पलानीस्वामी दिल्ली का रुख करते हैं, और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर तमिलनाडु की राजनीति के तमाम पहलुओं पर बातचीत करते हैं.
और मौके की नजाकत को पहले ही भांपते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तंज भरे लहजे में अपनी राजनीतिक चाल भी चल देते हैं. बीजेपी नेता से मुलाकात को लेकर स्टालिन की यही सलाह होती है कि वो बीजेपी की भाषा पॉलिसी के बारे में बात करना न भूलें.
ई. पलानीस्वामी कितने मुश्किल में हैं, ये बात ऐसे भी समझी जा सकती है कि एक तरफ एमके स्टालिन टार्गेट कर रहे हैं, और दूसरी तरफ बीजेपी नेता के. अन्नामलाई तंज कसने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.
अन्नामलाई की बातों से भी ये तो लगता है कि चुनावी गठबंधन से उनको परहेज नहीं है, लेकिन अपना तेवर बदलकर या समझौता करके नहीं. अन्नामलाई का कहना है, चुनाव में बीजेपी की ताकत बढ़ाना, और डीएमके को हराना ही उनका लक्ष्य है.
हाल ही में तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई का AIADMK नेता ई. पलानीस्वामी को लेकर एक बयान आया था. अन्नामलाई ने किसी का नाम तो नहीं लिया था लेकिन कहा था, ‘जो पार्टियां हमें अछूत मानती हैं, अब बीजेपी की बढ़ती ताकत के कारण गठबंधन के लिए लालायित हैं.
ये देखने को मिला है कि तमिलनाडु में के. अन्नामलाई के प्रयासों से बीजेपी चेन्नई सेंट्रल, चेन्नई साउथ, नीलगिरी, तिरुनेलवेली, कन्याकुमारी और कोयंबटूर जैसे इलाकों में अपना जनाधार बढ़ाने में सफल रही है.
के. अन्नामलाई का यही प्रभाव ई. पलानीस्वामी को हजम नहीं हो पा रहा है. असल में AIADMK दक्षिण के राज्यों में बीजेपी की कमजोर स्थिति को देखते हुए चाहती नहीं कि वो अपनी जमीन मजबूत कर पाये - और AIADMK बड़े भाई की भूमिका में ही रहे.
फिर भी दोनो तरफ से थोड़ा नरम रुख दिखाने की कोशिश समझी जा सकती है. क्योंकि दिल्ली की मुलाकात भी तो तभी संभव हो पाई है - बीजेपी ई. पलानीस्वामी की वो मांग तो पूरी करने से रही, जिसमें अन्नामलाई के पर कतरने की मांग हो रही है.
आंकड़े भी बीजेपी के बढ़ते प्रभाव का सबूत हैं
आंकड़े बताते हैं कि 2019 के मुकाबले 2024 में बीजेपी को वोटों की हिस्सेदारी में 7.58 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी, जबकि AIADMK के वोट शेयर में महज 1 फीसदी का मामूली इजाफा देखा गया. 2024 में AIADMK को 20.46 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2019 उसे 19.39 फीसदी वोट मिले थे.
2019 में बीजेपी को 3.62 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन पांच साल बाद ही ये आंकड़ा उछल कर 2024 में 11.24 फीसदी पहुंच गया - और इस बात का श्रेय तो के. अन्नामलाई की मेहनत को ही जाता है.
ये हाल तब था, जब बीजेपी और AIADMK का गठबंधन चुनाव से साल भर पहले ही 2023 में टूट गया था. फिर भी, बीजेपी अकेले दम पर 9 लोकसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर रही - और, ध्यान देने वाली बात ये रही कि AIADMK को उन इलाकों में बीजेपी ने तीसरे नंबर पर भेज दिया था.